25 January, 2015

प्रेम तब भी जीवित होगा...!!

मैं शब्द हूँ
नाद ब्रह्म ...
प्रकृति में रचा बसा ...!!
हूँ तो भाव भी हैं
किन्तु ,
न रहूँगा तब भी
भावों का अभाव न होगा !!
प्रतिध्वनित होती रहेगी
गूंज मौन की ,
उस हद से परे भी
प्रकृति की नाद में ,
जल की कल कल में
वायु के वेग में
अग्नि की लौ में  ,
आकाश के विस्तार में,
धृति  के धैर्य में,
रंग में ,बसंत में,
पहुंचेगी मेरी सदा  तुम तक
प्रभास तब भी जीवित होगा
 प्रेम तब भी जीवित होगा...!!

8 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।

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  2. प्रेम तो ॐ का चारण है ... रहेगा सृष्टि में हमारे न होने के बाद भी ...
    गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें ...

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  3. बहुत ही सुन्दर सार्थक प्रस्तुति, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये। 

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  4. वाह, कम शब्दों में आपने सबकुछ जीवंत कर दिया।

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  5. प्रेम तो शब्दातीत भी है...बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना अनुपमा जी

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  6. कौन बाँध सकता है प्रेम को सीमाओं में. सुन्दर रचना.

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  7. प्रेम ही परमेश्वर है । शब्द - ब्रह्म है , शाश्वत है ।
    सुन्दर प्रस्तुति ।

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  8. ढाई आखर प्रेम का ...

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!