धूप और छांव
दो पहलू जीवन के
सुख और दुख जैसे
दो पहलू प्रत्येक मन के,
संपूर्णता या समग्रता हेतु,
कोई मिथ्या बोध नहीं,
कोई अनुमान भी नहीं ...!!
चिर स्थाई सद्भावना के लिये
आवश्यम्भावी है ,
अत्यंत धैर्य से सुख को जीना ,
उतनी ही प्रबुद्धता से ,
प्रचुरता से ,
दुख की सतह तक पहुंचना ,
दोनों को जीना ,
दोनों का सत्य जानना,
समझना ...अनुभूत करना ,
और फिर
बिना परखे साथ चलना ,
सत्पथ पर हर पल ,
जैसे वायु सदा साथ रहती है
पृथ्वी की सतह पर
जीवन देने हेतु ,
नदी की सतह पर
दिशा देने हेतु ,
एक सशक्त शक्ति लिए,
न दुख में मुख मोड़ना है,
न सुख मे प्रभु भजन छोड़ना है ,
...बस इसी तरह
साथ चलते हुए ,
आभास से प्रभास तक
प्रत्येक प्रात की उजास सा
मेरी अनुभूति को
प्रकृति के प्रेम की तरह ,
अपना शाश्वत अस्तित्व जीना है .......!!
दो पहलू जीवन के
सुख और दुख जैसे
दो पहलू प्रत्येक मन के,
संपूर्णता या समग्रता हेतु,
कोई मिथ्या बोध नहीं,
कोई अनुमान भी नहीं ...!!
चिर स्थाई सद्भावना के लिये
आवश्यम्भावी है ,
अत्यंत धैर्य से सुख को जीना ,
उतनी ही प्रबुद्धता से ,
प्रचुरता से ,
दुख की सतह तक पहुंचना ,
दोनों को जीना ,
दोनों का सत्य जानना,
समझना ...अनुभूत करना ,
बिना परखे साथ चलना ,
सत्पथ पर हर पल ,
जैसे वायु सदा साथ रहती है
पृथ्वी की सतह पर
जीवन देने हेतु ,
नदी की सतह पर
दिशा देने हेतु ,
एक सशक्त शक्ति लिए,
न दुख में मुख मोड़ना है,
न सुख मे प्रभु भजन छोड़ना है ,
...बस इसी तरह
साथ चलते हुए ,
आभास से प्रभास तक
प्रत्येक प्रात की उजास सा
मेरी अनुभूति को
प्रकृति के प्रेम की तरह ,
अपना शाश्वत अस्तित्व जीना है .......!!
बहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteदोनों ओर बराबर जुड़ना, अपने से भी ऊपर उड़ना।
ReplyDeleteजीवन का सही बोध तो दोनों किनारे देख कर ही होता है. दोनों स्थितियों में अपनी गति संयत रखते हुए. सुन्दर भाव.
ReplyDeleteसुन्दर आत्मबोध कराती प्रस्तुति.
ReplyDeleteआभार
satya vachan..sundar prastuti..jevan ka shashvt satya..bahut badhai.
ReplyDeleteदोनों को जीना ,
ReplyDeleteदोनों का सत्य जानना,
समझना ...अनुभूत करना ,
और फिर
बिना परखे साथ चलना ,
सत्पथ पर हर पल......
सुख और दुःख आते जाते बादल हैं ... दोनों का स्वागत और धैर्य से जीना जरूरी है ..
ReplyDeleteबाहुत ही भावपूर्ण ...
बहुत सुंदर बोध..शाश्वतता का अनुभव तभी होता है जब नश्वरता का अहसास भी हो जाये..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ...
ReplyDeleteहृदय से आभार शास्त्री जी ,मेरी रचना को चर्चा मंच पर लेने हेतु ....!!
ReplyDeleteआभार दिग्विजय जी ...!!
ReplyDelete...बस इसी तरह
ReplyDeleteसाथ चलते हुए ,
आभास से प्रभास तक
प्रत्येक प्रात की उजास सा
मेरी अनुभूति को
प्रकृति के प्रेम की तरह ,
अपना शाश्वत अस्तित्व जीना है .......!!
यही है जीवन संदेश। सुंदर रचना।
bahut bahut badhai aapki pustak Anukriti ke prakaashan ki ... meri shubhkamnayen ...
ReplyDeleteदोनों को जीना ,
ReplyDeleteदोनों का सत्य जानना,
समझना ...अनुभूत करना ,
और फिर
बिना परखे साथ चलना ,
सत्पथ पर हर पल ,
जैसे वायु सदा साथ रहती है
पृथ्वी की सतह पर
जीवन देने हेतु ,
नदी की सतह पर
दिशा देने हेतु....सुन्दर.....!!!
कविता संग्रह (अनुकृति) के लिए बधाइयां स्वीकार करें। लगभग सभी दैनिक हिन्दी समाचार पत्रों में पुस्तक विमोचन के तीन कॉलम का समाचार है। हिन्दी दैनिक राष्ट्रीय सहारा के दिल्ली संस्मरण केि पृष्ठ संख्या ५ पर मैंने भी समाचार पढ़ा और सोचा आपको इससे अवगत करा दूं। (http://www.rashtriyasahara.com/epaperpdf//1452014//1452014-md-hr-5.pdf) राष्ट्रीय सहारा के ई-पेपर के इस लिंक पर आप पुस्तक विमोचन सम्बन्धी समाचार देख सकते हैं।
ReplyDeleteबहुत आभार विकेश जी ....इस अत्यंत महत्वपूर्ण सूचना के लिए ...!!
ReplyDeleteबिना परखे साथ चलना... बहुत गहरी बात. बधाई.
ReplyDeleteSo beautiful!
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