''ज़िंदगी एक अर्थहीन यात्रा नहीं है ,बल्कि वो अपनी अस्मिता और अस्तित्व को निरंतर महसूस करते रहने का संकल्प है !एक अपराजेय जिजीविषा है !!''
28 February, 2015
23 February, 2015
मान्यताएँ ....(क्षणिकाएं)

बंधे हैं उससे ,
समय के साथ ,
समय की क्षणभंगुरता जानते हुए भी,
वृक्ष नहीं हिलता
अपने स्थान से ,
बल्कि जड़ें निरंतर
माटी में और सशक्त
और गहरी पैठती चली जाती हैं !!
आस्था गहराती है ,
छाया और घनी होती जाती है !!
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सदियों से ...
चूड़ी बिछिया पायल पहना ,
बेड़ियों मे जकड़ा ,
अपनों का भार वहन करता
ये कैसा संकोच है ,
निडर ...स्थिर,एकाग्र चित्त ...!!
अम्मा के सर के पल्ले की तरह ........
सरकता नहीं अपनी जगह से कभी ....!!
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बहती धारा से ,

उम्मीद भरे शब्द
शक्तिशाली होते हैं
प्रभावशाली प्रवाहशाली होते हैं
स्वत्व की चेतना जगा ,
जुडते हैं नदी के प्रवाह से इस तरह
के बहती जाती है नदी
कल कल निनाद के साथ
फिर रुकना नहीं जानती ........!!
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