22 April, 2014

संवेदनाओं का पतझड़ है.…??

अडिग अटल विराट
घने वटवृक्ष तले
स्थिर खड़ी  रही
एक पैर पर
तपस्यारत
पतझड़ में  भी
एक भी शब्द नहीं झरा,
प्रेम से घर का कोना कोना भरा ,
मेरे आहाते में .....
मेरी ज़मीन पर ,
सारे वृक्ष हरे भरे,लहलहाते
चिलचिलाती धूप में भी कोमल छांव ,
यहीं तो है मेरे मन की ठाँव
हरीतिमा छाई ,
निस्सीम कल्पनातीत वैभव,
मन ही तो है-
तुम्हारा वास है यहाँ ,
समृद्ध है ........
कैसे कह दूं मेरे घर में
संवेदनाओं का पतझड़ है.…??