19 December, 2012

प्रस्तार कहाँ से लाऊँ ...

आज फिर चली जा रही हूँ ...
बढ़ी जा रही हूँ .....
आस से संत्रास तक .....
खिँची खिँची ...
नदिया किनारे ....
कुछ यक्ष प्रश्न लिए ...
डूबता हुआ सूरज देखने ....
पंछी लौटते हुए .. ...अपने नीड़....
मेरे हृदय  में भरी जाने क्या पीर ....
कहाँ है  मेरी आँखों में नीर ....??

जवाब नहीं देती ....
दग्ध ....
सुलक्षण बुद्धि भी ..
जैसे कुछ पल ....
आराम करना चाहती है .....!!

धीरे धीरे डूब गया है सूरज .....
भावनाओं का ......
गहन अंधकार से घिरी मैं ...
तम की शैया पर सोचूं ...
पलक कैसे झपकाऊँ ...?
दुस्तर   प्रस्तार कहाँ से लाऊँ ...?
गहन अंधकार को भेद ...
संत्रास कैसे मिटाऊँ ....??

जीवन ज्योति किस विध पाउँ ..?
धीर धरूं ...धैर्य कि माला जपूँ..
गहन आराधन समय बिताऊँ ...
जो होगा  प्रार्थना में दम ....
समय के साथ ...
मिट ही जायेगा .... ये तम.... !!
आस मैं मिटने नहीं दूँगी ....
संत्रास मैं रहने नहीं दूँगी .

होगी ही ...फिर होगी भोर ....
संस्कृति ...सभ्यता पर छाया घना कोहरा छंट जाएगा ...
विवेक    हृदय   द्वार  खटखटाएगा .....
यदा यदा ही धरमस्य ग्लानिर्भवति भारत .....
जन जन मानस मे कृष्ण बन ...
आएगा आयेगा पुनः ....
 सवेरा ज़रूर आयेगा .....!!

28 comments:

  1. आपकी प्रार्थना में दम है और साथ हमारा भी... पुनः
    सवेरा जरुर आएगा ....
    शुभकामनायें!

    ReplyDelete
  2. संस्कृति ...सभ्यता पर छाया घना कोहरा छंट जाएगा ...
    विवेक हृदय द्वार खटखटाएगा .....
    यदा यदा ही धरमस्य ग्लानिर्भवति भारत .....
    जन जन मानस मे कृष्ण बन ...
    आएगा आयेगा पुनः ....
    सवेरा ज़रूर आयेगा .....!!
    उम्मीद पर दुनिया कायम है .... पर कब आएगा वो सवेरा ॥जब सब कुछ रसातल में पहुँच जाएगा ...? मन को सुकून देती रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. सच है ॥उम्मीद प्रबल है दी .....प्रार्थना है भगवान से आगे सब अच्छा हो .....हमारी संस्कृति अब और गिरने से बच जाए .....वरना हम आने वाली पीढ़ी को क्या दे पाएंगे ....??दिन ब दिन इस तरह के हादसे ....टी.वी ,अखबार सब इन्हीं समाचारों से भरे रहते हैं .....बस ईश्वर से प्रार्थना है ...दामिनी की रक्षा करें ....

      Delete
  3. यदा यदा ही धरमस्य ग्लानिर्भवति भारत .....
    जन जन मानस मे कृष्ण बन ...
    आएगा आयेगा पुनः ....
    सवेरा ज़रूर आयेगा .....!!

    ....यही विश्वास अब बाकी है...बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

    ReplyDelete
  4. बिलकुल सही बात कही है और इसके बारे में संगीता जी और कैलाश जी की बात से सहमत हूँ .

    ReplyDelete
  5. यदा यदा ही धरमस्य ग्लानिर्भवति भारत .....
    जन जन मानस मे कृष्ण बन ...
    आएगा आयेगा पुनः ....
    सवेरा ज़रूर आयेगा .....!!

    बेहतरीन अभिव्यक्ति,भावपूर्ण सुंदर रचना,,,,

    recent post: वजूद,

    ReplyDelete
  6. खुबसूरत अभिवयक्ति...... .

    ReplyDelete
  7. उम्मीद पर तो दुनिया कायम है....
    मगर असहाय महसूस करते हैं आज....उम्मीद टूटती सी जाती है....

