10 March, 2011

फागुन की दस्तक ......!!

बंद नयनों से भी -
दृष्टिगोचर होता है अब ...!!
बिना आहट के भी -
श्रुतिपूर्ण है सब ..!!

अनाहत नाद सा या -
भीतर चिर शोभायमान -
ज्योति पुंज सा ..!!
उदीप्त...!!
और प्रमुदित..!
कौमुदी कौस्तुभी लिए ..!!
सहर्ष -
सहृदयता ,सहिष्णुता से 
पल्लवित... सुरभित.......
मधुर स्वरों से-
ओत-प्रोत ....!!
कहरवा सा बजाता हुआ -
रंग उड़ाता हुआ.........
झूमता गाता नाचता -
आ गया फागुन -
छा गया फागुन..........! 

अब फागुनमय 
हुई है सृष्टि -
रंग -बिरंगे
फूलों से लदी,
रंगी -
तन -मन 
सराबोर करती हुई -
पलाश का 
केसरिया रंग संग -
मन उमंग देता हुआ -
शबनमी एहसास सा-
अंतस भिगोता हुआ -
 रंगों में भीगा  हुआ -
आ गया फागुन -
छा गया फागुन ...!!


होली ने दे दी है दस्तक -
भर दिए हैं अनेकों रंग 
प्रकृति की छटा में -
डूब गया है -
श्याममय मन 
सुध-बुध बिसराए -
फागुन  के  गीत  गाए -
श्याम संग खेलूं होरी ..!!
बरजोरी ...करजोरी ...!!
अबकी होली--
 मैं श्याम की हो ..ली .. ....!!!
मैं पिया की-
 हो ..ली ..!!!!!!
 प्रतीक्षा की इतिश्री 
 के बाद  अब ........
निर्गुण सगुन बन -
अब आ गया है फागुन ..!!
छा गया है फागुन ........!!!!!!!!
-

14 comments:

  1. होली पर सुन्दर रचना बधाई |
    आशा

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  2. हां, जी अब तो फगुनाहट आने लगी है!

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  3. अंतस भिगोता हुआ -
    रंगों में भीगा हुआ -
    आ गया फागुन -
    aao rang khelen , fagun ke geet gayen

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  4. रंग बिरंगा फागुन आया,
    सबको जीभर और लुभाया।

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  5. holi ke liye sundar rachna
    holi ki agrim shubhkamnaye

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  6. बहुत से रंग ले कर दस्तक दी है फागुन ने ...होली और पिया की होली ...बढ़िया प्रयोग शब्दों का ..

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  7. मनमोहक फागुन के सुखद आगमन की सुन्दर रचना । आभार...

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  8. nice poem with all the feel and fragrance of the season and the festival.

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  9. बहुत सुन्दर होलीमय रचना।

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  10. बहुत ही खूबसूरत रंगों से सराबोर यह पंक्तियां ...सुन्‍दर प्रस्‍तुति ...।

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  11. सुंदर फगुनी वयार बहाई है आपने इस सुंदर कविता के माध्यम से. चलिए आपकी कविता से होली आने का ढोल बज गया अब और रचनाएँ होली पर पढ़ने को मिलेंगी.

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  12. -------------------
    फागुन की दस्तक ......!!
    - बंद नयनों से भी - दृष्टिगोचर होता है अब ...!!
    बिना आहट के भी - श्रुतिपूर्ण है सब ..!!
    अनाहत नाद सा या - भीतर चिर शोभायमान - ज्योति पुंज सा ..!
    ----------------
    शास्त्री जी ,
    मेरी कविता चर्चा मंच पर लेने के लिए बहुत बहुत आभार आपका |

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  13. प्रतीक्षा की इतिश्री
    के बाद
    निर्गुण सगुन बन
    आ गया है फागुन !
    छा गया है फागुन !

    फागुन का स्वागत गान करती हुई मोहक कविता।
    बधाई एवं शुभकामनाएं।

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  14. आप सभी ने मेरी रचना पसंद की ....आभार ...!!
    फागुन में हम किसी को रंग लगा कर अपना बनाते हैं या किसी के रंग में सराबोर हो जाते हैं .....बहुत ही शुद्ध -आधात्मिक भाव से देखें तो ये ही असली होली है ....!!
    यही हमारी सभ्यता से जुडी बातें हैं जिन्हें दौड़ते भागते हुए जीवन में हम भूलते जा रहे हैं ....!!आध्यात्मिक होली याद रखें -खूब मनाएं और खूब रंग खेलें....फाग उड़ायें....फाग गएँ .....होली की पुनश्च शुभकामनायें .....!!!

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!