20 November, 2014

सुरलहरी ...

शीत का पुनरावर्तन ,
जागृति प्रदायिनी ,
उमगी सुनहली प्रात,.....!!

अलसाई सी ,गुनगुनी धूप ,
गुनगुनाती हुई स्वर लहरियाँ,
शब्दों की धारा सी ...
शांत बहती नदी ...
और ...
 हृदय में अंबर का विस्तार ,
मेरे मन के दोनों किनारों को जोड़ता
एक सशक्त पुल .....
नयनाभिराम सौन्दर्य देते पल...!!

और कुछ शब्दों की माला पिरोता....
गाता मेरा मन ...
आओ री आओ री आली
गूँध गूँध लाओ री ,
फूलन के हरवा ....!!''