09 April, 2021

सखी फिर बसंत आया है


 किसलय की आहट है 

रँग की फगुनाहट है 

प्रकृति की रचना का 

हो रहा अब स्वागत है 


मन मयूर थिरक उठा 

आम भी बौराया है 

चिड़ियों ने चहक चहक 

राग कोई गाया है 


जाग उठी कल्पना 

लेती अंगड़ाई है 

नीम की निम्बोड़ि भी 

फिर से इठलाई है 


कोयल ने कुहुक कुहक 

संदेसा सुनाया है 

अठखेलियों में सृष्टि के 

रँग मदमाया है 


सखी फिर बसंत आया है 


अनुपमा त्रिपाठी

  "सुकृति"

14 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 09 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. अहा! आपके आने से ही बसंत आ गया । स्वागत है ।

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  3. सुन्दर प्रस्तुति

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  4. बेहतरीन रचना

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  5. बसन्त के आने की ख़ुशी में आपके शब्दों ने भी नए भाव ग्रहण कर लिए हैं, सुंदर रचना !

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  6. हमेशा कि तरह बेहतरीन रचना ..... बसंत तो आया लेकिन कोरोना ने सब कुछ भुलाया है ....

    अब नियमित लिखती रहना .... देर हो गयी तुम्हारे ब्लॉग पर आने में ...

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    1. आपका बहुत बहुत आभार दी!
      आशीर्वाद आपका ज़रूर लिखती रहूँगी !!
      कोरोना से बचे रहें हम सब यही ईश्वर से करबद्ध प्रार्थना है!!!

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