29 September, 2021

भावों की अनुकृति !!

 शब्द को चुनकर

भाव की स्याही में डूबी हुई कलम 

कविता झट से कह देती है 

जो न कह पाए हम !!


रंगों की रंगोली से 

गढ़ती है आकृति 

झमाझम  वर्षा पाकर 

जैसे निखरती है प्रकृति !!


शब्द और भाव से 

भर उठता है प्याला 

छलक छलक उठती है 

कवि की मधुशाला !!


एक एक शब्द में होते हैं 

अनूठे से भाव ,

पढ़ते पढ़ते यूँ ही 

छोड़ जाती है अपना प्रभाव !! 


कहीं पुष्प बन कर उभरती है ,

कहीं नदिया बन कर उमड़ती है ,

प्रकृति तो प्रकृति है 

कहीं पाखी बन उड़ती है 


कितने ही रूप में 

कह जाती है मन की 

समां जाती है शब्दों में 

जैसे भावों की अनुकृति !!


अनुपमा त्रिपाठी 

  "सुकृति "



9 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज बुधवार 29 सितम्बर   2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है....  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. मेरी रचना को सम्मिलित किया आपका बहुत बहुत धन्यवाद यशोदा जी!!

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  2. प्रकृति के सृजन और भावों के सृजन में एक्य को देखती सुंदर रचना

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  3. कविता झट से कह देती है जो न कह पाए हम। ठीक कहा आपने। यही सच्ची कविता की पहचान है।

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  4. बहुत बढ़िया

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  5. बहुत सुंदर सृजन अनुपमा जी ,सच कविता प्रकृति के सदृश ही है, रहस्यमय और सरस सुखद ।
    सार्थक।

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  6. ठीक कहा आपने,

    शब्द को चुनकर
    भाव की स्याही में डूबी हुई कलम

    कविता झट से कह देती है

    जो न कह पाए हम !!



    रंगों की रंगोली से

    गढ़ती है आकृति

    झमाझम वर्षा पाकर

    जैसे निखरती है प्रकृति !!

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