सृष्टि का एक भाग
अंधकारमय करता हुआ ,
विधि के प्रवर्तन से बंधा
जब डूबता है सूरज
सागर के अतल प्रशांत में
सत्य का अस्तित्व बोध लिए,
कुछ शब्दों की लौ सी,
वह अटल आशा संचारित रही
मोह-पटल के स्वर्णिम एकांत में .....!!
उस लौ के साथ
तब ....कुछ शब्द रचना
और रचते ही जाना
जिससे पहुँच सके तुम तक
अंतस की वो पीड़ा मेरी
क्यूंकि शब्द शब्द व्यथा गहराती है
टेर हृदय की क्षीण सी पड़ती
टेर हृदय की क्षीण सी पड़ती
पल पल बीतती ज़िंदगी
मुट्ठी भर रेत सी फिसलती जाती है ....!!
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeletesundar rachna ........antim panktiyo ne dil ko chu liya.........
ReplyDeleteसच कहा ..तिमिर के क्षणों में यही शब्द-दीप और उनकी आवलियाँ अनंत प्रकाश भरती रहती हैं. सुन्दर कृति.
ReplyDeleteशब्दों में लिपटी निकली है, पीड़ा मेरी।
ReplyDeleteकुछ शब्दों की लौ सी,
ReplyDeleteवह अटल आशा संचारित रही
मोह-पटल के स्वर्णिम एकांत में .....!!
बहुत सुंदर भाव...मोह रत्रि कितनी भी घनी हो...स्वर्णिम प्रकाश छिपाए रहती है...
सच है यह जिंदगी रेत सा मुट्ठी से निकलती जा रही है !
ReplyDeleteनई पोस्ट चंदा मामा
नई पोस्ट विरोध
"जिससे पहुँच सके तुम तक
ReplyDeleteअंतस की वो पीड़ा मेरी "
अपनी सी...
जैसे हो मेरे ही मन की बात!
***
बेहद सुन्दर रचना!
कोमल भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण और सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteऔर यूँ ही रचते रहने से रेत भी हथेलियों से चिपका रहता है ..सुन्दर रचना..
ReplyDeleteयह लौ जलती रहे।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा,भावपूर्ण प्रस्तुति...!
ReplyDeleteRECENT POST -: एक बूँद ओस की.
समय का चक्र और सूरज वाह अद्भूत
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति अनुपमा जी
ReplyDeleteकुछ शब्दों की लौ सी,
ReplyDeleteवह अटल आशा संचारित रही
मोह-पटल के स्वर्णिम एकांत में ....
मननीय अभिव्यक्ति।
सूर्योदय और सूर्यास्त ऐसे दो प्राकृतिक पर्तीक हैं जिनसे कई कहानियाम, कवितायें, दर्शन जन्म लेते रहे हैं.. आज आपने जो कविता लिखी वह इसी प्रतीक के माध्यम से प्रारम्भ होकर एक मौन प्रार्थना/पुकार प्रस्तुत करती है!! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!!
ReplyDeletebahut sundar bhavpurn rachna..!!
ReplyDeleteजिंदगी पल पल फिसल रही है ... इसी दर्शन को सूर्य और अंधेरे के शांत लम्हों में उतारा है ... लाजवाब भाव ...
ReplyDeleteअंतस की पीड़ा के शब्द शब्द को उन तक पहुचाने में सफल सौम्य कविता ... बहुत सुंदर .....
ReplyDeleteसूर्य रश्मियों के सामान तेजोमय शब्दों में गुंथी और तमसो मां ज्योतिर्गमय की सीख देती पंक्तियाँ . बहुत सुन्दर कविता दी.
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण...
ReplyDeleteपल पल बीतती ज़िंदगी
मुट्ठी भर रेत सी फिसलती जाती है ....!!
और अंतस की टीस यूँ ही शब्दों में सँवरती है. बधाई.
बहुत बहुत आभार आप सभी का मेरी रचना पर आपने अपने विचार दिये ...!!
ReplyDeleteपीड़ा - एक दिशा से उदित
ReplyDeleteएक दिशा में अस्त
पीड़ा सूर्य नहीं
तो उदयाचल से अस्ताचल की यात्रा निश्चित नहीं
ऐसे में शब्द सहयात्री होते हैं
सूर्यास्त से गहन पीड़ा का भाव लेते हुए शब्दों में उतरना .... सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रचना अनुपमा जी ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteReally Appreciable cum Inspirational
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