27 May, 2012

कलापि...

बिना स्वरों के ...
जनम जनम से ...
रिक्त सी थी ..
प्यासी काया ..,
तपते  सूर्य की ज्वाला में ..
जन्मों से तन जलाया ...!!

पूरिया कल्याण ...
हुई अर्हणा  ...
आज तो ....
बरसे प्रभु कल्याण ...!!
दे रहे ..ज्ञान ..
अमृत वरदान ...!!

अदृश्य   झरता है ....
श्रुति का दान ...
स्वरों  का ..गान  ......!!
रिस-रिस भरता  मन प्राण ...!!


सप्त  स्वरों  की  मायावी ...
माया नगरी में अहर्निश ......
विस्मृत सी ऐसी खो गयी ....
जैसे चाँद की चकोर हो गयी ....

मोरनी बनी उस  मोर की ...
स्वरों की सरगम सा ....
सातों रंगों में डूबा ...
मेरा  चितचोर ...
निहारूं नयनाभिराम कलापि ...
झूम झूम जब नाच रहा मोर ....!!
*************************************************************************************
*श्रुति- स्वरों का सुरीलपन |स्वर का वो नाद जिस पर वो सबसे सुरीला होता है |
* पूरिया कल्याण-राग का नाम है .
* अर्हणा-सम्मान
*अहर्निश -रात और दिन .
मोर के फैले हुए पंख कलापि  कहलाते हैं ...!
बड़े गुनी गायकों का कहना है ...कि साधना जब एक अवस्था से आगे बढ़ जाती है तो राग के स्वर दिखने लगते हैं ....हमें वो राग अपना रास्ता खुद बताती है ....यही तो  परमानन्द की स्थिति होती है .....यही शास्त्रीय संगीत का आनंद है ...!!
ऐसे ही कुछ भावों को लिए है ये रचना ....!!

35 comments:

  1. जब बिना स्वरों के ...
    जनम जनम से ...
    रिक्त सी थी ..
    प्यासी काया ..,
    जैसे सूर्य की भीषण ज्वाला में ..
    धू-धू तन जलाया ...!!शब्दों की अनवरत और....और सार्थक पोस्ट..... गहन अभिवयक्ति......

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  2. अच्छी कविता है
    बहुत सुंदर

    ( लेकिन जब आप कविता के अंत मे एक एक शब्द का अर्थ लिखतीं हैं तो मुझे लगता है मैने आपका काम बढ़ा दिया। पर सच बताऊं मुझे तो कलापि के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। आपने अर्थ लिखा जिससे वाकई आसान हो गया। )

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    1. अर्थ देना सभी पढ़ने वालों के लिये लाभप्रद है |क्लिष्ट हिंदी लिखने वालों से मेरा भी यही आग्रह रहता है |सच मायने मे अर्थ देना मेरे ही लिये श्रेयस्कर है ,कम से कम पढ़ने वाला समझे तो कि लिखा क्या है |आभार आपको कविता पसंद आयी |

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  3. बहुत सुंदर कविता । मेरे नए पोस्ट "कबीर" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद।

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  4. क्या बात है!!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 28-05-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-893 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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    1. बहुत आभार चंद्र भूषण जी ....!!

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  5. मुझे आज एक्ज नया शब्द मिला अनुपमा जी बहुत अच्छी रचना। । धन्यवाद।

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  6. झर झर बहता शब्द प्रपात..

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  7. सुरों की सरगम सा ....
    सातों रंगों में डूबा ...
    मेरा चितचोर ...
    निहारूं नयनाभिराम कलापि ...
    झूम झूम नाच रहा मोर ....!!

    सदैव की भांति खुबसूरत भावों के साथ सुन्दर शब्दावली का संयोजन जिसमें अभिधा ,व्यंजना, और लक्षणा, शब्द शक्ति का अद्भुत योग रचना को सार्थक बना देती है .

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  8. अनुपमा जी.....
    थोडा मुश्किल लगा कविता को समझ पाना......
    बार-बार पढ़ती गयी...जब तक भीतर न उतरी.....
    :-)

    बहुत सुंदर!!

