13 May, 2015

अनुभूति से अभिभूत ....!!


रवींद्रनाथ टैगोर ने भी परमब्रह्म तक पहुँचने के लिए संगीत को ही एकमात्र साधन कहा है --'' संगीत हमारी चित्तवृत्ति को अंतर्मुखी बनाकर हमें आत्मस्वरुप का नैसर्गिक बोध कराता है और आत्मस्वरुप का यह बोध ही मनुष्य को परमतत्व से जोड़ता है।"  

''अनुभूति को अनुभूत  करने में ही उसका अस्तित्व है ''


निसर्ग के इन्ही फूलों में रची बसी,
इन्हीं फूलों से उड़कर,
जो  पहुंचती है मुझ तक,
अनुभूति से अभिभूत ,
उस आमद का करती हूँ स्वागत,
उस सुरभि से ,
जोड़ जोड़ शब्द ,
भरती हूँ कुछ भाव ,
सजती है मेरी कल्पना,
भरती रंग मन अल्पना ,
उठती है  …,चलती है 
और फिर ,
ईश्वर की कृपा बरसती है ,
और....

और ....... 
अनायास नृत्य करती है,

मेरी पंगु कविता .....!!

7 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14 - 05 - 2015 को चर्चा मंच की चर्चा - 1975 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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    1. दिलबाग जी ,हार्दिक आभार मेरी रचना को शामिल करने हेतु !!

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  2. सच कहा आपने। जब ईश्वर की कृपा बरसती है तो सब कुछ सहज व आनंद में डूबा हुआ दिखता है.....

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  3. या...दिव्य भावनाओं से रची कविता..

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  4. बहुत शानदार ,आपको बहुत बधाई

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  5. बहुत सुम्दर अनुपमा जी,
    भाव-अनुभूति.

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