समाज की व्यवस्था मूल रूप से हमें संरक्षण देने के लिए ही की गई है |इसलिए हमारे समाज में रिश्तों का बहुत महत्व है |ऐसा माना जाता है कि पुरुष से ज्यादा स्त्री को संरक्षण की आवश्यकता होती है |स्त्री को प्रायः हर समय पर ,पुरुष को बचपन और बुढ़ापे में ,पर होती तो दोनों को ही है |इसी संरक्षण को सौन्दर्य का रूप दे कर विवाह जैसी संस्था हमारे पूर्वजों ने प्रारम्भ की |संस्कारों की उर्वरक पा खिलती जाती है यह संस्था ,एक वट -वृक्ष की भांति |और आज हमारे इन्हीं संस्कारों का डंका समस्त विश्व में बजता है |सभी जानते हैं हमारी जड़ें कितनी गहरी हैं |बदलाव के इस समय में भी ,आज हमारी नैतिकता हमें सजग कर रही है |परिवर्तन जीवन का नियम है |किन्तु किस हद तक हमें बदलना है ,ये चुनाव तो हमारा ही है न ...!!
आज की नारी के सर पर फिर एक भारी ज़िम्मेदारी है |और इस बदलाव का पूरा दारोमदार अब स्त्री पर ही आ टिका है |स्त्री स्वतन्त्रता के नए मायने गढ़े जा रहे हैं |जैसे जैसे प्रगति हो रही है , जीवन सिमटता सा जा रहा है |कहीं न कहीं इस प्रगति की आड़ में हम अपनी भावनाओं को कम करते जा रहे हैं | सहनशीलता की कमी होती जा रही है !आडंबर ज्यादा है हर जगह !!सहजता खोती जा रही है । तब तो और भी ज़रूरी है लिखना और उन लोगों से जुड़ना जो अपनी संस्कृति को सच में बचाना चाहते हैं !!
आज की नारी के सर पर फिर एक भारी ज़िम्मेदारी है |और इस बदलाव का पूरा दारोमदार अब स्त्री पर ही आ टिका है |स्त्री स्वतन्त्रता के नए मायने गढ़े जा रहे हैं |जैसे जैसे प्रगति हो रही है , जीवन सिमटता सा जा रहा है |कहीं न कहीं इस प्रगति की आड़ में हम अपनी भावनाओं को कम करते जा रहे हैं | सहनशीलता की कमी होती जा रही है !आडंबर ज्यादा है हर जगह !!सहजता खोती जा रही है । तब तो और भी ज़रूरी है लिखना और उन लोगों से जुड़ना जो अपनी संस्कृति को सच में बचाना चाहते हैं !!
विश्व की अन्य सभ्यताओं का असर हम पर पुरजोर है ...!!हमारा खाना पीना बदल चुका है ,रहन सहन बदल चुका है |यहाँ तक की ,अब भाषा भी बदल चुकी है |हिंगलिश वर्चस्व में आ रही है !संस्कार भी बदल रहें हैं ...!!
आज हमे दृढ़ता से रुक जाना है .....थोड़ा सोचने के लिए ...!!परिवर्तन तो जीवन का नियम है ,वो तो होगा ही !!क्या जो परिवर्तन होता जा रहा है उसके साथ साथ बदलते चले जाएँ हम ?या सोच समझ कर बदलाव लाएँ !!
जो संरक्षण.... हम स्त्रियॉं को समाज से मिला था ,वही संरक्षण आज समाज को ही देने का समय आ गया है |समाज के लिए कुर्बानी देने का फिर वक़्त आ गया है |इस बार नारी को ही आगे आना है | |पुनर्जीवित करने हैं वो संस्कार जो क्षीण हो रहे हैं |संस्कारों की उर्वरक से विस्तार देना है प्रेम को ,रिश्तों को जो खोखले होते जा रहे हैं ....!!
आज सोचना है स्वतन्त्रता का अर्थ क्या है ?
नारी के लिए क्या हर बंधन तोड़ना स्वतन्त्रता है ...
या उसी बंधन की सीमा में रहकर स्वयं को निखारना और देश व समाज के लिए कुछ सार्थक करना स्वतंत्रता है.…… !!
