01 May, 2022

संस्मरण ....Baroda days ...!!

संस्मरण ....Baroda days ...!!

 

कहते है -जैसे अपने मन के भाव होते है ...वैसी ही दुनियां दिखती है ....!!.भ्रम क्या होता है ...इसी पर कुछ लिखने का मन हुआ ..!!


बहुत दिनों पहले की बात है ..मेरे पतिदेव का वड़ोदरा  स्थानांतरण हुआ था ।हम नए नए ही पहुंचे थे नया घर सुसज्जित कर मन प्रसन्न था ।फ्रिज साफ़ करके जमाया तो हवा का एक झोंका जैसे पल को उदास कर गया ...''अरे सब्जी तो है ही नहीं ..!!"सोचा ..क्यूँ न बाज़ार से सब्जी ही ले आऊँ ..?और शाम को पतिदेव को बढ़िया  सा खाना  ही खिलाऊँ ..!!पिछले कुछ दिनों से ढंग से खाना घर में बना ही कहाँ था ..?प्रसन्न मुद्रा ...अपनी ही सोच में डूबी ....मन ही मन कुछ गुनगुनाती हुई सी ......सब्ज़ी मंडी  पहुंची !बहुत भाव-ताव करना उस समय आता नहीं था .........हाँ पतिदेव की ट्रेनिंग में अब बामुश्किल सीखा है ..!!वो भी शायद ढंग से नहीं ....!!सब्जी खरीद चुकी थी ।लौटते हुए बिलकुल ताज़ी ...हरी धनिया(कोतमीर) दिखी ...!!अरे वाह ...एकदम ताजी धनिया .....!!!हींग जीरे की छुंकी  दाल हो .......और ऊपर से धनिया पड़ा हो .....हमारे घर में खुशी बिखेरने के लिए इतना बहुत है ...!!जब श्रीमानजी के लिए धनिया खरीदी जा रही थी ...तो थोड़ी उनकी ट्रेनिंग भी याद रही ..."थोडा भाव-ताव  किया करो ...!''बस वही याद करते करते लग गए भाव -ताव करने ...!!"अरे इतना महंगा धनिया ..!!!!अरे नहीं भई ...भाव तो ठीक दो ।"अब वो भला मानुस भी अपनी दलीले देने लग गया । मानने को राज़ी नहीं ...खैर मैंने भी सोचा नहीं लूंगी अगर कम में नहीं देगा ....!! मैं पलटी और वापस चल दी   !!


पंद्रह बीस  कदम चल चुकी थी ,तब  न जाने क्या  सोच कर उसने मुझे आवाज़ दी ..."ओ मोठी बेन .....कोतमीर लइए जाओ | " मैं वड़ोदरा  में नई थी और गुजराती भी नहीं जानती थी | और तो और मोटापे की मारी तो थी ही ! अब मोटे इंसान को अगर मोटा कह दिया जाये तो उससे बुरा उसके लिए और कुछ नहीं होता ,यकीन मानिये !!उसकी आवाज़ सुनते ही गुस्से के मारे मैं तमतमा गई  !!"उसने मुझे मोटी  बोला  तो बोला  कैसे ??? पलटकर तेज़  रफ़्तार मैं उसकी ओर बढ़ने लगी !मेरा चेहरा देखते ही भला मानुस मेरे मन की बात समझ गया | तुरंत हाथ जोड़ खड़ा हुआ और बोला " बेन आप गुजरात में नए आये हो ??'' उसके मासूम चेहरे और धीर गंभीर व्यक्तित्व के आगे मेरे गुस्से ने अपने हथियार डाल दिए !! मैंने कहा "हाँ ,क्यों  ??" ''अरे बेन इधर ,हमारे गुजराती में मोठी मने बड़ी बेन होता है मोटी नहीं  !!" इतना कहकर मुस्कुरा दिया | अब मुझे अपनी गलती समझ आई |

इस घटना का असर यह हुआ कि वो सब्जी वाला मेरा परमानेंट सब्जी वाला बन गया ,जब तक मैं वड़ोदरा  में रही |


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कभी कभी थोड़ा हंसना -हँसाना भी सेहत के लिए अच्छा होता है .....!!!


