दूर -सुदूर ...क्षितिज तक व्यापक ---
सागर का विस्तार .....!
लहर -लहर लेहेरों में छिपाए -
अनगिनत मोतियों के हार ....!!
तट पर खड़ीखड़ी मैं देखूं -
उद्वेलित चंचल लहरें --
दौड़ -दौड़ कर भाग -भाग कर --
जीवट जीवन जी ही लें....!!!!!
दूर से दिखती हुई ..आती हुई .....
भर भर के उन्माद ..उत्साह ,उल्लास....
फिर आकर मेरे पास ....
ले जातींहैं ,
तलुए के नीचे की ,
वो ठंडी ठंडी रेत .......!
दे जाती हैं -उसी स्पर्श से -
जीवन जीने का सन्देश .....!!
देने की भावना से ओतप्रोत -
लेने की भावना से भी ओतप्रोत -
ले जाती हैं उसी स्पर्श से-
कटु अनुभवों का -
जीवन का एहसास --
दे जाती हैं उसी स्पर्श से -
उन्माद,उत्साह , उल्लास ....!!
रहे सदा ही प्रभु -कृपा --
यही रूप सागर का देखूं --
इतना ही बल देना प्रभु -
बल सबल बने --
क्रंदन न बने --
किसी की मुस्कान बने -
आंसू न बने ....
गुण सद्गुण बने अवगुण न बने --
जोश छल कर ..आक्रोश न बने ....
यही रूप सागर का देखूं --
देखूं सागर का विस्तार --
सागर का विस्तार -
मैं ले लूं सागर से विस्तार --
ले जाऊं मैं विस्तृत नभ से
विस्तृत सागर सा विस्तार ...!!!!!!
सा...गर...सा.....विस्तार..........!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!