11 July, 2014

धनक की आस बरसाओ ...!!

धनक की आस बरसाओ ,
मेघा बरसो सरसो
धिनक धिन 
बूंदों का ताल सुनाओ ,
धन धन भाग हमरे हो जाएँ 
धरा पर धान का धन बिखराओ 
आ जाओ जीवन हर्षाओ ....!!
मेरी धरा धारण करे धानी धनक ...!!

बेर भई अब ,
मेघा बरसो सरसो
धनक की आस बरसाओ ...!!

04 July, 2014

बरसो रे मेघा बरसो ....!!


बरसो रे  मेघा बरसो ....

धूप घनी ,
और
पीड़ा घनीभूत  होती है जब  ,
जीवन की

तपती दुपहरी में,
छाया भी श्यामल सी
 कुम्हलाती हुई ,

मन उदास करती है जब ,

अतृप्त प्यास से
तृषित है ....
धरणि  का हृदय जब ....
जल की ही आस
जीवित रखती है
हर सांस
तब,

कोयल की कूक में
हुक सी ......
अंतस  से
उठती है एक आवाज़  ...
बिना साज़....

बरसो रे मेघा बरसो ...!!