19 September, 2013

ज़िंदगी मुस्कुराने लगी ...!!

रात  ढली   और ....
सुबह कुछ इस तरह  होने लगी ....!!

गुलमोहर  से रंग झरे ...……
सूरज ऐसा रोशन हुआ ...
कि मोम भी पिघलने लगी ...

आम्र की मंजरी पर बैठी कोयल ...
पिया का पतियाँ  लाई .....
कूक कूक
राग वृन्दावनी  सारंग सुनाने लगी ...

भरी दोपहर याद पिया की ..
बिजनैया जो डुराने लगी ...
कूजती रही  कोयल ...
हूक जिया की,
पल पल जाने लगी ...
निरभ्र  आसमान में ,
चहकते विहग ....
जैसे ज़िंदगी मुस्कुराने लगी ...!!

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वृन्दावनी सारंग दिन में गाए जाने वाला राग है …!!
बिजनैया -पंखा
डुराए -झुलाना .

20 comments:

  1. मुस्कुराती रहे ज़िन्दगी यूँ ही....
    सुन्दर रचना...

    सस्नेह
    अनु

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  2. ये अनुपम लेखनी अपूर्व छटा बिखराने लगी..
    जैसे ज़िंदगी मुस्कुराने लगी...

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  3. जैसे ज़िंदगी मुस्कुराने लगी....sundar post...

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  4. बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...

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  5. आम्र की मंजरी पर बैठी कोयल ...
    पिया का पतियाँ लाई .....
    कूक कूक
    राग वृन्दावनी सारंग सुनाने लगी ..
    वाह.. सुरीली सी पंक्तियाँ..

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  6. और थका हारा मैंने भी जब पढ़ा शाम में तो मैं भी मुस्कुराने लगा क्योंकि कविता है है ऐसी. अति सुन्दर.

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  7. वृन्दावनी सारंग ke sumadhur svar!! :)

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  8. राग और बंदिश , रचना और उसका संसार दोनों समस्वरता लिए हैं।

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  9. ओहो बहुत ही सुन्दर

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  10. वाह ... रागों की ताजगी लिए शब्द ...
    दिन को ओर सुंदर बनाती धूप के रंग लिए ...

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  11. सुन्दर रचना!
    शुभकामनाएं!

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  12. पिया का पतियाँ लाई .....
    कूक कूक
    राग वृन्दावनी सारंग सुनाने लगी ..
    वाह.. बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ

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  13. सुहानी सुबह का सुंदर चित्रण !

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  14. ज़िंदगी मुस्कुराने लगी ...!!

    कविता आपकी खुद बा खुद गुनगुनाने लगी।

    बेहतरीन माधुर्य भाव की रचना।

    शुक्रिया आपकी टिपण्णी का।

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