28 May, 2011

चला वाही देस ... .....!!

चला वाही देस ....!! 
कौन से देस ..?वहां जहाँ मनुष्य के मन में प्रेम इतना प्रबल हो कि अपने अंदर ही नित्य उपजतीं  अन्य नकारात्मक प्रवृत्तियां स्वतः ही दुर्बल  पड़ने लगें ..!! 
        प्रेम एक सुखद अनुभूति है ..!!किसी का हो जाना ..किसी में खो जाना ..किसी में रम जाना ही प्रेम है ..!!किसी में डूब जाना ही प्रेम है |प्रेम एक सद्भावना है जो दुर्भावना मिटा देती है |प्रेम बढ़ने पर सत-चित -आनंद -मन  होता जाता है|हलका - हलका पंछी की भांति ..मन सदा असमान पर उड़ा उड़ा सा रहता है |मन जहाँ -जिसमे लग जाये ..रम जाये ..वही प्रेम है ...|प्रेम से मेरा अभिप्राय सिर्फ किसी स्त्री-पुरुष के ही रिश्ते से नहीं है बल्कि यहाँ मैं प्रेम का वृहत रूप ..यानि अध्यात्मिक प्रेम की बात कर रही हूँ |प्रेम एक प्रवृत्ति है |सकात्मक सोच का सृजन प्रेम से होता है |कोई भी कार्य करें ,प्रेम से करें |यहाँ तक की अगर झाड़ू भी लगायें तो प्रेम से लगायें |इस प्रकार प्रेम से किया गया कार्य मन केन्द्रित करता है |प्रेम प्रबल होने पर जीने की चाह भी प्रबल हो उठती है ..!
              मन लागा मेरो यार फकीरी में ....!!कबीर का मन -''ढाई आखर प्रेम ''में ऐसा रमा कि रमता ही गया और ऐसा काव्य लिख गए पढ़ पढ़ के रहस्य में डूबता ही जाता है मन ...!!मन कहता है .....चला वाही देस ....चला वाही देस ..?कौन से देस ...?जहाँ प्रेम ही प्रेम हो और मन ही उस नगरिया का राजा  हो ...!!अरे ये कैसी सुंदर नगरिया है ...प्रेम आधार हैं यहाँ का ...!तो ..निराधार प्रेम ही समक्ष जीवन का आधार है ..!!
इसी आधार पर सच्चा प्रेम दान है ...प्रतिदान  नहीं ...!!सिर्फ देना ही प्रेम है ...!प्रभु ने प्रेम दिया हमें .. हमसे कुछ लिया तो नहीं .....!!प्रभु ने प्रेम दिया हमें ..प्रभु ने ही ये  सृष्टि रची ...प्रभु की  इस सृष्टि को  प्रभु का दिया हुआ प्रेम बांटना ही प्रेम है |प्रेम सिर्फ कल्पना ही नहीं है ...सच्चाई है कर्तव्य के रूप में ...प्रेम कर्त्तव्य है ...!!ऐसा कर्तव्य जो इश्वर हमें सिखाते हैं और समय समय पर लेते रहते हैं  हैं हमारी परीक्षा ...!!और इसी परीक्षा में सफल और निपुण होने के लिए प्रेम हमें बांधता है अपनी संस्कृति से....!!प्रेम ऐसा कर्तव्य है जो हमारी संस्कृति से हमें बांधे रखता है जीवन में सफलता पाने के लिए .. ..!!एक परिधि स्थापित करता है प्रेम ....!!
                             निर्बाध प्रेम हमें एक बंधन में बाधता है ...!!उस बंधन में जहाँ अपनी संस्कृती हमें सिखाती है -सर झुकाना ...अहंकार तोड़ना ....बड़ों का आदर करना ..प्रेम से बोलना ...प्रेम बाटना...पर ये सिखाता कौन है ...? ..पहली गुरु है अपनी माता ..प्रथम ज्ञान शिशु  माँ से पाता..... माँ से मिला हुआ अद्भुत वरदान है प्रेम |माता -पिता से मिला हुआ अद्भुत वरदान है प्रेम |ईश्वर से   मिला ...?या माता -पिता से मिला ...?देखिये ऐसे ही सिखाती है हमारी संस्कृति माता -पिता को ईश्वर का  दर्जा देना ...!!यही प्रेम है ....!प्रेम शाश्वत है ...!सत्य है ...!! अमर है ...!!
मिल जाने पर सुख और न मिलने पर विद्रोह देता है प्रेम |और इसी विद्रोह पर काबू पाना ही प्रेम है ...हिंसा को छोड़ ,अहिंसा के रास्ते जाना ही प्रेम है ...प्रेम तो अथाह सागर है  ...!! बहुत मुश्किल  से उसे गागर में भरने का प्रयास किया है मैंने ........!!!!!!और प्रयास करते रहना है शायद वही सागर अंजुली में भी भर पाऊँ ...!!



