अविरल पड़ती बूंदे मूसलाधार ...!!
साधक सुर साधें राग-विहाग....!
वर्षा की रिमझिम से दूर ...
धुन में अपनी ही ..अलमस्त...
वर्षा की रिमझिम से दूर ...
धुन में अपनी ही ..अलमस्त...
चित्र में रंग भरता था ..
एक चित्रकार..!!
एक चित्रकार..!!
एक शिल्पकार के लिए ...
गतिमान जीवन की ..फिर भी वही रफ़्तार..........!!
रे मन..
लागी रे ये कैसी लगन....
चलता है ..चलता है....
न थमता है ...
न थकता है ..!
दूर दिखते शैल-पर्ण
आच्छादित ..मेघ श्याम वर्ण ....
आच्छादित ..मेघ श्याम वर्ण ....
घटा बरसती है घनघोर..
हे सृजनहार ...
अबकी न मानू हार ...
रूम-झूम...
बरस जाऊं ऐसे के ..
प्यासा ना रह जाये कोई ...!!
वैविद्ध्य से रचा-बसा...
कुछ इस तरह ...
जैसे कहती हो ..हे सृजनहार ...
अबकी न मानू हार ...
रूम-झूम...
बरस जाऊं ऐसे के ..
प्यासा ना रह जाये कोई ...!!
वैविद्ध्य से रचा-बसा...
जीवन का सुंदर मेला ..
कृपानिधान कृपा करो ऐसी ..
कृपानिधान कृपा करो ऐसी ..
कि रहे न कोई भी अकेला ...
शिल्पकार गढ़ रहा है..
ये कैसा अद्भुत शिल्प...
अरे देखो ..भीगती बारिश में भी ...
ये कौन वृद्ध ...सर पर छतरी लिए ..
बालक को ...
जीवन मार्ग दिखा रहे हैं ...
दूर से आती हुई बस तक ..
विद्यालय छोड़ने जा रहे हैं ..
अपने गंतव्य तक पहुंचा रहे हैं ...!!
अपार..अनंत नयनसुख ..
भर नयनो में ..
जीवन लड़ियों को..
कड़ियों सा जोड़ता हुआ ..
और ..मेरी ही सोच को..
मुझसे आगे-आगे राह दिखाता हुआ ...
ये कैसा सृजनहार है ...!!
ये कौन शिल्पकार है ...?
शिल्पकार गढ़ रहा है..
ये कैसा अद्भुत शिल्प...
अरे देखो ..भीगती बारिश में भी ...
ये कौन वृद्ध ...सर पर छतरी लिए ..
बालक को ...
जीवन मार्ग दिखा रहे हैं ...
दूर से आती हुई बस तक ..
विद्यालय छोड़ने जा रहे हैं ..
अपने गंतव्य तक पहुंचा रहे हैं ...!!
अपार..अनंत नयनसुख ..
भर नयनो में ..
विहंगम मधुरिम दृश्य देख ...
मन स्वयं से पूछ रहा है ..जीवन लड़ियों को..
कड़ियों सा जोड़ता हुआ ..
और ..मेरी ही सोच को..
मुझसे आगे-आगे राह दिखाता हुआ ...
ये कैसा सृजनहार है ...!!
ये कौन शिल्पकार है ...?
Anupama ji man mugdh ho gai aapki yeh rim jhim fuhaaro si pyari kavita padhkar.chitr bhi bahut sunder hain.jindagi chalti rahti hai rim jhim fuhaaron ke beech.
ReplyDeleteमनोहारी ...सुंदर शाब्दिक अलंकरण लिए रचना
ReplyDeleteअरे देखो ..
ReplyDeleteभीगती बारिश में भी ...
ये कौन वृद्ध ...
सर पर छतरी लिए ..
बालक को ...
जीवन मार्ग दिखा रहे हैं ...अभिनव ,मनोरम ,सहभावित भाव विरेचक प्रस्तुति .बधाई ..
