देखो तो कैसा दहक रहा है ...
गुलमोहर ....सुर्ख लाल ....!!
बिलकुल तपते हुए उस सूर्य की तरह ...
मेरे प्यार से ही ...
लिया है उसने ये रंग ...!!
और ....
उससे ही लिया है मैंने ...
जीवन जीने का ये ढंग ...!!
सूर्य की तपिश हो ...
या हो ...
जीवन की असह्य पीड़ा ...
क्या रत्ती मात्र भी कम कर पाई है ...
मेरे प्रेम को ........????
प्रभु तुम साथ हो तो
इस ज्वाला में भी जल जल कर ...
स्वर्णिम सी होती गई मैं ....!!
दहक रहा है भीतर मेरे ...
हे ईश्वर ...तुम्हारा ही गुलमोहर ....
गुलमोहर ....सुर्ख लाल ....!!
बिलकुल तपते हुए उस सूर्य की तरह ...
मेरे प्यार से ही ...
लिया है उसने ये रंग ...!!
और ....
उससे ही लिया है मैंने ...
जीवन जीने का ये ढंग ...!!
सूर्य की तपिश हो ...
या हो ...
जीवन की असह्य पीड़ा ...
क्या रत्ती मात्र भी कम कर पाई है ...
मेरे प्रेम को ........????
प्रभु तुम साथ हो तो
इस ज्वाला में भी जल जल कर ...
स्वर्णिम सी होती गई मैं ....!!
दहक रहा है भीतर मेरे ...
हे ईश्वर ...तुम्हारा ही गुलमोहर ....
दहक रहा है भीतर मेरे ...
ReplyDeleteहे ईश्वर ...तुम्हारा ही गुलमोहर ....
वाहह...
कल्पनातीत ,
अपूर्व-सुंदर ,
सादर
सच कहा है, गुलमोहर इस मौसम में इतना मुखर हो सूर्य को भी आश्चर्यचकित कर देता है।
ReplyDeleteदहक रहा है भीतर मेरे ...
ReplyDeleteहे ईश्वर ...तुम्हारा ही गुलमोहर ....अनुपम भाव
आपकी यह रचना कल सोमवार (27 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteबहुत आभार अरुण .
Deleteइस मौसम में गुलमोहर वाकई सूर्य की मानिंद दहकता सा लगता है, आपने बहुत ही खूबसूरत प्रार्थना गीत रच दिया, बहुत ही सुंदर.
ReplyDeleteरामराम.
kitni energy deti hain aapki kavita...waah:)
ReplyDeletegulmohar ka chitr shandar hai!!
बहुत ही बेहतरीन सुंदर रचना,,,
ReplyDeleteRECENT POST : बेटियाँ,
सूर्य की तपिश हो ...
ReplyDeleteया हो ...
जीवन की असह्य पीड़ा ...
बहुत खूब
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बहुत गहरे पर कोमल भाव ........
ReplyDeleteदहक रहा है भीतर मेरे ...
ReplyDeleteहे ईश्वर ...तुम्हारा ही गुलमोहर ....
शानदार कथ्य
:) सुंदर
ReplyDeleteहे ईश्वर ...तुम्हारा ही गुलमोह,अच्छी रचना बहुत सुंदर भाव
ReplyDeleteरक्ति जब उससे हो जाए तो मन में खिला कौन गुलमोहर मुरझाये. बहुत प्यारी रचना. मन खिल उठा.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर, भावपूरण और सशक्त लेखनी | पढ़कर अच्छा लगा | सादर आभार |
ReplyDeleteआप भी कभी यहाँ पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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bahut khoob
ReplyDeleteदहक रहा है भीतर मेरे ...
ReplyDeleteहे ईश्वर ...तुम्हारा ही गुलमोहर ....sacchi bat kah di aapne anupama jee ......gulomhar bina kahe aise hi jeene ka sandesh deta hai .....pyaari rachna ...
दहक रहा है भीतर मेरे ...
ReplyDeleteहे ईश्वर ...तुम्हारा ही गुलमोहर ..
वाह ... बहुत खूब
अद्भुत प्रेम और समर्पण पराकाष्ठा को पार करती
ReplyDeleteदहक रहा है भीतर मेरे ...
ReplyDeleteहे ईश्वर ...तुम्हारा ही गुलमोहर ....
बेहतरीन........
वाह:हमेशा की तरह बहुत ही खुबसूरत रचना...ाभार
ReplyDeleteHi,
ReplyDeletem es blog duniya m naya hu plz mari help kar na
my new blog : http://jjrithub.blogspot.com/
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यही तो शाश्वत गुलमोहर है .. जो हमें भी खिलाये रखता है ..अति सुन्दर..
ReplyDeleteबेहतरीन रचना !!
ReplyDeleteदहक रहा है भीतर मेरे ...
ReplyDeleteहे ईश्वर ...तुम्हारा ही गुलमोहर ....
वाह सुन्दर भाव ...!
गुलमोहर की तरह ही लालिमा लिए हुये प्रेम .... बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहे ईश्वर. तुम्हारा ही गुलमोहर. यही तो है जो हमारे जीवन को खिलाता है । अति सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteबहुत खूब ,ये प्रकृति ही है जो हमें नित नए पाठ पढ़ाती है
ReplyDeleteजीवन का एक फलसफा यह भी ...बहुत सुंदर...
ह्रदय से आभार आप सभी का ....मेरी रचना को पढ़ कर अपने भाव भी दिए .....!!स्नेह बनाये रखें .....
ReplyDeleteआप सभी का ह्रदय से आभार ....
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteदहक रहा है भीतर मेरे ...
ReplyDeleteहे ईश्वर ...तुम्हारा ही गुलमोहर ..
वाह ... बहुत खूब