28 April, 2022

लक्ष्मी

रमेश बड़ा ही ईमानदार और सज्जन पुरुष है | नेक दिल इंसान ,हर किसी की मदद  को तत्पर !!गरीबी में भी कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाये | स्कूल के मास्टर साब ,जो पिताजी के दोस्त भी हैं ,उनके घर बचपन से आना जाना रहा है | उन्हीं की पुत्री सुगंधा कब हृदय में विराजमान हो गई ,पता ही नहीं चला | दोनों मित्र अपने बच्चों के मन की बात जानते थे ,सो यथा समय विवाह हो गया | गाँव का जीवन आसान नहीं होता !! नित नयी मुश्किल का सामना करते हुए रमेश दो पुत्रियों का पिता भी बन गया | उसे अपनी बेटियां बहुत प्यारी थी !! खेत खलिहान पर दिन भर की थकन के बाद जब घर आता ,बच्चों की मीठी मीठी बातों में सरे ग़म भूल जाता | सुगंधा मेहनत कर दिन -ब-दिन दुबली हुई जा रही थी!दूसरे प्रसव में उसे बहुत तकलीफ़ हुई थी और डॉक्टर दीदी ने कह दिया था, "रमेश अब तुम तीसरे बच्चे की सोचना भी मत | "

       इसी तरह छुटकी भी अब आठ साल की हो गई थी !! रमेश जहाँ जाता गाँव के बूढ़े उसे आशीष देते कह ही देते ,''एक लड़का हुई जाये | '' रमेश कभी खीज भी जाता | लेकिन समाज का असर मनस्थिति पर हो ही जाता है | रमेश के मन में भी यही विचार धीरे धीरे घर करने लगा | किसी तरह उसने सुगंधा को भी राज़ी कर लिया | जब तीसरे गर्भावस्था की ख़बर डॉक्टर दीदी को मिली तो वे बहुत नाराज़ हुईं | लेकिन इस बार सुगंधा की तबियत बिलकुल ठीक है | उसे खूब भूख़ लगती है ,और चेहरे पर चमक भी आ गई है | सुगंधा को लगा वैभव लक्ष्मी का व्रत कर उसने इस बार लड़का माँगा है ,शायद ईश्वर ने उसकी सुन ली है | रमेश के दिन बदलने से लगे हैं | नित नई  परेशानियां दूर भागने लगीं हैं | उसे समझ में आ गया है कि उसका सोया भाग जाग गया है !! ये बच्चा उनके परिवार के लिए भाग्यशाली सिद्ध हो रहा है | सुगंधा जहाँ जाती बड़ी बूढ़ी  औरतें अटकलें लगतीं ,''लड़का है '',कुछ कहतीं ,''मुझे तो इस बार भी लड़की ही लगे है |'' सुगंधा धीरे से मुस्कुरा देती | अब वो दिन आ ही गया | जैसे ही बच्चा हुआ ,सुगंघा ने डॉक्टर दीदी से तुरंत पूछा ,''दीदी क्या हुआ ?" अब डॉक्टर दीदी थोड़ी असमंजस में आ गईं  कैसे बताया जाये !! उन्होंने टालने की कोशिश की | सुगंधा समझ गई की इस बार भी लड़की है !! उधर रमेश ईश्वर से सुगंधा और बच्चे के लिए दुआ मांग रहा था !! वो ये बात तो जान ही गया था कि बच्चा उसके लिए बहुत किस्मत लेकर आया है और अब उसके दिन फिर गए हैं !! जैसे ही डॉक्टर दीदी प्रसव रूम से बहार आईं उन्होंने बड़ी मायूसी से कहा ,''रमेश इस बार भी लड़की है | '' रमेश के पास दो रास्ते थे ,या तो अपनी किस्मत को ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार करे ,या जीवन भर मायूस रहे | उसने मुस्कुराते हुए पूछा ,''दीदी सुगंधा ठीक है न ? और हाँ दीदी इस बच्ची का नाम हमने लक्ष्मी तय किया है |'' डॉक्टर दीदी को अब रमेश और सुगंधा पर गर्व हो रहा था !! 



