विस्मृत नहीं होती छवि
पुनः प्रकाशवान रवि
एक स्मृति है
सुख की अनुभूति है ....!!
स्वप्न की पृष्ठभूमि में
प्रखर हुआ जीवन ...!!
कनक प्रभात उदय हुई
कंचन मन आरोचन .........!!
पीत कमल सा खिलता
निसर्ग की रग-रग में रचा बसा
वो शाश्वत प्रेम का सत्य
उत्स संजात(उत्पन्न) करता
अंतस भाव सृजित करता
प्रभाव तरंगित करता है ..!!
.
तब शब्दों में …
प्रकृति की प्रेम पातियाँ झर झर झरें
मन ले उड़ान उड़े
जब स्वप्न कमल
प्रभास से पंखुड़ी-पंखुड़ी खिलें ......!!
स्वप्न में खोयी सी
किस विध समझूँ
कौन समझाये
एक हिस्सा जीवन का
एक किस्सा मेरे मन का
स्वप्न जीवन है या
जीवन ही स्वप्न है
कौन बतलाए ....?
भेद अभेद ही रह जाये ...!!
पुनः प्रकाशवान रवि
एक स्मृति है
सुख की अनुभूति है ....!!
स्वप्न की पृष्ठभूमि में
प्रखर हुआ जीवन ...!!
कनक प्रभात उदय हुई
कंचन मन आरोचन .........!!
अतीत एक आशातीत स्वप्न सा प्रतीत होता है
पीत कमल सा खिलता
निसर्ग की रग-रग में रचा बसा
वो शाश्वत प्रेम का सत्य
उत्स संजात(उत्पन्न) करता
अंतस भाव सृजित करता
प्रभाव तरंगित करता है ..!!
.
तब शब्दों में …
प्रकृति की प्रेम पातियाँ झर झर झरें
मन ले उड़ान उड़े
जब स्वप्न कमल
प्रभास से पंखुड़ी-पंखुड़ी खिलें ......!!
स्वप्न में खोयी सी
किस विध समझूँ
कौन समझाये
एक हिस्सा जीवन का
एक किस्सा मेरे मन का
स्वप्न जीवन है या
जीवन ही स्वप्न है
कौन बतलाए ....?
भेद अभेद ही रह जाये ...!!
यही जीवन है ....
ReplyDeleteतब शब्दों में किस्सा, कहानियाँ, कविता बुनते कई जीवन बीत जायेंगे..व भेद अभेद ही रह जाएगा.....असीम आनंद की अनुभूति कराती रचना..
ReplyDeleteबेहतरीन-
ReplyDeleteशुभकामनायें आदरेया-
जीवन, स्वप्न और सुसुप्त, कैसा सम्बन्ध है इनमें।
ReplyDeleteसम्पूर्ण भेद-अभेद के बीच बस सुख की अनुभूति होती रहे..जैसा कि अभी आपको पढ़कर हो रहा है.. बहुत है..
ReplyDeleteबहुत सुंदर.....!!
ReplyDeleteएक हिस्सा जीवन का
ReplyDeleteएक किस्सा मेरे मन का
स्वप्न जीवन है या
जीवन ही स्वप्न है
कौन बतलाए ....?
भेद अभेद ही रह जाये ...!!
सच, कभी कभी जीवन स्वप्न सा जान पड़ता है और कभी खुली आँखों से भी स्वप्न झरने लगते हैं..कौन जाने सत्य क्या है...
बहुत ही सुन्दर और सुकोमल |
ReplyDeleteजीवन से जुड़ी ये कैसी उलझन ...? गहरी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteपीत कमल सी कोमल पंक्तियाँ :)
ReplyDeleteस्वप्न विभेद के गूढ़ रहस्यों से हटकर कविता के रस में पग गए . बहुत सुन्दर दी..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteस्वप्न जीवन है या
ReplyDeleteजीवन ही स्वप्न है
या स्वप्न सा जीवन है......
बहुत सुन्दर...
सस्नेह
अनु
स्वप्न जीवन है या
ReplyDeleteजीवन ही स्वप्न है
कौन बतलाए ....?
भेद अभेद ही रह जाये ...!! सचमुच यह भेद अभेद ही रह जाता है...बहुत ही सुंदर कोमल भाव अभिव्यक्ति...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (07-12-2013) "याद आती है माँ" “चर्चामंच : चर्चा अंक - 1454” पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
रचना चयन हेतु हृदय से आभार राजीव जी ....!!
Deleteस्वप्न जीवन है या
ReplyDeleteजीवन ही स्वप्न है
कौन बतलाए ....?
भेद अभेद ही रह जाये ...!!
....बहुत गहन और सार्थक चिंतन...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
बहुत ही सुंदर रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
इसी जिज्ञासा में जीवन बीत जाता है और ना जाने किस अभेद्य कवच में छिप यह भेद-अभेद हमें सतत उत्सुक बनाये रहता है. यूँ ही शब्द शीतल निर्झरणी बन बरसते रहे. असीम आनंद है यह कविता.
ReplyDeleteसचमुच यह भेद अभेद ही रह जाता है.
ReplyDeleteवाह क्या बात! बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteइसी मोड़ से गुज़रा है फिर कोई नौजवाँ और कुछ नहीं
स्वप्न की पृष्ठभूमि में
ReplyDeleteप्रखर हुआ जीवन ...!!
कनक प्रभात उदय हुई
कंचन मन आरोचन.. वाह बहुत ही उत्कृष्ट अनुभूति ..
अनुभूति के अभिनव सौपान लिए है यह रचना।
ReplyDeleteबहुत उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी
बहुत ही सुंदर रचना,
ReplyDeleteस्वप्न में खोयी सी
ReplyDeleteकिस विध समझूँ
कौन समझाये
एक हिस्सा जीवन का
एक किस्सा मेरे मन का
स्वप्न जीवन है या
जीवन ही स्वप्न है
कौन बतलाए ....?
भेद अभेद ही रह जाये ...!!
बहुत गहरी बात...बहुत कोमल भाव...
अतिसुंदर रचना ...
आप सभी का हृदय से आभार ....आपने इस रचना पर अपने सुविचार दिये ...!!स्नेह बनाए रहिएगा ...!!
ReplyDeleteजीवन तो अपनी गति से चलता है .... कभी कठोर यथार्थ लिए हुये तो कभी स्वप्न के हिंडोले में झूलते हुये .... भेद अभेद से परे बस चलना ही जीवन है .... भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...भावपूर्ण
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सार्थक सुकोमल रचना ! जिस दिन इस भेद अभेद का अंतर स्पष्ट हो जायेगा सारी गुत्थियां स्वयमेव हल हो जायेंगी ! तब तक दोनों की डोर को मुट्ठी में दबाये ही चलना होगा !
ReplyDeleteजीवन स्वप्न
ReplyDeleteभेद अभेद
यूँ जीवन स्वप्न नहीं मगर स्वप्न में जीवन हो सकता है !!
रचना पढ़ हर्षित मन स्वप्न -सा !
'स्वप्न जीवन है या
ReplyDeleteजीवन ही स्वप्न है
कौन बतलाए ....?
भेद अभेद ही रह जाये'...........अति सुंदर
प्रकृति का वर्णन सच में स्वप्न सा ही प्रतीत हो रहा है आपके शब्दों में
" प्रकृति की प्रेम पातियाँ "
ReplyDeleteBeautiful!!!