सँजो रही हूँ ....
जीवन का एक एक पल
और ...बूंद बूंद सहेज ....
भर रही हूँ मन गागर ...
टिपिर टिपिर मन पर पड़ती ....
तिमिर हटाती बूंद बूंद ........
जैसे झर रही है वर्षा ...
उड़ेलने को है व्याकुल.......
अपना समग्र प्रेम सृष्टि पर ...
गुन रही हूँ भाव ...
कुछ भर रही हूँ रंग ....
कुछ बुन रही हूँ ख़ाब ....
कभी घिर जाती हूँ ..
मदमाती सावन की श्यामल घटाओं से ....
कभी भीग जाती हूँ ......
तर बतर अतर .....
वर्षा की बौछारों से .....
झूमती डार डार ....
कभी मंद मंद मलयानल ....
जैसे लहरा देता है .....
सृष्टि का आँचल .....
मन में हर दृश्य नया रंग भर जाता ...
सावन ....मनभावन ...सा
मयुर पंखी मन कर जाता .....
कभी भीग जाती हूँ ......
ReplyDeleteतर बतर अतर .....
वर्षा की बौछारों से ....
बेहद सुन्दर रचना .....
बहुत ही सुंदर औत भावमय रचना.
ReplyDeleteरामराम.
सँजो रही हूँ ....
ReplyDeleteजीवन का एक एक पल
और ...बूंद बूंद सहेज ....
भर रही हूँ मन गागर ...
टिपिर टिपिर मन पर पड़ती ....
तिमिर हटाती बूंद बूंद ........
जैसे झर रही है वर्षा ...
उड़ेलने को है व्याकुल.......
अपना समग्र प्रेम सृष्टि पर
latest post: यादें
ईश्वर जब मन में हों तो यह सुनिश्चित ही है. अति सुन्दर.
ReplyDeleteसरल मन के सुंदर भाव
ReplyDeleteबहुत सुंदर .... अभी तक सावन में भीग रही हैं आप ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल {बृहस्पतिवार} 12/09/2013 को क्या बतलाऊँ अपना परिचय - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः004 पर लिंक की गयी है ,
ReplyDeleteताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें. कृपया आप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा
bahut bahut abhar .
Deleteकभी भीग जाती हूँ ......
ReplyDeleteतर बतर अतर .....
वर्षा की बौछारों से ..
अनुपम भाव ...
नर्तन करते शब्द ... जैसे बरखा की बूंदों में नाचे मद हो ये मयूर ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एहसास ...
वाह ! वर्षा ऋतु का मनोहारी वर्णन..!
ReplyDeletebahut bahut abhar .
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर आपकी पोस्ट में संगीत की एक लय सी होती है जो मोहित कर लेती है :-))
ReplyDeleteवाह खूबसूरत भाव
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर मनमोहक अभिव्यक्ति,,
ReplyDeleteRECENT POST : समझ में आया बापू .
भर रही हूँ मन गागर ...
ReplyDeleteटिपिर टिपिर मन पर पड़ती ....
तिमिर हटाती बूंद बूंद ........
वाह :-)
प्रकृति अपने रंग में आती है तो मन मुग्ध कर जाती है।
ReplyDeletewaah ye to sadabhar savan ki jhalk hai ...
ReplyDeleteकभी भीग जाती हूँ ......
ReplyDeleteतर बतर अतर .....
वर्षा की बौछारों से .....
झूमती डार डार ....
कभी मंद मंद मलयानल ....
जैसे लहरा देता है .....
सृष्टि का आँचल .....
मन में हर दृश्य नया रंग भर जाता ...
सावन ....मनभावन ...सा
खूबसूरत अभिव्यक्ति …!!गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें.
कभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन
वर्षा की मनमोहक बौछारों से हमे भी भीगो दिया..
ReplyDeletebahut bahut aabhar ......!!
ReplyDeleteमन मोर ...मचाये शोर ..भाव-विभोर !
ReplyDeleteसुन्दर भाव लिए सुन्दर रचना..
ReplyDelete:-)
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteआशा
Simple but very beautifully put thoughts
ReplyDeleteमधुर और प्रभावशाली अभिव्यक्ति ..
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ReplyDeleteकोमल भाव कोमल राग मन का नेहा सृष्टि का सब रागरंग भाव कुछ समेटे चली है यह रचना।
सावन ....मनभावन ...सा
ReplyDeleteमयुर पंखी मन कर जाता .....
बहुत ही सुंदर।
bahut bahut aabhar aap sabhi ka ......!!
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