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  9. शास्त्रीय तालो पर मयूर के साथ मन मयूर भी भी थिरकता है . कलापि की सदृश खूबसूरत रचना .

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  10. बहुत ही उच्च स्तरीय शब्दों का इस्तेमाल किया है.
    बहुत सुन्दर रचना...:-)

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  11. शब्दों के अर्थ लिख देने से रचना के भाव समझने में आसानी हो जा जाती है,,इसके लिये आभार इस सुंदर प्रस्तुति के लिये बधाई ,,,,,

    RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, जिस्म महक ले आ,,,,,

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  12. shabd, chitr, bhaav, kaavy, samarpan sabka jaadoo mishrit hai is panchamrit me...chakh kar tripti huyi...

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  13. कुछ शब्दों को मैं गूगल कर ही रहा था कि नीचे शब्दार्थ लिखे दिख गए.. :)
    बहुत सुन्दर, भावपूर्ण, भक्तिपूर्ण रचना..
    सादर,
    मधुरेश

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  14. सप्त स्वरों की मायावी ...
    माया नगरी में अहर्निश ......
    विस्मृत सी ऐसी खो गयी ....
    जैसे चाँद की चकोर हो गयी ....अदभुत अनुपम भाव

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  15. कलापि का सुखद दर्शन!

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  16. भावमय करते शब्‍दों के बीच उनके विस्‍तृत अर्थ रचना की उत्‍कृष्‍टता को बढ़ा देते हैं ...बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  17. संगीत के स्वरों, रागों और सुंदर चित्रों से सजी सुंदर पोस्ट ! चकोर और मोरनी सी आपकी साधना इसी तरह सुरों को समर्पित रहे..

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  18. बेहद गहन भावो का समावेश किया है।

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  19. शब्द चयन लाजवाब
    बेहतरीन भाव

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  20. वाह! यूँ लगा कि संकट मोचन मंदिर में बैठा शास्त्रीय संगीत सुन रहा हूँ।
    कठिन शब्दों का अर्थ लिखने के लिए धन्यवाद। बिना इसके इतना आनंद नहीं आता।

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  21. बहुत ही सुंदर शब्द संयोजन अनुपमा जी बेहतरीन भवाव्यक्ति ....

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  22. आनंदम...आनंदम..निर्झर आनंदम...

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  23. सशक्त शाब्दिक चित्रण.....

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  24. सशक्त शाब्दिक चित्रण.....

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  25. वाह! बहुत सुन्दर काव्य!
    आनंदित हुआ मन!

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  26. वाह...आनंद आ गया..अगर आप शब्दों के अर्थ नहीं लिखती तो कविता अच्छे से समझ में भी नहीं आती मुझे :) :)

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  27. सप्त स्वरों की मायावी ...
    माया नगरी में अहर्निश ......
    विस्मृत सी ऐसी खो गयी ....
    जैसे चाँद की चकोर हो गयी ....

    मोरनी बनी उस मोर की ...
    iss baar aapne kuchh tough words use kiye.. ham jaise seedhe saadhe pathako ke liye achchha tha aapne sabdarth bhi de diya.
    bahut bethareen:)

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  28. संगीतमय काव्य रचना ,,,,, अद्भुत .....जैसे स्वर लहरी पर मन मयूर ही नाच उठा हो .... सुन्दर प्रस्तुति

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  29. इस तरह की रचनाएं पढ़ना, एक सुखद आध्यात्मिक अनुभव से गुज़रना ही है। शब्द और भाव मिल कर जब राग बन जाएं तो अलौकिक सुख मिलता है, वही तो हमें उस तक पहुंचाता है।
    कई नए शब्दों से आपके द्वारा बताए गए अर्थ से परिचय हुआ।

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  30. सुंदर शब्द...
    सुंदर भाव...
    सुंदर सरगम...
    सुंदर चित्र...
    सुंदर कलापि...
    मुग्ध कर देने वाला रचना !!

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  31. सप्त स्वरों की मायावी ...
    माया नगरी में अहर्निश ......
    विस्मृत सी ऐसी खो गयी ....
    जैसे चाँद की चकोर हो गयी ....
    ...
    दीदी ..सही राह है बस डूबते ही जाना !

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!