11 June, 2010

एक मुट्ठी आसमान -4


 भर ली मैंने   इस
 उन्मुक्त गगन में --
 एक छोटी सी उड़ान-
 पा लिया मैंने जैसे --
 एक मुट्ठी आसमान --

सपना सा साकार हुआ --
फिर जीवन से प्यार हुआ-
 बीत चली फिर जीवन की विभावरी -
 नन्हें पंछीके मन जागी उतावली-

नन्हे नन्हे पंख जो आये-
छू लूं उड़ उड़ आसमान
भोर भई अब फिर उड़ चलूँ -
छूलूं उड़ उड़ आसमान -



मन पुलकित तन पुलकित-
पुलक उठी ज्यों वसुंधरा-
जैसे खेतों की हरियाली -
मन भी मेरा हरा -भरा ---



ओस की एक बूँद से-
जैसे प्यास बुझीमेरी -
नन्हें पंछी की उड़ान से -
तृप्त हुई मैं -----

सपना है या सच है ये ---
हाँ -हाँ सच में ---
भर ली मैंने --
इस उन्मुक्त गगन में --
एक छोटी सी उडान --
हाँ हाँ सच में ----
पा लिया मैंने एक मुट्ठी आसमान !!!!!!!!!!!
पा लिया मैंने एक मुट्ठी आसमान!!!!!!!!!

13 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...बस प् लेना एक मुट्ठी आसमां ...तो सारा जग तुम्हारा है

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  2. सरल शब्दों में - संगीतमय कविता . आसमान में उड़ने का सुख बिरले ही पाते. वह फिर स्वप्न में ही क्यों न हो .

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  3. मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

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  4. बहुत ही सुंदर कविता .....
    इस नन्हे पंछी को अभी खूब ऊँचा उड़ना है ...
    आसमान की उचाईयों को छूना है ....

    " जिन्दिगी की असली उड़ान अभी बाकी है ,
    आपके इरादों का इम्तिहान अभी बाकी है ,
    आभी तो नापा है मुट्ठी भर आसमान ,
    अभी सारा आसमान बाकी है !!!!!! "

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  5. प्यारा चित्रण किया है आपने.
    आपकी कवितायेँ गुनगुनाने लायक होती हैं.

    सादर

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  6. अमृता जी, पहले तो आपका आभार 'कोई है' को पुनः पढवाने के लिये, आपकी यह कविता मैंने पहली बार पढ़ी है बहुत सुंदर चित्रों से सजी यह भी आकाश की बात करती है, मुक्त उड़ान का यह स्वप्न आपको बहुत बहुत मुबारक!

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  7. HAR KOE CAHATA HAIN EK MUTHI AASMA
    AASMA TO AANANT AUR AASEEM HAIN
    EK MUTHI MIL JAYE KO KAFI HAIN...
    AUR AGAR PURA AASMA MIL JAYA TO!!!
    BAHUT SUNDER KAVITA

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  8. बढ़िया...चित्रमयी अभिव्यक्ति!!

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  9. नन्हे नन्हे पंख जो आये-
    छू लूं उड़ उड़ आसमान
    भोर भई अब फिर उड़ चलूँ -
    छूलूं उड़ उड़ आसमान -
    ....

    मन पुलकित तन पुलकित-
    पुलक उठी ज्यों वसुंधरा-
    जैसे खेतों की हरियाली -
    मन भी मेरा हरा -भरा ---

    सारा खेल ही इस मन का है सब कुछ जो आपकी कविता में है वो सर्र का सारा हमारे पास होता है..बस जब मन की भोर हो जाए तभी ऐसी उड़ान हो जाती है.
    अनुपमा दी सादर प्रणाम आपको !

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  10. वाह! बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
    पढकर मन हर्षित हो गया है.

    पर आपके मेरे ब्लॉग पर अभी तक न आने से उदास हूँ.

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  11. आशावादी कविता ! बधाई

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  12. आपके सब सपने पूरे हों .शुभकामनायें.

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  13. यह मुट्ठी भर आसमान तीनों लोक से बड़ा है.

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