13 September, 2017

वो तलाश तो अब भी जारी है ..!!



न दुख है ,
न सुख है .....
परा (प्रकृति)रूपी सत्य और
अपरा (जगत) रूपी असत्य के बीच की
एक  रेखा ,
स्वयं का  ही तो परिपेक्ष है ,
एक सत्य तुम्हारा 
वो झूठ मेरा ,
एक सत्य  मेरा वो झूठ  तुम्हारा
इस तरह सच कहूँ तो 
आज तक समझ नहीं पाई 
सत्य जीवन का  ....!!

न कुछ तेरा  न कुछ मेरा ,
झूठ का पसारा ....!!

उस झूठ से ...
सत्य  की तलाश ......
मुझ में ही जागृत मेरा  प्रकाश,
तब होता अंधकार का विनाश ...!!

कड़ी धूप में ,
मुझमें विस्तार पाता
तुम्हारा छाया  रूपी
 अस्तित्व,
धूप  सी मैं मिटती जाती हूँ ...
और इस तरह मिटकर ही ...
तुमको पाकर
मिलता है मुझे मेरा
अमर्त्य शाश्वत अस्तित्व,
फिर ....
क्या है मेरा ...??
क्या तुम्हारा   ……??
बताओ तो ....

....तुमको पाकर भी है वो तलाश ........!!
तुम्हारे साथ चलते हुए ,
स्वयं के भीतर ही ,
वो तलाश .......
वो तलाश तो अब भी जारी है    ....
और शायद वही  सृजन ,
नवीनता लाता ,
नाद से अनहद तक......... ,
वो सृजन तो अब भी जारी है ..!!
हाँ ...
वो सृजन तो अब भी तारी  है ,
वही  सृजन अब भी जारी  है। ....!!


अनुपमा त्रिपाठी
 "सुकृति "

18 August, 2017

यही यात्रा तो जीवन है ...!!

अविराम श्वासों की लय,
स्पर्श ...सिहरन
मौन के
नाद  की अविरति ,
अनुभूति की
अभिव्यंजना

अनुक्रम तारतम्य का ,
चंचलता मन की ...
आरोह ,
मुझ से तुम तक का
और अवरोह
तुम से मुझ तक का .....
 सम्पूर्णता
राग के अनुराग की
यही यात्रा तो जीवन है   !!

15 July, 2017

शब्द-शब्द हाइकू ...

 दाना चुगती ...
चिड़िया   भर लाती ...
अनोखे शब्द ....


उडती जाऊं ...
खलिहान  पहुँचूं......
शब्द समेटूं ....



बीन  बटोर .....
शब्द शब्द कुमुद ...
गुंथी है माला ...


शब्द तिनके  ...
बीन लाई हूँ जैसे ...
सजे सृजन ..



नीड़ बनाऊँ ....
बीन बटोर लाऊँ ...
शब्द सजाऊँ ...





अर्पण करूँ ....
प्रभु  तुमरे द्वार ....
शब्द  संसार .....



शब्दों से प्रभु  ...
सजादो  मेरा मन ....
कविता  खिले ...






शब्द की कथा ....
बने मन की व्यथा ....
भावना बहे ....



मन की व्यथा ...
 बूँद सी कोरों पर    ...
बनी  सविता


व्यथा मुखर ....
शब्द हुए प्रखर .....
काव्य निखर .....







01 July, 2017

बहती जैसे झर झर करुणा...

राह तकन  के
दिवस नहीं अब
ठहरा था समय ,
कई जुग सा बीता....

मोम सा पिघलाव लिए
झरते मेघ
बरसे उराव लिए ,
प्रकृति सजल आकृति भई ,
भई श्रावण वरुणा
बहती जैसे  झर झर करुणा....

मन मुदित पात पात हरसें
मृदुल मनोहर मेघ बरसें
अविरल नयनन सों
धार बहे पानी
श्याम ने आवन की जानी ,
शब्द ने मेरे मन की मानी
बहती सरिता सी
नदिया की रवानी,
देखो ... गाती आज  प्रकृति ...
प्रीत  की अनमोल कहानी ...!!