29 comments:

  1. को यूँ परिभाषित कर पाना बहुत मुश्किल है लेकिन आप आपने उद्देश्य में सफल रही हैं.
    बहुत अच्छी शैली है आपके लिखने की.

    सादर

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  2. निर्बाध प्रेम हमें एक बंधन में बाधता है ..बड़े सुन्दरता से प्रस्तुत किया.. आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! अद्भुत

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  3. मिल जाने पर सुख और न मिलने पर विद्रोह देता है प्रेम |और इसी विद्रोह पर काबू पाना ही प्रेम है ...हिंसा को छोड़ ,अहिंसा के रास्ते जाना ही प्रेम है ...प्रेम तो अथाह सागर है ...!! बहुत मिश्किल से उसे गागर में भरने का प्रयास किया है मैंने ........!!!!!!और प्रयास करते रहना है शायद अंजुली में भी भर पाऊँ ...!!bahut hi achche dhang se prem ko parivhshit kiya hai aapne.bahut hi sunder lekh likha hai aapne.bahut hi jyaanverdhak.badhaai aapko.

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  4. मन लागा मेरो यार फकीरी में ....!!कबीर का मन -''ढाई आखर प्रेम ''में ऐसा रमा कि रमता ही गया और ऐसा काव्य लिख गए पढ़ पढ़ के रहस्य में डूबता ही जाता है मन ...!!मन कहता है .....चला वाही देस ....चला वाही देस ..?कौन से देस ...?जहाँ प्रेम ही प्रेम हो और मन ही उस नगरिया का राजा हो ...!
    प्रेम की इतनी व्यापकता प्रेम में ही होती है और जिसने प्रेम को जाना उसके दुःख में भी सुख है

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..प्रेम पर गहन चिंतन

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  6. प्रेम की अति उत्तम व्याख्या………॥

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  7. anupama ji, bahut hi sunder vyakhya ki hai aapne prem ki, prem ek esa prasang hai jiseke bare mian jitna likha jaye kam hai lekin aapne bahut hi sunder prayas kiya hai ise apni gagaria main sametne ka!!!!!! atti sunder rachna!!!! bahut bahut badhai!!!!

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  8. प्रेम के पावन भावों को उल्लेखित करती पोस्ट..... बहुत सुंदर अनुपमाजी

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  9. अनुपमा जी बड़ा ही प्रेरक पोस्ट लिखा है। मन को शान्ति मिली यहां आकर।
    यदि मैं यह समझ लूँ कि मेरा असली गुण प्रेम करना है तो मन में द्वेष आ ही नहीं सकता।

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  10. प्रेम एक सम्मोहन है, जीवन के पथ पर इसकी अपार आवश्यकता है।

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  11. बहुत सुंदर प्रस्तुति. प्रेम कि व्याख्या सुंदर है. बधाई अनुपमा जी.

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  12. प्रेम की बहुत सुन्दर व्याख्या की है अनुपमा जी ! अनंत, आसीम, विराट, वृहद् प्रेम को सूक्ष्म रूप में अंजुली में भरने का उपक्रम बहुत अच्छा लगा ! आपको अनंत साधुवाद !

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  13. @मिल जाने पर सुख और न मिलने पर विद्रोह देता है प्रेम । और इसी विद्रोह पर काबू पाना ही प्रेम है

    प्रेम की बहुत ही सुंदर आध्यात्मिक विवेचना की है आपने। सचमुच प्रेम तो अथाह सागर है।
    आभार, इस उत्तम आलेख के लिए।

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  14. निर्बाध प्रेम हमें एक बंधन में बाधता है
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति .

