04 March, 2015

बूंद रंग अपने भरोगे ...


शब्द की उस आकृति को
भाव की उस स्वकृति  को ,
शब्द शब्द गढ़  दूँ अगर तो
भाव कैसे पढ़ सकोगे .....?

जीवन  की यह वेदना है ,
जब नहीं संवाद न संवेदना है ,
शब्द मेरे ही हों किन्तु
भाव रंग अपने भरोगे...!!

है जगत की रीत यह तो ,
दो घड़ी की प्रीत यह तो,
जल भरा यह कलश मेरा ,
भाव रंग अपने भरोगे ....!!

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स्याही से
लिखते हुए
उज्ज्वल भाव भी
स्याह क्यों दिखते हैं ......?




5 comments:

  1. सार्थक चर्चा में मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदय से आभार दिलबाग जी !!

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  2. उज्ज्वल भाव श्याम रंग में रँग कर गूढ़-गहन हो जाते हैं !

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  3. बूँद-बूँद में भाव। यही तो जीवन है।

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  4. कागज पर उतरते ही सच झूठ हो जाता है...सच इतना सूक्ष्म है कि कागज पर उतर ही नहीं पता कि खो जाता है...

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  5. बहुत सुन्दर "है जगत की रीत यह तो, दो घड़ी की प्रीत यह तो."

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!