या होता है
या नहीं ही होता,
पूर्ण खिलकर
पुष्पित होता है !!
एक रूप एक रंग
अद्वैत सम
शाश्वत सत्य है प्रेम
बुद्धि को समृद्ध करे
जीव को अलंकृत करे
जीवन को सुरक्षित करे
आत्मा को सुरभित करे …!!
मोल नहीं है इसका
कोई तोल नहीं है इसका
मौन होकर भी मुखर
अदृश्य होकर भी दृष्टोगोचर
लुकता नहीं है ,छिपता नहीं है ,
झुकता नहीं है प्रेम
गौरव से मस्तक है ऊँचा
ईश्वर के समरूप है सच्चा
निर्बल को भी बल देता है प्रेम ...............!!
आपने जिन खूबसूरत शब्दों में प्रेम को बाँधा है वह सचमुच प्रेम की अनुभूति का शिखर है... एक विशाल हृदय की अनमोल निधि-प्रेम!!
ReplyDeleteगौरव से मस्तक है ऊँचा
ReplyDeleteईश्वर के समरूप है सच्चा
निर्बल को भी बल देता है प्रेम ...............!!
वाह!
कुँजी तो यही है आनंद की . जितनी जल्दी समझ आ जाए उतना अच्छा. अति सुन्दर.
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteवैसे आजकल पता नहीं
कहाँ खोया रहता है प्रेम :)
मोल नहीं है इसका
ReplyDeleteकोई तोल नहीं है इसका
मौन होकर भी मुखर
बहुत सुंदर .....
मन को यह लगे कि कोई साथ खड़ा है तो कोई कठिनाई व्यक्ति को डिगा नहीं सकती।
ReplyDeleteप्रेम के शास्वत रूप का बहुत ही सुंदर शब्दों में अभिव्यक्ति .... अति सुंदर ......
ReplyDeleteया होता है
ReplyDeleteया नहीं ही होता,
पूर्ण खिलकर
पुष्पित होता है !!
बहुत सुंदर अनुपमा जी..प्रेम है तो बस वही है..
प्रेम पूर्ण है अपने आप में जो ऊर्जा देता है ... बल देता है ..
ReplyDeleteप्रेम तो शक्तिपुंज है !
ReplyDeleteनई पोस्ट चाँदनी रात
नई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य ( भाग २ )
क्या बात वाह! बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteअरे! मैं कैसे नहीं हूँ ख़ास?
प्रेम के सुन्दर रूप कि सुन्दर अभिव्यक्ति ....
ReplyDelete:-)
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteprem hamara bal hai , ek aisi urja hai jo hamari sabse badi takat hai............
ReplyDeleteया फिर इस जगत का एक ही बल है---प्रेम.. अति सुन्दर कहा है..
ReplyDeleteकोई दो मत नही
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर |
ReplyDeleteखूबसूरत शब्दों में प्रेम को बाँधा है....बहुत ही सुन्दर |
ReplyDeleteबहुत सुंदर !..
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 24 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteअदृश्य होकर भी दृष्टोगोचर
ReplyDeleteलुकता नहीं है ,छिपता नहीं है ,
झुकता नहीं है प्रेम
गौरव से मस्तक है ऊँचा
ईश्वर के समरूप है सच्चा
निर्बल को भी बल देता है प्रेम .........
बहुत खूब । सुंदर रचना । प्रेम की शक्ति को बताती सुंदर रचना ।
बहुत ही सुंदर शब्दों का संगम ....
ReplyDeleteअदृश्य होकर भी दृष्टोगोचर
लुकता नहीं है ,छिपता नहीं है ,
झुकता नहीं है प्रेम
गौरव से मस्तक है ऊँचा
ईश्वर के समरूप है सच्चा
निर्बल को भी बल देता है प्रेम .........
बहुत खूब !!