20 November, 2014

सुरलहरी ...

शीत का पुनरावर्तन ,
जागृति प्रदायिनी ,
उमगी सुनहली प्रात,.....!!

अलसाई सी ,गुनगुनी धूप ,
गुनगुनाती हुई स्वर लहरियाँ,
शब्दों की धारा सी ...
शांत बहती नदी ...
और ...
 हृदय में अंबर का विस्तार ,
मेरे मन के दोनों किनारों को जोड़ता
एक सशक्त पुल .....
नयनाभिराम सौन्दर्य देते पल...!!

और कुछ शब्दों की माला पिरोता....
गाता मेरा मन ...
आओ री आओ री आली
गूँध गूँध लाओ री ,
फूलन के हरवा ....!!''



11 comments:

  1. मेरी कृति चर्चा मंच पर लेने हेतु आपका हृदय से आभार राजेंद्र कुमार जी !!

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  2. वाह... शरद के आगमन की सुंदर सुरलहरी

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  3. सुरलहरी .... नाम के अनुरूप अभिव्‍यक्ति
    अनुपम भाव

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  4. मन के तारों को झंकृत करते शब्द ...

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  5. बहुत सुन्दर

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  6. गूंध-गूंध लिया है इस फूलन के हरवा को..

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  7. फूलन के हरवा... अहा! मन मोह लिया इस शब्द ने. बहुत सुन्दर रचना, बधाई.

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  8. आपकी कविता पढ कर ये संसार और भी खूबसूरत नज़र आने लगता है।
    सुनहली प्रभात अलसाई दोपहरी, शब्दों सी शांत बहती नदी और मन में अंबर का विस्तार वाह, पर आज कोहरे के परदे के पीछे है यह सब।

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!