13 May, 2010

नई सुबह -3

  अँधेरे कमरे की
  खिड़की से-
  देख रही थी मैं--
 प्रकृति का करिश्मा....!! ,
 व्योम को निर्निमेष निहारती-
 देख रही थी-
 रात के अंधरे को
  जाते हुए ....
  अरुणिमा को-
पृथ्वी पर आते हुए........!!


भाग रही है पृथ्वी निरंतर 
कुछ पाने को 
क्या पाने को ?
हर पल, पल खोते हुए !!
फिर भी ----
सुबह के आने को
 कौन रोक सकता है ?
सूरज की आभा को
 कौन रोक सकता है ?

बंद हों हृदय के द्वार -
फिर भी ---
सुबह के आने को
 कौन रोक सकता है ?
सूरज की आभा को-
 कौन रोक सकता है ?

सूरज की पहली किरण से
मन की सरिता में
 स्पंदन हो ही जाता है ---!
निष्प्राण निस्तभ्ध शरीर में
 प्राण आ ही जाते हैं .....!!
उठो जागो-
 खोलो मन के द्वार ----
एक नई सुबह ने
घूँघट खोल दिया है-
नई  सुबह का आगमन हो चुका है ......!!!!!!

7 comments:

  1. नई सुबह - जन्म दिन पर दिखा फेस बुक पर तुम्हारा ब्लॉग . वाकई नई सुबह की तरह . आज सुबह वैसे मध्य रात्रि से शुरू हुई . मनीषा का जन्मदिन था आज . आशा है , हर महीने कुछ लिखा मिलेगा इस सु - कृति की स्लेट पर . बधाई .

    ReplyDelete
  2. नई सुबह !!! देखा नई सुबह से ही तो निकली ये मन की सरिता ....जो आज कहाँ कहाँ पहुची है ...निष्प्राण निस्तम्ब्ध शरीर में प्राण आना तो स्वाभाविक ही है ...देखो नई सुबह ने घूंघट खोल दिया है ...एक नई शुरूआत हुई है....

    ReplyDelete
  3. nai subha man ko choo lena wali rachana. bahut bahut badhai.

    ReplyDelete
  4. सूरज की पहली किरण से मन की सरिता में --
    नई सुबह ने घूंघट खोल दिया है "
    बहुत अच्छी लगी रचना |
    बधाई
    आशा

    ReplyDelete
  5. आपकी इस कविता ने मन मोह लिया.

    सादर

    ReplyDelete
  6. sunder, ati sundr....man ke aasman ko ek nayi kiran se avgat karane ka safal prayas.

    ReplyDelete
  7. उठो जागो-
    खोलो मन के द्वार ----
    एक नई सुबह ने
    घूँघट खोल दिया है-
    नई सुबह काआगमन हो चुका है ....

    बहुत सुन्दर और सकारात्मक सोच लिए हुए ...१३ मई याद रहना चाहिए मुझे ... अब तो २०१२ में ही देखते हैं की याददाश्त कैसी है :):)

    ReplyDelete

नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!