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  15. सबसे पहले रश्मि जी का आभार ..जिन्होंने मुझे इस काबिल समझा की इतने विस्तृत विषय पर मैं अपने शब्द दे सकूं ...!|
    आप सभी का भी आभार आप ने मेरा लेख पढ़ा ..और सराहा और इतने ध्यान से पढ़ कर अपने विचार दिए ..!!
    |मनोज जी का भी आभार जिन्होंने चर्चा मंच पर मेरे लेख को जगह दी |
    आप सभी की प्रेरणा से ही मन के भाव प्रस्फुटित होते हैं ...!!

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  16. प्रेम तो ऐसी खुशबू जिसको शब्दों में बांध पाना संभव नहीं।

    आप के परिचय में है कि आप संगीत की अध्यापिका हैं क्यों नहीं कुछ गीत गा कर पॉडकास्ट करतीं।

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  17. anupma ji
    aapko hardik badhai jo aapne mere blog par aakar apna bahumuly samarthan diya.
    prem ko paribhashhhit karna itna aasan nahi hai .
    par jis tarah se aapne prem ki vykhya ki hai ki har shbd hi prem -may lagta hai .kitni hi kushalta v gahnta ke saath aapne prem ke anginat rupo ki apni kavita ke madhyam se ujagar kiya hai .
    vaise ye bhi kah sakte hain ki prem ki muk abhivykti bhi hati hai.prem to aanand ka sagar hai har rupo me kyon ki prem anthaan hata hai
    aur prem ki pariniti bhi yahi honi chahiye
    में सफलता पाने के लिए .. ..!!एक परिधि स्थापित करता है प्रेम ....!!
    निर्बाध प्रेम हमें एक बंधन में बाधता है ...!!उस बंधन में जहाँ अपनी संस्कृती हमें सिखाती है -सर झुकाना ...अहंकार तोड़ना ....बड़ों का आदर करना ..प्रेम से बोलना ...प्रेम बाटना...पर ये सिखाता कौन है ...? ..पहली गुरु है अपनी माता ..प्रथम ज्ञान शिशु माँ से पाता..... माँ से मिला हुआ अद्भुत वरदान है प्रेम |माता -पिता से मिला हुआ अद्भुत वरदान है प्रेम |ईश्वर से मिला ...?या माता -पिता से मिला ...?देखिये ऐसे ही सिखाती है हमारी संस्कृति माता -पिता को ईश्वर का दर्जा देना ...!!यही प्रेम है ....!प्रेम शाश्वत है ...!सत्य है ...!! अमर है .
    bahut hi adhbhut vishhleshhan
    badhai
    poonam

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  18. आनंद आ गया पढ़कर। अच्छा लिखा है आपने।

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  19. प्रेम हमेशा ही मेरा प्रिय विषय रहा है... आपने तो इसकी बहुत से परतों को खोल कर रख दिया है... बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर...

    प्रेमरस.कॉम

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  20. प्रेम हमेशा ही मेरा प्रिय विषय रहा है... आपने तो इसकी बहुत से परतों को खोल कर रख दिया है... बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर...

    प्रेमरस.कॉम

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  21. वाह ... बहुत खूब कहा है आपने ।

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  22. नमस्कार शुक्रिटी जी जो आपने हटके अपना ब्लॉग लिखा
    कभी आप लोग मेरे ब्लॉग पर भी आये
    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए
    यहाँ क्लिक

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  23. प्रेम की अबूझ प्रकृति को सरल बनाता आपका यह सुंदर आलेख पढ़कर मन कैसा तो भीग गया है !आभार !

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  24. प्रेम अद्भुत है इसकी व्याख्या करनी मुश्किल है...बहुत अच्छी पोस्ट...

    नीरज

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  25. प्रेम .... प्रेम और प्रेम ... पर क्या प्रेम को कहना आसान है ... क्या प्रेम बंधन है या मुक्ति ....
    प्रेम जीवन है या मृत्यु ... प्रेम के विभिन्न पहलू पर लिखी लाजवाब पोस्ट ....

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  26. sunder aalekh ke liye hardik badhai.You have a personal style of writing and it appeals alot.regards,
    dr.bhoopendra
    rewa
    mp

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!