छाई कैसी अंधियारी ....!!
गगन मेघ काले देख ...
मछली सी तड़प उठी ...
कलप उठी पीर....
बहे अंसुअन नीर ....
त्रिदेव ...बंद करो त्रिनेत्र का तांडव ...
बहुत भुगत चुकी अब ....
होने दो ..फिर आज ...
नित प्रात की ...
निज प्रात ...!!
अढ़सठ तीरथ घट भीतर मेरे ....
स्फटिक के शिवलिंग सजात ...!!
मोगरे के पुष्प तोड़ ...
जग से मुख मोड़ ...
आज घट भीतर करूँ अर्पण ....
स्वीकारो मेरा कुसुम तर्पण ...
पुनः करूँ वंदन .....
वंदनवार बनाऊँ ...
मन-मंदिर सजाऊँ ...
प्रकृति सा प्राकृत ....
पुनः करो सुकृत ...
देवभूमि बन ....
अब रहे मन ...
गगन मेघ काले देख ...
मछली सी तड़प उठी ...
कलप उठी पीर....
बहे अंसुअन नीर ....
त्रिदेव ...बंद करो त्रिनेत्र का तांडव ...
बहुत भुगत चुकी अब ....
होने दो ..फिर आज ...
नित प्रात की ...
निज प्रात ...!!
अढ़सठ तीरथ घट भीतर मेरे ....
स्फटिक के शिवलिंग सजात ...!!
मोगरे के पुष्प तोड़ ...
जग से मुख मोड़ ...
आज घट भीतर करूँ अर्पण ....
स्वीकारो मेरा कुसुम तर्पण ...
पुनः करूँ वंदन .....
वंदनवार बनाऊँ ...
मन-मंदिर सजाऊँ ...
प्रकृति सा प्राकृत ....
पुनः करो सुकृत ...
देवभूमि बन ....
अब रहे मन ...