27 July, 2013

चतुर चितेरा .....मनभावन .......!!

धरणी का संताप देख
वरुण हुए  करुण
सघन  घन में भरा आह्लाद
करुणा सारी बरसा जाने को
वसुंधरा की हर पीड़ा हर लाने  को
उमड़ घुमड़ ...गरज गरज
बूंद बूंद
बरसने को हो रहे आकुल


चतुर चितेरा मनभावन
 बरस  रहा है सावन
पीत  दूब प्रीत पा
हरित हो रही ....!!!!!

दूब का रंग हरा हुआ
पल्लव से  वृक्ष भरा हुआ
इंद्रधनुष के रंगों मे
हँस के निखर रही है धरा
चम्पा  की सुरभी बिखेर
चहक रही है धरा

नदिया की धारा में सिमटी समाई
मांझी के गीत सी
झनकती बूंद
चल पड़ी फिर
नाचती झूमती गाती ...समुंदर तक 

22 July, 2013

थी क्या जन्मों की तरसीं ...??

सूरज की तपन ...
जल जल कर जल चुका था  जल ...,,,
 ह्रदय  धरा का आकुल ...व्याकुल  .....
कट रहे थे पल ....

तब तुम .....बूँद बूँद सुधा  सम वसुधा पर ..
टिप-टिप झरीं  बरखा ..............!!

अभिनंदन तुम्हारा ...
आज फिर सावन लाई हो ...!!

गरजतीं लरजतीं बरसतीं खनकतीं ....
भर-भर लाई हो  ...
यूं सावनी  बूंदों में आवाज़ ....................!!
....जैसे बाज  रहा हो कोई साज़............................................!!
हिरदय की कुञ्ज गलिन में ......
परम दिव्य सी कान्ति लिए ...... ...
मन की शांति लिए ...
मेरे  द्वार  ऐसे आई हो .......................!!
पुलकित ललकित ...
ढोल-मृदंग  संग ज्यों ..
द्युति  दामिनी  मैंने पाई  हो ............................!!
अहा .....आज फिर सावन लाई हो ...!!


पुरज़ोर  बरसती झमा  झम ......
नदिया की लहर में लोच बनी ......
इतराईं  बलखाईं  ....

री बरखा ...
तुम सावन में ऐसी कैसी बरसीं ...??
थी क्या जन्मों की तरसीं.............??
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पिछले साल ...मुंबई की मनमोहक बरसात .....मेरे घर से वर्षा का वो नयनाभिराम दृश्य ........स्वर्ग सी अनुभूति थी ....!!और अब यहाँ दिल्ली की वो मन परेशान कर देने वाली गर्मी.....!!पिछले कुछ दिनों से रोज़ ही बड़बड़ाना चालू था .....!!मुंबई की याद मन से हटती ही नहीं थी ....!!पर मैं नहीं जानती थी कि मेरे प्रभु मेरी बातें सुन रहे हैं ....!!यकायक दिल्ली का मौसम इतना सुहाना हो जाएगा .....इसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी .....!!!

शायद प्रभु से कुछ और मांगती वो भी मिल जाता ......इसलिए कहते हैं हमेशा अच्छा सोचना चाहिए .....पता नहीं कब ईश्वर चुपचाप हमारी बातें सुन रहे हों .....??
आभार ईश्वर का .....दिल्ली का मौसम बहुत अच्छा है इन दिनों .......


19 July, 2013

आज रात चाँद को पुकारती रही


आज रात चाँद को पुकारती रही
व्योम मंच पर न किन्तु चाँद आ सका....
बादलों की ओट में कहीं रहा छिपा
दामिनी प्रकाश पुंज वारती रही ....
आज रात चाँद  को पुकारती रही ...

देखती रही खड़ी नयन पसार कर ...
है वियोग ही मिला सदैव  प्यार कर ...
तारकों से आरती उतारती रही ...

आज रात चाँद को पुकारती रही ...

हो गई उदास और रात रो पड़ी....
वारने लगी अमोल अश्रु की लड़ी ...
दूर से खड़ी उषा निहारती रही ...
आज रात चाँद को पुकारती रही ....

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शोभा श्रीवास्तव का लिखा ये गीत .....
अब सुनिए मेरी आवाज़  में.......
कृपया ईयर फोन से  सुने अन्यथा आवाज़ बिखरती है ....




16 July, 2013

माहिया ....

हरियाली छाई है ...
वर्षा की बूँदें ...
कुछ यादें लाई हैं ....



ये चंचल सी बूँदें  ...
मन मेरा भीग रहा  ...
लगी  प्रीत मेरी खिलने ...!!




नहीं   कोई  कहानी है ...
मन मे  बसी मेरे ....
शब्दों की रवानी है ...

तुम  घर अब आ जाओ ...
सांझ घिरी कैसी...
मेरी पीर मिटा जाओ ..!!

ये  मन  भरमाया है ...
मेहँदी  रंग लाई ......
मोरा पिया घर आया है ...!

बूंदन  रस बरस रहा ...
नित नए पात  खिले ....
धरती मन हरस रहा ...!!


झर झर गिरती  बूंदें ...
खनक  रही ऐसे  ....
जैसे   झूम रही बूंदें ...!!

मेरा माहिया आया है ...
लड़ियन बुंदियन का
सेहरा मन भाया  है ...

मेरे कदम क्यूँ बहक रहे ...
वर्षा झूम रही ...
बन मोर हैं थिरक रहे ....!!

धिन धिन तक तक करतीं ...
साज   रही बूंदें ...
धरती पर जब गिरतीं ...!!
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पहली बार महिया लिखने की कोशिश की है ....!!आशा है आप सभी पाठक गण इसे पसंद करेंगे ।

04 July, 2013

चंपई गुलाबी पंखुड़ी पर ...


स्मित  बनफूलों का
सौम्य तारुण्य ...!!
चंपई गुलाबी  पंखुड़ी पर ...
चाँदनी  का
चांदी सा छाया लावण्य ...!!
भीनी भीनी सी खुशबू  ले .....
बहती हुई ये अलमस्त पवन ...
बूंद बूंद बरस रहा है ...
मेघा का रस पावन ...

स्निग्ध  चांदनी में डूबा
कल्पनातीत वैभव ....
सरसता  हुआ मन ...!!
रुका  हुआ क्षण ...!!
अनिमेष सुषमा का ,
कर रहा रसास्वादन .....!!!!

अंबर की  रस फुहार ....
हो रही बार-बार ....
बरस रहा आसाढ़ ......
भीग रहा मन चेतन ...!!

कैसी अनुभूति है ...??
छुपी कोई अदृश्य आकृति है ....???
कौन है यहाँ
जो मुझे रोक लेता है ...????
नमन करने तुम्हारी कृति पर ...
और ...अपनी सीली सीली सी ...
मदमस्त सुरभि से ...
तुम्हारी उपस्थिति का भान कराता है ...

मेरे  ह्रदय के आरव   श्रृंगों  को .....
भिगोने लगता  है
वाणी के उजास  से ......
चेतना आप्लावित  होती है
अंतस तक ....!!
और इस तरह
तुम ही करते हो ....
मेरा मार्ग प्रदर्शन ....
और प्रशस्त  भी ....!!