26 May, 2013

तुम्हारा गुलमोहर ....

देखो तो कैसा दहक रहा है ...
  गुलमोहर ....सुर्ख लाल ....!!

बिलकुल  तपते  हुए उस सूर्य  की तरह ...

मेरे प्यार से ही  ...
लिया  है उसने ये रंग ...!!

और ....

उससे ही  लिया है मैंने ...
जीवन जीने का ये  ढंग ...!!

सूर्य की तपिश हो ...
या हो ...
जीवन की असह्य पीड़ा ...
क्या रत्ती मात्र भी कम कर पाई है ...
मेरे प्रेम को ........????

प्रभु तुम साथ हो तो
इस ज्वाला में भी जल जल कर ...
स्वर्णिम सी  होती गई मैं ....!!

दहक रहा है  भीतर मेरे ...
हे ईश्वर ...तुम्हारा ही गुलमोहर ....

21 May, 2013

तू ही अंजानी ...!!


जब ...

भरी दुपहरी ...
दमके सूरज ...
जलता जल ...
जले जिया ...!!
आकुल मन  ...
सूना सा नभ ...
शुष्क हिया ...!!

तब  ...

जीवन ठगिनी ...
माया  जानी .....



कौन दिशा से ..
आई है री ...
पवन दिवानी ....!!
रही  हरि से अंजानी ...!!

मुठ्ठी मे भर लाती ...
थोड़ी ठंडक ...
थोड़ा सा पानी ...!!

अब
समझे कौन  है...........
आस मेरी वो  प्यास मेरी ...
पीर  मेरी ...हृद चीर मेरी ...
व्यथा मेरी ,अकथ कथा मेरी ...

जब
तू ही  अंजानी ...!!

17 May, 2013

चम्पक बन में बैठ सखी संग ... ....

चम्पक बन में बैठ सखी संग ...
वृहग वृन्द  का  कलरव सुनना ....
ढलते दिवस के अवरोह पर ..
राग दरबारी के ....
खरज से ...
कुछ गंभीर प्रकृति के  स्वर लेना ......


फिर तजकर ....कुछ हंसकर ..
संध्या के  आरोह  गुनना .....

ई मन राग की पकड़ से ...
कुछ भावों का आलाप लेना ...
कुछ गाना ...गुनगुनाना ...मन बहलाना ....

कुछ मन की ...कुछ जीवन की ...
कुछ सपनों की बातों की ...
लहराती सी कवरी गूंथना ...
उराव से ....
चुन चुन चंपा के फूलों को ...
  भावों  की उस कवरी को ...
फिर सजाना ...संवारना ......और सजना ...

प्रियतम की अनुरागी बातों को ..
शर्म से कुछ कहना ...सुनना ...और हँसना ...
याद है ....?

और फिर इस तरह ...
वीतरागी से मन को ...
पुनः अनुराग में डुबो ........भिगो ....रंगो ......
 निशीथ  मन ......खिल खिल ....घर चले आना ...
याद है ....?

**
*******************************************************************************
*दरबारी-शास्त्रीय संगीत की राग का नाम है |इसकी प्रकृति गंभीर है |
*खरज -(lower octave )यानि मन्द्र  सप्तक के स्वर |
*ई मन -यमन राग को मुग़ल काल में ईमन भी कहा जाता था ...
*कवरी-बालो को गूंथ कर बनाई चोटी ....
*उराव-उमंग
*निशीथ -खुशियाँ


05 May, 2013

सृजन .....हाइकु ...

आस का पंछी ......
उड़े निर्बाध जब ...
खिले सृजन  ....

कैसे रचाऊँ ..
नित नया सृजन ...
ये शब्द पूछें ...!!

उड़े बयार .....
शब्द उड़ा ले जाए  ....
भरें उड़ान ...

पंख पसार ...
उड़  जा उस पार ....
संदेसा ले जा ....

उड़ती जाऊं ...
मैं ढूंढ ढूंढ लाऊँ ...
शुभ   सृजन.....

जागा सवेरा ....
अब उड़ते  पंछी ...
नील वितान ....