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24 December, 2013

निर्बल को भी बल देता है प्रेम



या होता है
या  नहीं ही होता,
पूर्ण खिलकर
पुष्पित होता है !!
एक रूप एक रंग
अद्वैत सम
शाश्वत सत्य है प्रेम
बुद्धि को समृद्ध करे
जीव को अलंकृत करे
जीवन को सुरक्षित करे
आत्मा  को सुरभित करे …!!

मोल नहीं है इसका
कोई तोल नहीं है इसका
मौन होकर भी मुखर

अदृश्य होकर भी दृष्टोगोचर
लुकता नहीं है ,छिपता नहीं है ,
झुकता नहीं है प्रेम
गौरव से मस्तक है ऊँचा
ईश्वर के समरूप है सच्चा
निर्बल को भी बल देता है प्रेम ...............!!


22 comments:

  1. आपने जिन खूबसूरत शब्दों में प्रेम को बाँधा है वह सचमुच प्रेम की अनुभूति का शिखर है... एक विशाल हृदय की अनमोल निधि-प्रेम!!

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  2. गौरव से मस्तक है ऊँचा
    ईश्वर के समरूप है सच्चा
    निर्बल को भी बल देता है प्रेम ...............!!

    वाह!

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  3. कुँजी तो यही है आनंद की . जितनी जल्दी समझ आ जाए उतना अच्छा. अति सुन्दर.

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  4. बहुत सुंदर !

    वैसे आजकल पता नहीं
    कहाँ खोया रहता है प्रेम :)

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  5. मोल नहीं है इसका
    कोई तोल नहीं है इसका
    मौन होकर भी मुखर

    बहुत सुंदर .....

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  6. मन को यह लगे कि कोई साथ खड़ा है तो कोई कठिनाई व्यक्ति को डिगा नहीं सकती।

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  7. प्रेम के शास्वत रूप का बहुत ही सुंदर शब्दों में अभिव्यक्ति .... अति सुंदर ......

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  8. या होता है
    या नहीं ही होता,
    पूर्ण खिलकर
    पुष्पित होता है !!

    बहुत सुंदर अनुपमा जी..प्रेम है तो बस वही है..

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  9. प्रेम पूर्ण है अपने आप में जो ऊर्जा देता है ... बल देता है ..

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  10. प्रेम के सुन्दर रूप कि सुन्दर अभिव्यक्ति ....
    :-)

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  11. prem hamara bal hai , ek aisi urja hai jo hamari sabse badi takat hai............

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  12. या फिर इस जगत का एक ही बल है---प्रेम.. अति सुन्दर कहा है..

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  13. खूबसूरत शब्दों में प्रेम को बाँधा है....बहुत ही सुन्दर |

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  14. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 24 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  15. अदृश्य होकर भी दृष्टोगोचर
    लुकता नहीं है ,छिपता नहीं है ,
    झुकता नहीं है प्रेम
    गौरव से मस्तक है ऊँचा
    ईश्वर के समरूप है सच्चा
    निर्बल को भी बल देता है प्रेम .........

    बहुत खूब । सुंदर रचना । प्रेम की शक्ति को बताती सुंदर रचना ।

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  16. बहुत ही सुंदर शब्दों का संगम ....
    अदृश्य होकर भी दृष्टोगोचर
    लुकता नहीं है ,छिपता नहीं है ,
    झुकता नहीं है प्रेम
    गौरव से मस्तक है ऊँचा
    ईश्वर के समरूप है सच्चा
    निर्बल को भी बल देता है प्रेम .........

    बहुत खूब !!

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