अनुपमा त्रिपाठी 

"सुकृति "

23 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 02 मई 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    1. हार्दिक धन्यवाद आपका मेरे संस्मरण को आपने यहाँ स्थान दिया!!

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 02 मई 2022 को 'इन्हीं साँसों के बल कल जीतने की लड़ाई जारी है' (चर्चा अंक 4418) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. हार्दिक धन्यवाद यहॉँ मेरे संस्मरण को स्थान देने हेतु!!

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  3. सुंदर,सराहनीय मन में उतरता संस्मरण।

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  4. बहुत ही बढ़िया लिखा। सच सब्जियाँ ख़रीदना ऊपर से कौनसी सी खरीदूं ऊपर से जब भाव ताव करे भी तो कैसे? यह सब जग लड़ने से कम नहीं लगता मुझे भी मिठी बहन 😁

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    1. बहुत रोचक संस्मरण !
      परदेस में स्थानीय भाषा से अनभिज्ञता से ऐसे मज़ेदार अनुभव कई बार होते हैं.
      अल्मोड़ा (कुमाऊँ, उत्तराखंड) में परिवार के लिए 'बच्चे' शब्द का प्रयोग होता है.
      मैं अपनी शादी के बाद जब पहली बार अल्मोड़ा लौटा तो मेरे एक वरिष्ठ मित्र ने मुझे शादी की बधाई देते हुए मुझ से पूछा -
      'क्या आपके बच्चे भी आपके साथ आए हैं?'
      मैंने हाथ जोड़ कर उन से कहा -
      'मान्यवर, आप दो-तीन साल का वक़्त दीजिए, मैं बच्चे भी साथ ले आऊँगा.'
      फिर अपने पीछे खड़ी अपनी श्रीमती जी को आगे करते हुए मैंने उन से कहा -
      'फ़िलहाल आप इस बच्ची का प्रणाम स्वीकार कीजिए'

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  5. ये भी ख़ूब रही!!

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  6. बहुत रोचक संस्मरण ! असम में जब हम नए नए थे, एक बार सब्ज़ी बाज़ार गयी, वहाँ के नींबू बड़े और लम्बे होते हैं। मैंने पूछा, कैसे हैं, उत्तर मिला एक रुपए में सारी, बहुत आश्चर्य हुआ, इतने सस्ते कैसे हो सकते हैं, एक रुपया पकड़ाया तो उसने चार नींबू दिए। बाद में पता चला, याँ च को स कहते हैं, और चार को चारी। ऐसे ही एक बार पाँच किलो आटा जिसमें चोकर काफ़ी था, काम वाली को देकर कहा, छान देना, कुछ काम में लग गयी, थोड़ी देर बाद आकर देखा, सारा आटा उसने सान दिया था।

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  7. हा हा हा..रोचक संस्मरण अनुपमा जी।
    ऐसे मीठे किस्से कभी भुलाये नहीं जा सकते।

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  8. बहुत अच्छी पोस्ट।अनुपमा जी सादर नमस्कार

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  9. वाह!अनुपमा जी ,बहुत ही रोचक संस्मरण । हमारे गुजरात में बेन या फिर मोटी बेन और उससे भी बडे हों तो मासी कह कर संबोधित किया जाता है ।

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  10. बहुत ही बढ़िया

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  11. बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  12. बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  13. सभी सुहृद टिप्पणी हेतु पाठकों का सादर धन्यवाद !!

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  14. सुन्दर रोचक संस्मरण

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  15. बहुत रोचक संस्मरण

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  16. मेरी मौसी बड़ौदा में थीं , उनके पास हम 1969 में गए थे । उनके पड़ोस में जो रहतीं थीं एक दिन बोलीं कि कल दिल्ली से मेरी मोटी बहन आने वालीं हैं । अगले दिन बहन को देख तो वो वाकई मोटी थीं । मैंने मौसी को बोला कि ये लोग कैसे बात करते हैं ,ऐसे बोलना चाहिए क्या ? मौसी माउस जी खूब हँसे , फिर बताया कि यहॉं मोटी का मतलब बड़ी होता है ।
    बेहतरीन संस्मरण

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  17. बहुत ही बढ़िया संस्मरण।

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!