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
Wednesday, August 10, 2011
पोलिसिस -टिक ओवेरियन सिंड्रोम :एक विहंगावलोकन .
व्हाट आर दी सिम्टम्स ऑफ़ "पोली -सिस- टिक ओवेरियन सिंड्रोम" ?
सोमवार, ८ अगस्त २०११
What the Yuck: Can PMS change your boob size?
http://sb.samwaad.com/
...क्या भारतीयों तक पहुंच सकेगी जैव शव-दाह की यह नवीन चेतना ?
Posted by veerubhai on Monday, August ८
अहा, अद्भुत चित्रकारी, कहाँ छिपा है चित्रकार?
ReplyDeleteवैविद्ध्य से रचा-बसा...
ReplyDeleteजीवन का सुंदर मेला ..
कृपानिधान कृपा करो ऐसी ..
कि रहे न कोई भी अकेला ...
शिल्पकार गढ़ रहा है..
ये कैसा अद्भुत शिल्प...
यह पूरी सृष्टि ही इस शिल्पकार की शिल्प कला का अद्भत नमूना है बस हम इसे महसूस कर पायें .....भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आपका आभार
WAH kya likha hai aapne ye kon shilpkaar hai.man tak bhigo gayaa ye rinjhim phuaron se bhari rachanaa .bahut hi sunder shabdon ka chayan.badhaai aapko.
ReplyDeleteअत्यंत मनोहारी वर्णन , वर्षा की भीनी भीनी फुहार सा भिगो देने वाला .
ReplyDeleteसुन्दर...मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
ReplyDeleteअद्भुत....
ReplyDeleteबस एक ही शब्द है आपकी इस लेखनी के लिए
बहुत खूबसूरत शब्दों में बाँध लिया शिल्पकार के शिल्प को ..शिल्पकार ही तो नहीं मिलता जब तक हम उसे बाहरी दुनियाँ में ढूँढते हैं ..
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति
अच्छी रचना है जी!
ReplyDeleteध्वन्यात्मकता देखते ही बनती है!
शब्द-शब्द में भाव समेटे प्रत्येक पंक्ति ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ..।
ReplyDeleteये कौन चित्रकार है . अद्भुत मनोहारी शिल्प . आभार
ReplyDeleteऔर ..
ReplyDeleteमेरी ही सोच को..
मुझसे आगे-आगे राह दिखाता हुआ ...
ये कैसा सृजनहार है ...!!
ये कौन शिल्पकार है ...?
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति दिल को सुकून देती हुई सी !
बहुत ही मनभावन रचना।
ReplyDeleteसादर
भावो को शब्दों में बखूबी समेटा है आपने...
ReplyDeleteबहुत खूबसुरती से भावों को शब्दों में बाँधा है ...सुन्दर..
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteरे मन..
लागी रे ये कैसी लगन....
चलता है ..चलता है....
न थमता है ...
न थकता है ..!
शुभकामनाएं.
bahut sunder shabdon se sajayee hai.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना , बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteEk sundar rachna, anupama ji
ReplyDeleteअत्यंत खुबसूरत... आपकी यह कविता तो मानो एक मनभावन पेंटिंग की तरह लग रही है...
ReplyDeleteसादर बधाई....
दूर दिखते शैल-पर्ण
ReplyDeleteआच्छादित ..मेघ श्याम वर्ण ....
घटा बरसती है घनघोर..
प्रेम बरसाती सराबोर.....
कुछ इस तरह ...
जैसे कहती हो ..
हे सृजनहार ...
अबकी न मानू हार ...
रूम-झूम...
बरस जाऊं ऐसे के ..
प्यासा ना रह जाये कोई ...!!
जो भी हो सृजनहार , जो भी शिल्पकार ... भीग भीग जाओ सर से पाँव तक ... देखता रह जाए शिल्पकार
बहुत भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteसुन्दर और सहज अभिव्यक्ति
आशा
मेरी ही सोच को..
