25 June, 2012

हवन का ...प्रयोजन.....!!

मिट्टी के हवन कुंड में....
समिधा एकत्रित ...
की अग्नि प्रज्ज्वलित ....
ॐ का उच्चारण किया ...
अग्निदेव को समर्पित ...
हवि की  आहुती ...
किया काष्ठ की स्रुवा से ...
शुद्ध घी अर्पण ...
मन प्रसन्न ....
धू धू जल उठी अग्नि ...
अहा ...प्रसन्न हुए अग्निदेव ....!!
 
हवन किया ....
हाँ निश्चय  ही ....
प्रायोजित हवन किया ....!!
किंतु फिर भी ...
प्रयोजन तो जाना नहीं-
हवन का ....!!

निष्ठुर  मन ..
निष्ठा ना जाने ...
क्या था प्रयोजन...
ये भी ना माने ...!!
ॐ कहते कहते ध्यान करें .. अहम .....
अब अहम से हम ...
अहम से हटा कर "अ"
अ यानि  अहंकार को ...
अब बनायें 'हम' ....
इस प्रज्ज्वलित अग्नि मे ....
ॐ  कहते कहते ...
चलो करें...
अपने-अपने ....
अहंकार का दाह संस्कार  हम ...!!

 **************************************************************************************
*समिधा -हवन मे इस्तेमाल की जाने वली सूखी लकड़ी  
*हवि-हवन सामग्री
*काष्ठ -लकड़ी
*स्रुवा -वह चम्मच-नुमा बर्तन जिसमें (घी इत्यादि) हवन-सामग्री भरकर हवन-कुंड में आहुति दी जाती है.


34 comments:

  1. ॐ कहते कहते ...
    चलो करें...
    अपने-अपने ....
    अहंकार का दाह संस्कार हम ...!!

    बहुत सुन्दर भाव अनुपमा जी....
    सस्नेह.

    ReplyDelete
  2. अपने-अपने ....
    अहंकार का दाह संस्कार हम ...

    बहुत सुंदर भाव,,,,,

    RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,

    ReplyDelete
  3. हवन किया ....
    हाँ निश्चय ही ....
    प्रायोजित हवन किया ....!!
    किंतु फिर भी ...
    प्रयोजन तो जाना नहीं-
    हवन का ....!!
    saarthak aur sundar.

    ReplyDelete
  4. वाह वाह अनुपम हवन, किन्तु प्रयोजन भूल ।

    आँख धुवें से त्रस्त है, फिर भी झोंके धूल ।

    फिर भी झोंके धूल , मूल में अहम् संभारे ।

    सुकृति का शुभ फूल, व्यर्थ ही ॐ उचारे ।

    अहम् जलाए अग्नि, तभी तो बात बनेगी ।

    आत्मा की पुरजोर, ईश से सदा छनेगी ।।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत आभार रविकर जी ...

      Delete
  5. अपने-अपने ....
    अहंकार का दाह संस्कार हम ...!!
    अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ...उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति के लिए आभार

    ReplyDelete
  6. अपने अहंकार का दाह संस्कार...
    यही यज्ञ का प्रयोजन है...
    बहुत सुंदर रचना.... सादर।

    [यह बात अलग है की आजकल अपने काले कारनामों को हवि बनाकर स्वाहा करने के लिए भी ‘हाई प्रोफाईल यज्ञ’ प्रायोजित किए जा रहे हैं देश में...! :)) ]

    ReplyDelete
  7. क्या बात कही है ..वाकई हवन तो ऐसा ही होना चाहिए जहाँ सारी कुचेष्ठाएं और बुराइयां अहंकार सब भस्म हो जाएँ.

    ReplyDelete
  8. हवन किया ....
    हाँ निश्चय ही ....
    प्रायोजित हवन किया ....!!
    किंतु फिर भी ...
    प्रयोजन तो जाना नहीं-
    हवन का ....!!... अप्रत्याशित भाव

    ReplyDelete
  9. सुन्दर और शानदार प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  10. यज्ञ का प्रयोजन तो अब प्रायोजित होने लगा है , सामाजिक बुराइयों के पतन के लिए हमे अपने अहम् की हवि डालनी ही होगी . उत्तम भाव . और इश्वर आपको ऐसे ही अहम् से सदैव दूर रखे . आभार

    ReplyDelete
  11. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २६/६ १२ को राजेश कुमारी द्वारा
    चर्चामंच पर की जायेगी

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत आभार राजेश जी ....

      Delete
  12. चलो करें...
    अपने-अपने ....
    अहंकार का दाह संस्कार हम ...!!

    तथास्तु ...

    ReplyDelete
  13. बहुत ही अच्छी बात कही है
    ॐ कहते कहते ...
    चलो करें...
    अपने-अपने ....
    अहंकार का दाह संस्कार हम ...!!
    बहुत ही बेहतरीन रचना...
    :-)

    ReplyDelete
  14. हर हवन का यही उद्देश्य हो..

    ReplyDelete
  15. वाह .... हवन का सटीक प्रयोजन .... पढ़ कर ही मन सुवासित हो गया ...

    ReplyDelete
  16. bahut -bahut hi badhiya prastuti.
    sach!bilkul sateek arty me havan ka ka prayojan
    bahut hi hi achha laga=====
    poonam

    ReplyDelete
  17. कितना सुखद होता जब अहंकार जल जाता..अति सुन्दर...

    ReplyDelete
  18. शानदार प्रस्तुति...सुन्दर.

    ReplyDelete
  19. वाकई हवन ऐसा ही होना चाहिए जहाँ सारी कुचेष्ठाएं और बुराइयां,अहंकार सब भस्म हो जाएँ. अर्थात अहम् स्वाहा..............उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति के लिए आभार.

    ReplyDelete
  20. हर इन्सान को इस कविता से सीख लेकर अपने अहंकार को स्वाह कर देना चाहिए... दुनिया खूबसूरत हो जाएगी

    ReplyDelete
  21. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

    ReplyDelete
  22. वाह मधुर मधुर ...

    ReplyDelete
  23. अहम से हम तक जाने की शिक्षा - बहुत सुन्दर!

    ReplyDelete
  24. कब कैसे चुपके से ये अहम हमारे अंदर प्रवेश कर जाता है ....पता ही नहीं चलता .....जब भान होता है ...तब तक इसकी जड़ें गहरी हो चुकी होती हैं ...बुराई तो इंसान को घेरती ही है ....बस उसको समय रह्ते ...जान लें ...पेह्चान लें हम ...!!अब जब भी किसी हवन मे जाती हूँ ध्यान रखती हूँ ...आज अपने अहम को इस हवन को स्वाहा करके ही आऊंगी....!!
    आप सभी का आभार ...आपने मेरे इन विचारों को सराहा ...!!

    ReplyDelete
  25. हवन की सुंदर परिभाषा....

    ReplyDelete
  26. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    सूचनार्थ!

    ReplyDelete
  27. वाह बहुत खूब !

    अपने अपने अहं का
    दाह संस्कार बहुत बार
    करके चले आते हैं
    पूरा का पूरा जलाते हैं
    भस्म भी उठा के
    कटोरे में ले आते हैं
    अहं जलने के बाद
    फिर से पनप जाता है
    पेड़ पर उगने वाले
    पैरा साईट की तरह
    मन में पैर जमा
    के फैल जाता है !

    ReplyDelete
  28. ॐ कहते कहते ...
    चलो करें...
    अपने-अपने ....
    अहंकार का दाह संस्कार हम ...!!वाह बहुत सुन्दर..आभार अनुपमा जी..

    ReplyDelete

नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!