26 June, 2013

देवभूमि बन .... रहने दो मन ...

छाई कैसी अंधियारी ....!!
गगन मेघ  काले  देख ...
मछली सी तड़प उठी ...
कलप उठी पीर....
 बहे अंसुअन नीर ....

त्रिदेव ...बंद करो त्रिनेत्र का तांडव ...
बहुत भुगत चुकी अब ....

होने दो ..फिर आज ...
नित  प्रात  की ...
निज  प्रात ...!!
अढ़सठ तीरथ घट भीतर मेरे ....
स्फटिक के शिवलिंग सजात ...!!

मोगरे के पुष्प तोड़ ...
जग  से मुख मोड़  ...

आज घट भीतर करूँ अर्पण ....
स्वीकारो मेरा कुसुम तर्पण ...

पुनः करूँ वंदन .....
वंदनवार बनाऊँ ...
मन-मंदिर  सजाऊँ ...

प्रकृति सा प्राकृत ....
पुनः   करो सुकृत ...
देवभूमि बन ....
अब रहे  मन ...




21 June, 2013

तुम बिन .......कुछ हाइकु ....

चारों ओर तबाही का मंज़र .......बहुत उदास कर रहा है मन .....जाने कितने ही  परिवारों पर बिपदा पडी है ....ईश्वर सबकी रक्षा करें ....

तुम बिन हैं ....
सूनी सूनी सी राहें ...
भीगी निगाहें ...


 मनः पटल ....
हैं स्मृति की  रेखाएं ...
मिट न पाएं....

पलकों मेँ है  ......
मोती से अनमोल ...
 छुपे रतन ....

गूंजे सदा ही ...
कानो में अनमोल ...
तुम्हारे बोल ...

ढलक जाएँ ...
आंसू रुक न पायें ...
...छलके पीर ...

झरना बहे ... ...
मन बहाए नीर ...
न धरे धीर ....

असह्य पीर ...
निर्झर बहे नीर ...
व्यथा पिघले ...

सजल नेत्र ....
भरी जीवन पीर ....
डबडबाएं........

झरना झरे ....
ज्यों मन व्यथा झरे ...
झर झर सी ...


बंद पलक .....
गहराती है पीड़ा ...
उदास मन ...

मन सागर ....
वेदना असीम है ..
सूखे नयन ...


सूरज डूबे ...
ढेरों  रश्मियाँ लिए ....
डूबती आशा...


बर्फ सी ठंडी ....
संवेदनाएं हुईं ....
शिथिल  मन .....


अथाह पीड़ा ....
बस मौन ही रहूँ ....
किससे  कहूँ ....?



सुनो न तुम .....
मेरी मन बतियाँ ...
नैना बरसें ....


तुम्हारे बिन .....
सूने ये रैन दिन ...
नेहा बरसे ..............

मन सिसके .....
जो तुम चले आओ ...
मन बहले ...

15 June, 2013

.बरसन लागी बरखा बहार ....!!

बुंदियन बुंदियन ...सुधि .
अमिय  रस बरसन लागा ...

पड़त फुहार ...
नीकी चलत बयार ...

पंछी मन डोले ...
संग डार डार बोले ....

आज सनेहु  आयहु मोरे द्वार ....
री सखी ...
बरसन लागी बरखा बहार ....!!!



कोयल कूक कूक  हुलसानी ....
पतियन पतियन हरियाली इठलानी...

गरजत बरसत घन ढोल घन न न बाजे ...
थिरकत  मन  सोलह सिंगार साजे ...

 बरसे बदरा सुभग नीर ...
मिटी मोरे मनवा की   पीर ...

आज सनेहु  आयहु मोरे द्वार ...
री सखी ....बरसन लागी बरखा बहार ....!!




11 June, 2013

कौन है ये ...????


तमस प्रमथी ....
अदम्य शक्ति ...

अशेष भक्ति ...
रूप सरूप अरूप दिखाती ...
दुर्गा रूपिणी ...
दुर्गति दूर करती ....
दुआओं की  धनी ...
माटी  की बनी ...
दूर सुदूर तक फैला है ...
इसकी दुआओं का साम्राज्य ...
न कोई आदि न कोई अंत ..
सन्तति की रक्षा हेतु ...
सदा करती है साधना ...
मांगती है सुरक्षा कवच ...

जहाँ चाहो वहां दृष्टिगोचर है ...
प्रभास ...
प्रात  की प्रभा में ...
पाखी की उड़ान में ...
सुरों  के स्पंदन में ...
शीतल वायु के आलिंगन में ...
जल के प्रांजल प्रवाह  में ....
सूखी दग्ध ..उड़ती हुई धूल के कण में ...
या ...भीगी सी ....
सोंधी माटी की महक में .... ...
सुकून देता ...एक एहसास ...माँ के स्पर्श सा ...!!


आँख खोलो तुम्हारे समक्ष ....
बंद नयन तुम्हारे भीतर ...
सुचारू  परिदर्शन ...
एक शक्ति दिव्य सी ...
माँ जैसी ...

कौन है ये ...????
सुदृष्टि ...?

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सुदृष्टि साथ हो .....हर पल खिला खिला  ....मुस्काता सा ....वर्ना जीवन और मृत्यु में कोई भेद नहीं .......