29 September, 2021

भावों की अनुकृति !!

 शब्द को चुनकर

भाव की स्याही में डूबी हुई कलम 

कविता झट से कह देती है 

जो न कह पाए हम !!


रंगों की रंगोली से 

गढ़ती है आकृति 

झमाझम  वर्षा पाकर 

जैसे निखरती है प्रकृति !!


शब्द और भाव से 

भर उठता है प्याला 

छलक छलक उठती है 

कवि की मधुशाला !!


एक एक शब्द में होते हैं 

अनूठे से भाव ,

पढ़ते पढ़ते यूँ ही 

छोड़ जाती है अपना प्रभाव !! 


कहीं पुष्प बन कर उभरती है ,

कहीं नदिया बन कर उमड़ती है ,

प्रकृति तो प्रकृति है 

कहीं पाखी बन उड़ती है 


कितने ही रूप में 

कह जाती है मन की 

समां जाती है शब्दों में 

जैसे भावों की अनुकृति !!


अनुपमा त्रिपाठी 

  "सुकृति "



23 September, 2021

निकेत बनी हृदयावलि …!!

गगन से अविरल बरसते हुए

मेघों में ,

मन के भाव की

ललित पुलकावलि ,

जब जब नित नवल 

अलंकृत होती गई ,

बूँदन झरती आई ,

तब तब वो

अलौकिक शब्द

बने मुक्ताभ ,

निकेत बनी हृदयावलि …!!


अनुपमा त्रिपाठी 

     सुकृति

18 September, 2021

चरैवेति .....चरैवेति .....!!


दिशा बोध 

हृदय  के भीतर के 

सूक्ष्म दिव्य प्रकाश की  परिणति है |

कर्म ही प्रकृति है ,

चलते रहना ही नियति है .....!!

चरैवेति .....चरैवेति .....!!


अनुपमा त्रिपाठी 

  ''सुकृति "

14 September, 2021

हे हिन्दी !!


 शीतल पवन के झोंखे से ,

मेरे  मन में  भी उपजी

उर्वरता की,

प्रस्फुटित हरियाली में

खिलते  हुए शब्दों  की उदात्त  भाषा,

हे  हिन्दी 

 तुम ही मेरी अभिव्यक्ति की अभिलाषा ..!!


मेरी संवेदनाओं में

अमर्त्य सी पैठती

सगर्व सुवर्ण संवर्धन सी

जागती चेतना का प्रभास

मेरा चिरंतन  प्रयास ..

तुम ही  मेरी  आस


वन्या की हरित हरियाली सा ,

जीवन तरु की हरी भरी छाया सा ,

नाद से अंतर्नाद अर्चन सा ,

निर्मल जल में अपने ही प्रतिबिम्ब सा ,

कण कण  में बसता अनुराग..

   तुम  से ही  मेरी  राग  !!


अनुपमा त्रिपाठी 

  " सुकृति"

10 September, 2021

हे वृक्ष !!

हे वृक्ष

कतिपय

तुम्हारी छाया के अवलंबन में

अभ्रांत सहृदयता के पलों के

सात्विक तत्व से

आश्रय पाकर ही

सूर्य की तेजस्विता से

आलोकित होता है जीवन ...!!

तुम पर झूलते 

पाखी के झूले 

सदाशयता की चहक से 

गुंजायमान हो 

भोर की आहट  बनते हैं 

तुम से ही धरा पर हरियाली है ...!!

खुशहाली है  !!


अनुपमा त्रिपाठी 

  "सुकृति "

05 September, 2021

धरा पर धारा डोल रही है !!


सागर से मिलने की राहें 

आकुल नद की व्यकुलताएँ 

राह नई नित खोज रही है 

धरा पर धारा डोल रही है 


वर्षा की रिमझिम बूंदों में 

उमड़ घुमड़ घन की रुनझुन में 

कजरी के बोलों में जैसे 

सजनी जियरा खोल  रही है 


धरा पर धारा डोल रही है 


बादल बरस रहा है अंगना 

सजनी का जब खनके कंगना 

हरियाली में प्रीत सुहानी 

जीवन नव रस घोल रही है 


धरा पर धारा डोल रही है !!


अनुपमा त्रिपाठी 

   "सुकृति "