अनुपमा त्रिपाठी 

  ''सुकृति "

25 April, 2022

मेहनत रंग लाई !! (लघु कथा )

मेहनत रंग लाई!!(लघुकथा )

सुनील को उसके काम की वजह से बहुत इज़्ज़त मिलती है |  प्यारी सी मुनिया को पा सुनील मिस्त्री बहुत खुश था |अब दूसरा बच्चा नहीं चाहिए | सुरेखा भी सिलाई करके कुछ पैसे कमा लेती थी सर्व गुण संपन्न ,आठ साल की मुनिया कॉन्वेंट में पढ़ती है | पढ़ने में अव्वल |

 कल मुनिया ने पापा से पूछ ही लिया ,''पापा आप ने क्या पढ़ाई की है ?'' सुनील ने बात टाल दी | उसे लगा अगर  मुनिया को डॉक्टर बनाना है तो उसे पढ़ाई करनी ही पड़ेगी |  उसने मैट्रिक का फॉर्म भर दिया | मेहनत रंग लाती  है | आज मुनिया डॉक्टर है ,सुनील का काम बढ़िया चल रहा है और घर के  बाहर  बोर्ड लगा है सुनील मिस्त्री ,बी ए ,एल.एल बी !!


अनुपमा त्रिपाठी 

  "सुकृति "

19 April, 2022

मेधा (लघु कथा )

रमा मेधावी छात्रा रही |   माँ की तबियत अक्सर ख़राब रहती जिसके चलते सात भाई बहनों में सबसे छोटी रमा को बी ए करते ही ब्याह दिया गया था राम मनोहर पंडित जी के ज्येष्ठ पुत्र अमिय से जो कॉलेज में प्रोफेसर है और जी तोड़ मेहनत आई.ए.एस में आने के लिए कर  रहा है | यूँ तो सभी स्वभाव से नेक दिल हैं लेकिन अपनी अपनी समस्याओं में उलझे रमा की महत्वाकांक्षा की और किसी का ध्यान ही नहीं गया | और अब तो छोटा बिट्टू भी रमा का समय लिए रहता | लेकिन मेधा उसके दिमाग में इस क़दर छाई रहती कि जब भी समय मिले वो कुछ न कुछ पढ़ती  रहती | बाबूजी के साथ टी वी पर भी अच्छे प्रोग्राम देखती और बाकायदा बहस भी करती | बाबूजी प्रसन्न रहते उनकी बहु कितनी गुणवान है | 

अमिय का यह दूसरा अटेम्प्ट था इसलिए संजीदा ही रहते पूरे समय पढ़ाई में व्यस्त | अमिय से रमा ने भी इक्ज़ाम  देने की बात कही तो वो समझा रमा मज़ाक कर रही है | "ये परीक्षा हंसी खेल नहीं है रमा ''अब रमा चुप रही | पर शाम को कॉलेज से आते हुए जब अमिय फॉर्म ले आया तो रमा की ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा | कहीं न कहीं बाबूजी की वृद्ध आँखों ने रमा की मेधा परख ली थी | वे एक तरह से रमा के गाइड ही बन गए | अम्मा भी जानती थीं कि बाबू जी जो भी काम हाथ में लेते हैं उसे पूरी तन्मयता से निभाते हैं | बिट्टू को सम्हालने में अम्मा बहुत मदद करतीं | अमिय अपनी ही पढ़ाई में इतने मशगूल थे कि आस पास देखने की फुर्सत ही कहाँ थी | अमिय के साथ ही रमा भी एक के बाद एक सारे एक्ज़ाम पास करती जा रही थी | कल आई. ए.एस  का रेसल्ट है | रात भर अमिय और रमा सो भी नहीं पाए | चहलकदमी करते ही सारी  रात बीती | कभी कभी बाबूजी की आवाज़ सुनाई पड़ती थी ,''अरे सो जाओ ,सब ठीक होगा | "

अब दस बजे तक का समय कैसे कटे ! लेकिन नौ बजे ही अमिय के मित्र का फोन आया ,''बधाई हो आप दोनों सिलेक्ट हो गए हैं और मज़े की बात है भाभी का स्त्रियों में अव्वल रैंक है !!रमा के आँखों में अविरल अश्रुधारा बह रही थी | वो जानती थी अमिय के प्यार के बिना ,बाबूजी के अथक परिश्रम के बिना और अम्मा के सहयोग के बिना यहाँ तक पहुँचना नामुमकिन ही था !!!


अनुपमा त्रिपाठी 

 "सुकृति ''