26 April, 2021

आज मैं चुप हूँ

आज मैं चुप हूँ
कलम 
तुम बोलो ,
रस रंग
जिया के भेद, अनोखे खोलो

कठिन राह
जीवन की
अब तुम
सरल बनाओ
जब भी प्रेम
लिखो तुम निर्मल,
नद धार धवल बहाओ
और फिर चलो उठो मन
आज तुम भी गाओ

श्यामल बदरी की कथा 
बूंदन बरस रही
हरियाली धरती पर
खिल खिल हरस रही

जोड़ जोड़ अब शब्द
लिखो तुम मन की भाषा
जो कहती कहने दो
जीवन की अभिलाषा

साँस साँस में बसा जो जीवन
है अनमोल
लिख डालो कुछ शब्दों में
है जो भी इसका तोल

अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "

10 comments:

  1. जब भी प्रेम
    लिखो तुम निर्मल,
    नद धार धवल बहाओ
    और फिर चलो उठो मन
    आज तुम भी गाओ।

    बहुत खूबसूरत रचना । आज के समय में ऐसी ही मन को शांति और प्रेम का संदेश देने वाली रचनाओं की ज़रूरत है । बहुत खूब।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद दी।आपकी स्नेहसिक्त टिप्पणी सदा उर्जा देती है!!

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  2. आप चुप हैं या आपकी कलम बोलती हो... दोनों में ही एक संगीत है, जो आपकी इस कविता की प्रांजलता में परिलक्षित है - शब्द दर शब्द!!

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सलिल जी। बहुत दिनों बाद आपका ब्लॉग पर आना हुआ, हृदय से आभार!!सक्रियता बनाए रहिएगा!

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  3. बहुत सुंदर, मनभावन एवं मन में बस जाने वाली कविता।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका ।सक्रिय रहिएगा।

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  4. साँस साँस में बसा जो जीवन
    है अनमोल
    लिख डालो कुछ शब्दों में
    है जो भी इसका तोल

    श्वासों से ही जीवन है, प्राण ऊर्जा जो झर रही है आज असमय काल के गाल में समा रहे हैं जीवन, ऐसे में लेखनी से सुंदर प्रार्थना !

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    1. हृदय से आभार आपका!आपकी स्नेहसिक्त टिप्पणी सदा ऊर्जा देती है!

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  5. बहुत खूबसूरत रचना

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका!

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