भाव की स्याही में डूबी हुई कलम
कविता झट से कह देती है
जो न कह पाए हम !!
रंगों की रंगोली से
गढ़ती है आकृति
झमाझम वर्षा पाकर
जैसे निखरती है प्रकृति !!
शब्द और भाव से
भर उठता है प्याला
छलक छलक उठती है
कवि की मधुशाला !!
एक एक शब्द में होते हैं
अनूठे से भाव ,
पढ़ते पढ़ते यूँ ही
छोड़ जाती है अपना प्रभाव !!
कहीं पुष्प बन कर उभरती है ,
कहीं नदिया बन कर उमड़ती है ,
प्रकृति तो प्रकृति है
कहीं पाखी बन उड़ती है
कितने ही रूप में
कह जाती है मन की
समां जाती है शब्दों में
जैसे भावों की अनुकृति !!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "