31 May, 2012

मैं बूँद ... कहाँ जाऊं ...?

जब तक सांस चलती है तभी तक जीवन है ....!!हम चाहें तो सार्थक  कर्म कर उसे सवाँर  लें और प्रभु के चित्त में स्थान पा लें  या ....पछताते रहें .....समय तो निकल ही जायेगा ...रुकेगा तो नहीं ............

                                 
आँख से  
छूट कर ...
पात सी टूट कर ....
गिर क्यूँ गई ....?
मैं बूँद ...कहाँ जाऊं ...?
चैन न पाऊँ ...अकुलाऊँ .!!
प्रभु चित्त ही मेरो देस ..
अब   पछताऊँ .....

नयन नीर ..धर धीर ..
पी लिए होते ...!
मन का -
मध्यम  तीवर स्वर(तीव्र म) ..
बाँध लिया होता ....
स्वर कोमल रे मन रिषभ (रे)-
साध लिया होता ....
तब गाती गुण ...
प्रभु सुन-सुन ....
हर्षाते ...चित्त  लगाते .....!!
अब आँख से 
छूट कर ...
पात सी टूट कर ....
 झर गयी ...!
मैं बूँद ...कहाँ जाऊं ...?


*रिशभ -रे स्वर का संगीत शास्त्र में नाम है ..!
*तीव्र सुर मध्यम ..अर्थात तीव्र म और रे कोमल यानि ''मारवा '' राग गा रही थी .....सब कुछ व्यवस्थित ...जगह पर ...फिर कैसी बेचैनी ...?
.........राग मारवा बेचैनी ही देता है ....!!कभी सुन के देखें ....!!

44 comments:

  1. प्रभु के लिए एक अकुलाहट सी भरती रचना ..

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  2. संगीत में ढरकते आँसुओं और दरकते हृदय का शब्द चित्रण..

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  3. वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट "बिहार की स्थापना के 100 वर्ष पर" आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।

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  4. संगीत के सुरों को काव्य के स्वरों मैं साध लिया आपने -बधाई !

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  5. आज हर दिशा में राग भरवी ही गूंजायमान है ऐसे में मन को सांत्वना दिलाने के लिए कौन सा राग गाया जाए?

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  6. संगीत और काव्य का संगम...!
    वाह!

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  7. संगीत की तो समझ नहीं है :-(

    पर आपकी पोस्ट बेहतरीन लगी।

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  8. नयन नीर ..धर धीर ..
    पी लिए होते ...!
    मन का -
    मध्यम
    तीवर स्वर(तीव्र म) ..
    बाँध लिया होता ....

    संगीत के स्वर बाँध भी लिए जाएँ ...पर मन के स्वर कैसे सधे और बधें ? बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  9. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  10. संगीत और और मन, सरगम और बूँद ....क्या भाव बैठाएं हैं..

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  11. स्वर को बिम्ब बनाकर शाश्वत पर रची खूबसूरत रचना....
    सादर बधाई।

    इतनी राहें दिख पड़े, मन हो जाता भ्रांत।
    एक लक्ष्य हर बूंद का, पाकर होता शांत॥

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  12. संगीत का आश्रय लेकर व्याकुल मन से उपजी बूंद की यात्रा....और पुनः ईश्वर से मिलन की प्यास...सब कुछ इन चंद पंक्तियों में समेट दिया है आपने, सुंदर प्रस्तुति !

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  13. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  14. बहुत ही सुंदर, बेहतरीन।

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  15. कविता अगर संगीतबद्ध हो तो साधना में मन लगता है .आपकी साधना तो बेजोड़ है .

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  16. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  17. स्वर में भाव थिरक रहे हैं या भाव मैं सुर पनप रहे हैं ...

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  18. खूबसूरत भाव रचना

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  19. छूट कर ...टूट कर ....
    गिर क्यूँ गई ....? par kabhi kabhi niyati bhi ajeeb hoti hai...waise bahut khoobsoorat abhivyakti

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  20. सुबह सुबह इतनी कोमल और संगीतमय कविता पढ़ने को मिल जाए तो बात ही क्या :) :)

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  21. छूट कर ...टूट कर ....
    गिर क्यूँ गई ....?
    पात सी झर गयी ...!
    मैं बूँद ...कहाँ जाऊं ...?

    बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर रचना,,,,,

    RECENT POST ,,,, काव्यान्जलि ,,,, अकेलापन ,,,,

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  22. पात से झर गयी जो बूँद कहाँ जाए !!
    मारवा सुनना होगा !

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  23. पात से झर गयी जो बूँद कहाँ जाए !!
    मारवा सुनना होगा !

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  24. सुंदर....सुंदर...............
    अति सुंदर......

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  25. सुर संगीत है भाव है..रचना ..भावों की सुरमयी अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर.. अनुपमा जी..

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  26. bahut hi sundar..
    bhavmayi .bhaktimayi rachana...
    behtarin prastuti....

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  27. आँख से
    छूट कर ...
    टूट कर ....
    गिर क्यूँ गई ....?
    पात सी झर गयी ...
    नयन नीर ..धर धीर ..
    पी लिए होते ...!
    मन का -
    मध्यम
    तीवर स्वर(तीव्र म) ..
    बाँध लिया होता ....
    bahut khoob !

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  28. सुर, संगीत,भावों की सुरमयी अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर....

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  29. प्रभु चित्त ही मेरो देस ..
    अब काहे पछताऊँ ?
    कोमलकांत शब्दावली का भाव के अनुरूप इस्तेमाल किया गया है रचना में जीवन को सार्थक करने की जिद्दी मनुहार करती रचना
    कृपया यहाँ भी पधारें -
    साधन भी प्रस्तुत कर रहा है बाज़ार जीरो साइज़ हो जाने के .
    गत साठ सालों में छ: इंच बढ़ गया है महिलाओं का कटि प्रदेश (waistline),कमर का घेरा
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  30. अति सुंदर भाव संयोजन

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  31. जीवन की भी यही व्यथा | बूंद सा जीवन , जब किसी की आँख से गिर जाए तो कहाँ जाए |

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  32. स्वर कोमल रे मन रिषभ (रे)-
    साध लिया होता
    तब गाती गुण
    प्रभु सुन-सुन
    हिय धरते
    हर्षाते
    चित्त लगते .!

    ...वाह!

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  33. परमात्मा से बिछोड़े के दर्द से पीड़ित विकल मन के उद्गार
    आध्यात्मिक चिन्तन
    सुन्दर रचना
    आभार

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  34. Replies
    1. Thanks Shivam ....
      prat shubh ho gayi ....!!
      Zordar buletin hai ...!!

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  35. संगीतमय प्रस्तुति ।

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  36. भक्ति रस की अविरल धार लिए है यह रचना -विकल मन चैन कहाँ अब पावे

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  37. आपकी प्रस्तुति पढकर अभिभूत हूँ.
    कई दिनों से अमेरिका के टूर पर था.
    आज ही लौटा और आपकी यह सुन्दर
    अभिव्यक्ति पढ़ने का अवसर मिला.
    आपकी भक्ति रस और संगीतमय प्रस्तुति
    से हार्दिक प्रसन्नता मिली.
    आभार.

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  38. स्वर कोमल रे मन रिषभ (रे)-
    साध लिया होता ....
    तब गाती गुण ...
    प्रभु सुन-सुन ....
    हिय धरते ...
    हर्षाते ....
    चित्त लगाते .....!!
    अब आँख से
    छूट कर ...टूट कर ....
    गिर क्यूँ गई ....?
    पात सी झर गयी ...!
    मैं बूँद ...कहाँ जाऊं ...?

    क्या सुंदर रूपकों का सहारा लिया है दीदी

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  39. बहुत बहुत आभार आपके अमूल्य समय के लिये ...आपने कविता पढ़कर अपने विचार भी दिये ....!!ह्रिदय से आभारी हूँ ...!!

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  40. ए बूँद कहीं न जा
    मेरे पास आ मेरी आँखों में समा जा
    मेरे आंसूं जा कर लिपट जाते हैं उसके चरणों से
    भिगो देते है उन्हें बार बार
    इस बार जब वे भीगेंगे तो
    पहचान भी न पायेगा तुझे मेरा कृष्णा
    सार्थक हो जायेगा तेरा मेरी आँखों में समाना और ...
    कहते हैं संगम हमेशा पवित्र-स्थली बन जाता है
    देखें तुम और मैं इस बार कौन पवित्र हो गया.
    उसके चरण संगम-जल से भीग कर या
    या...हम उन्हें छु कर ????? :)

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!