    सशक्त और आस जगाती रचना..
    सस्नेह
    अनु

    ReplyDelete
  8. आएगा आयेगा पुनः ....
    सवेरा ज़रूर आयेगा बहुत खुबसूरत आस जगाती सुन्दर सशक्त रचना..आभार

    ReplyDelete
  9. आस यही है, हम बैठे हैं,
    सूरज उगना चाहे जब भी।

    ReplyDelete

  10. धीरे धीरे डूब गया है सूरज .....
    भावनाओं का ......
    गहन अंधकार से घिरी मैं ...
    तम की शैया पर सोचूं ...
    पलक कैसे झपकाऊँ ...?
    दुस्तर प्रस्तार कहाँ से लाऊँ ...?
    गहन अंधकार को भेद ...
    संत्रास कैसे मिटाऊँ ....??
    मन को झकझोरती रचना

    ReplyDelete
  11. सवेरा ज़रूर आयेगा ...बिलकुल सही लिखा है.....साहिर ने कहा था...रात भर का मेहमान अँधेरा, किसके रोके रुका है सवेरा. अगर पीछे का इतिहास देखा जाय, तो हिंसा या क्रूरता पहले कम नहीं थी. पर अभी भी बहुत कुछ होना है सभ्य समय के निर्माण के लिए. उम्मीद तो है ही और बेहतरी भी होगी जरूर.

    ReplyDelete
  12. निराशा एवं वेदना के घनघोर तिमिर में आलोक की नन्हीं सी किरण बन सहलाती सी रचना ! आपकी प्रार्थना में मेरा स्वर भी सम्मिलित हो गया है स्वत: ही ! शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  13. रखती हूँ हर पाँव यही दृढ विश्वास लिए...

    ReplyDelete
  14. आस मैं मिटने नहीं दूँगी ....
    संत्रास मैं रहने नहीं दूँगी .
    अति सुंदर..अंतर को प्रेरणा से भरते शब्द..

    ReplyDelete
  15. ये विश्वास बना रहे.........और हमे खुद भी आगे आना होगा ।

    ReplyDelete
  16. दरअसल आशा और उम्मीद विलंबित होने के कारण ही इन शब्दों पर से विश्वास उठने लगता है... वो सुबह कभी तो आयेगी सुनकर बहुत अच्छा लगता है... लेकिन कहीं से कोई किरण नहीं फूट रही..
    एक मुहावरा कि जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड की तरह अब तो आशाओं के साथ भी यही लगने लगा है.. आपकी कविता फिर भी एक उम्मीद जगाती है!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आस मैं मिटने नहीं दूँगी ....
      संत्रास मैं रहने नहीं दूँगी .

      अभी तो संत्रास की पराकाष्ठा ही थी यह घटना ...!!फिलहाल कैसे उबरा जाये .....??कुछ क्षणों मे ही उस लड़की का जीवन तो नर्क हो गया ....जस्टिस अब क्या मिलेगा उसको ??संस्कृति सभ्यता की जड़ें इतनी गहरी हैं कि व्यापक रूप से देखा जाए तो इसे बहुत दुर्भाग्य पूर्ण कृत्य मान कर कुछ दिनों मे लोग भूल भी जाएंगे और जन आक्रोश जिस प्रकार उमड़ा है लोग इस घटना कि पुनरावृत्ति न हो इसके भरसक प्रयास करेंगे भी ...!!......निश्चित रूप से नया सवेरा तो आएगा ही .....किन्तु उस लड़की का क्या होगा यह सोच कर रूह कांप जाती है ....!!गहन आराधन उसी के लिए करती हूँ .......ईश्वर उसका भला करें .....
      बहुत आभार सलिल जी अपने अमूल्य विचार देने के लिए ....

      Delete
  17. आभार शास्त्री जी ।

    ReplyDelete
  18. एक नई सुबह की शुरुवात अभी होनी बाकि है

    ReplyDelete
  19. उस सवेरे की आस में ही जिये जा रहे हैं।।। सुंदर प्रस्तुति।।

    ReplyDelete
  20. आयेगा वह सवेरा
    जो मिटायेगा तिमिर घनेरा .

    सामयिक और सटीक सुंदर भी ।

    ReplyDelete
  21. सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार

    ReplyDelete
  22. दामिनी के लिए दो शब्द आस के और गहन आराधन मेरा .....आभार आप सभी का मेरी प्रार्थना के स्वरों को बल देने के लिए ...

    ReplyDelete
  23. मिट ही जायेगा .... ये तम.... !!
    आस मैं मिटने नहीं दूँगी ....
    संत्रास मैं रहने नहीं दूँगी .
    आमीन !!

    ReplyDelete
  24. आज दूसरी बार नैराश्य भावना से परिपूर्ण कविती पढ़ रही हूँ
    पहली कविता फाल्गुनी दीदी की पढ़ी

    ReplyDelete
    Replies
    1. कैसी निराशा सी छाई थी .....मन मे आस कैसे बची रहे ....बस गहन प्रार्थना ही आस जागृत रख पाती है ....देखो ईश्वर रक्षा कर ही रहें हैं उसकी .....आगे भी करेंगे यही विश्वास है .....!!!!

      Delete
  25. बहुत आभार यशोदा ....!!

    ReplyDelete

नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!