ReplyDeleteमुझसे आगे-आगे राह दिखाता हुआ ...
ये कैसा सृजनहार है ...!!
ये कौन शिल्पकार है ...?
प्रकृति के सृजनहार की प्रशंशा में यह प्रस्तुति अत्यंत शोभनीय है
ye hi to vo shilpkaar hai jiska bhed aap, main, ham sab me se koi nahi jaan pata.
ReplyDeleteखूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति....
ReplyDeleteमुझे तो यह चित्रकार आपमें ही दिखा जो शब्दों से चित्र गढ़ता हुआ प्रतीत हुआ। इस अद्भुत चित्रकारी को सलाम!
ReplyDeletemugdh karti hui rachna!
ReplyDeleteसुंदर बिंबों से सजी रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना शेयर करने के लिये बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteवाह मन को भिगो दिया इन शब्दों ने एक नए अंदाज़ में ही पेश किया आपने इन दृश्यों को मन मोह लिया आपकी इस रचना ने और शब्दों के चयन ने
ReplyDeleteकई जिस्म और एक आह!!!
मनोहारी चित्रण - बधाई
ReplyDeleteमधुरिम!
ReplyDeleteअत्यंत खुबसूरत,सादर बधाई....
ReplyDeleteख़ूबसूरत शब्दों का चयन! इतनी सुन्दरता से आपने हर एक शब्द लिखा है की तारीफ़ के लिए अल्फाज़ कम पड़ गए! मर्मस्पर्शी प्रस्तुती!
ReplyDeletehttp://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
congrats didi.Apki poems samajh me to mujhe bahut nahi ati hai b'cos of high level,par itne intellectuals jab itne achhe comments karte hai to i really feel proud.luv u.keep up u r good work& keep moving.Amen.
ReplyDeleteहे सृजनहार ...
ReplyDeleteअबकी न मानू हार ...
रूम-झूम...
बरस जाऊं ऐसे के ..
प्यासा ना रह जाये कोई ...!!
...sundar vihangam drashya ukere diya aapne....
Anupma ji,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, शानदार और भावपूर्ण रचना! उम्दा प्रस्तुती!
अद्भुत चित्रकारी ......
ReplyDeleteHypnoBirthing: Relax while giving birth?
ReplyDeletehttp://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
व्हाई स्मोकिंग इज स्पेशियली बेड इफ यु हेव डायबिटीज़ ?
रे मन..
लागी रे ये कैसी लगन....
चलता है ..चलता है....
न थमता है ...
न थकता है ..!सुन्दर बिम्ब .पारदर्शी रचना भाव सागर में डुबोती .
http://veerubhai1947.blogspot.com/
HypnoBirthing: Relax while giving birth?
कविता का सौंदर्य मन को आकर्षित करने वाला है।
ReplyDeleteमन मोहित करने वाली सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस और रक्षाबंधन की आपको बहुत बहुत शुभकामनायें.
ओह! विलक्षण सुन्दर मनोहारी प्रस्तुति.
ReplyDeleteमन मग्न हो गया है अनुपमाजी.
आपके शब्द,भाव,प्रस्तुतीकरण सभी
अनुपम हैं.
आभार.
आप सभी का आभार ...मेरी कृति को पहचान देने के लिए...!!मन तो कृति ही रचता है ....बनती वो सुकृती आपके आशीर्वचनो से ही है .....कृपया अपना स्नेह बनाये रखें...!!अनुपमा की सुकृती को पहचान देते रहें...!!
ReplyDeleteहे सृजनहार ...
ReplyDeleteअबकी न मानू हार ...
रूम-झूम...
बरस जाऊं ऐसे के ..
प्यासा ना रह जाये कोई ..
ये प्राकृति भी तो सरजनहार ही है ... शिप्कार ही है ... जीवन का शिल्प रचती है ... बहुत सुन्दर रचना है ...