20 May, 2017

विशाखापट्नम से ...!


समन्वित होने से पहले स्वयं को तैयार करना होता है ,क्योंकि कठिन और कठोर नियम के पालन से ही उपजता है समन्वय ! यह बात कब से जानती हूँ किन्तु उसे चरितार्थ होते यहां देखती हूँ ,विशाखापट्णम  में ! प्रत्येक शहर की एक संस्कृति ,एक सभ्यता होती है जो उसकी  भौगोलिक संरचना के कारण बनती है !  वहां रहने वाले व्यक्ति उसे कब जीने लगते हैं ,ये उन्हें पता भी नहीं चलता !संभवतः बदलाव सभी को अच्छा लगता है इसीलिए  बाहर से आये हुए व्यक्ति भी  उसी शहर के आचरण को निभाने लगते हैं और वहीँ जैसे होने भी लगते हैं !!वहां की भाषा सीखने लगते हैं ,खान पान अपनाने लगते हैं ,रीत-रिवाज़ अपनाने लगते हैं ! इस प्रकार प्रारंभ होता है एक नया जीवन ,एक नयापन !
विशाखापटनम आने  के बाद दिन प्रतिदिन मेरा इस शहर से लगाव बढ़ता ही रहा  है !!सबसे पहले यहाँ की हरियाली मेरे बहुत मन भाई । पिता के जंगल विभाग में होने की वजह से अनायास ही इस हरियाली से मुझे बेहद प्रेम है । इसका वैभव विरासत में मिला है मुझे । हुद  हुद  जैसी विपदा के बाद भी यहाँ के नागरिकों नें एक जुट होकर खूब वृक्ष लगाए !खोई हुई हरियाली को किसी हद तक वापस लाकर ही माने  !! उम्मीद है आने वाले समय में  वो हरियाली भी पूर्णतः वापस आ जाएगी !! हम ने भी "योग विलेज " में वृक्ष लगा कर तथा वहां के पूरे परिसर में  सफाई करवा कर  अपना योगदान दिया ।
मुझे ये देख कर बहुत ख़ुशी होती है कि छोटे से छोटे त्यौहार को भी यहाँ  बहुत उत्साह से ,पूरे परिवार के साथ मनाया जाता है ।
वैसे भी शनिवार-इतवार प्रातः  जैसे पूरा शहर ही ,पुलिन तट  (समुन्दर के किनारे )अलग अलग गतिविधियों में संलिप्त रहता है ।सुबह छह से नौ बजे तक यहाँ रोड पर वाहन चालन  मना  है । कहीं  स्केटिंग ,कहीं फ़ुटबाल ,कहीं क्रिकेट , कहीं योग ,कही मैराथन , कहीं साईकिल चालन  , कहीं सैंड आर्ट ,कहीं शास्त्रीय संगीत, कहीं लोक नृत्य ! कुछ न कुछ कला आयोजन से पूरी सड़क भरी रहती है और सुबह का पूरा आनंद लेने लोग सपरिवार आते हैं ! कहीं चाय की दूकान तो कहीं गरम गरम सिकते भुट्टे !! एक सुहानी सुबह के लिए इतना कुछ बहुत है न ?
समन्वित हो इस तरह आनंद लेना यहाँ की खासियत है ।
संस्कृति से जुड़ाव यहाँ की विशेषता  है । बहुत पुराने पुराने मंदिर हैं यहाँ और बहुत शौक से लोग मंदिर दर्शन को जाते हैं । घरों घर स्त्रियां भी विविध पूजा-पाठ का आयोजन रखती हैं और सम्मिलित हो अनेक  मंत्रोच्चारण भली भांति करती चली जातीं हैं । पूजा बहुत श्रद्धा भाव से की जाती है ।
आचरण में कर्मठता यहाँ की विशेषता है ।
संस्कृति का विराट वैभव यहाँ परिलक्षित होता है !