आधुनिकता की क्या परिभाषा है …?समाज से सुरक्षा पाना और समाज को सुरक्षा देना क्या आधुनिकता नहीं है ......??
सिर्फ स्वार्थ के पीछे भाग रहे है हम !! निस्स्वार्थ प्रेम खोता जा रहा है !!
ये सोचें इंसान में ,इंसानियत में ,आपसी सद्भाव में ,प्रेम में ही सुख है ,जज़्बातों में ही सुख है ...........!!
हमारी माटी में हमारे संस्कारों की महक है।
हमें अपनी संस्कृति को ,आपसी सद्भावना से ,सौहार्द्र से ,सहिष्णुता से संवारना है !!हमें अपनी संस्कृति को बचाना है और …
और तब गर्व से कहना है .....
हम भारतीय हैं ...!!
आज हमे दृढ़ता से रुक जाना है .....थोड़ा सोचने के लिए ...!!परिवर्तन तो जीवन का नियम है ,वो तो होगा ही !!क्या जो परिवर्तन होता जा रहा है उसके साथ साथ बदलते चले जाएँ हम ?या सोच समझ कर बदलाव लाएँ !!
जो संरक्षण.... हम स्त्रियॉं को समाज से मिला था ,वही संरक्षण आज समाज को ही देने का समय आ गया है |समाज के लिए कुर्बानी देने का फिर वक़्त आ गया है |इस बार नारी को ही आगे आना है | |पुनर्जीवित करने हैं वो संस्कार जो क्षीण हो रहे हैं |संस्कारों की उर्वरक से विस्तार देना है प्रेम को ,रिश्तों को जो खोखले होते जा रहे हैं ....!!
आज सोचना है स्वतन्त्रता का अर्थ क्या है ?
नारी के लिए क्या हर बंधन तोड़ना स्वतन्त्रता है ...
या उसी बंधन की सीमा में रहकर स्वयं को निखारना और देश व समाज के लिए कुछ सार्थक करना स्वतंत्रता है.…… !!
आधुनिकता की क्या परिभाषा है …?समाज से सुरक्षा पाना और समाज को सुरक्षा देना क्या आधुनिकता नहीं है ......??
सिर्फ स्वार्थ के पीछे भाग रहे है हम !! निस्स्वार्थ प्रेम खोता जा रहा है !!
ये सोचें इंसान में ,इंसानियत में ,आपसी सद्भाव में ,प्रेम में ही सुख है ,जज़्बातों में ही सुख है ...........!!
हमारी माटी में हमारे संस्कारों की महक है।
हमें अपनी संस्कृति को ,आपसी सद्भावना से ,सौहार्द्र से ,सहिष्णुता से संवारना है !!हमें अपनी संस्कृति को बचाना है और …
और तब गर्व से कहना है .....
हम भारतीय हैं ...!!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कलमंगलवार (09-08-2016) को "फलवाला वृक्ष ही झुकता है" (चर्चा अंक-2429) पर भी होगी।
ReplyDelete--
मित्रतादिवस और नाग पञ्चमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्री जी हार्दिक आभार आपका ,चर्चा मंच पर आलेख को आपने स्थान दिया !
Deleteआपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति जन्मदिवस : भीष्म साहनी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
ReplyDeleteहार्दिक आभार हर्षवर्धन !सारगर्भित है आज का ब्लॉग बुलेटिन !!
Deleteसम सामायिक आलेख..वाकई आज संस्कृति को बचाने की जिम्मेदारी निभाने का वक्त है.
ReplyDeleteसामयिक और सार्थक लेखन ... यदि हम अपनी संस्कृत नही बचा पाए तो हमारा अस्तित्व क्या रह जायगा ...
ReplyDeleteसचमुच! समय के साथ बदलते हुए, अपनी संस्कृति को हमें ही बचाना है ! बहुत सार्थक एवं सामयिक लेख अनुपमा जी !
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
अब नारी को ही आगे आना होगा तो ही उन मूल्यों की रक्षा हो सकती है अन्यथा वर्तमान बता ही रहा है कि और क्या - क्या हो सकता है ।
ReplyDeleteसच में आज की महती जरूरत है अपनी संस्कृति को बचाने की। सार्थक लेख। बधाई।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय !!
ReplyDeleteपुनर्जीवित करने हैं वो संस्कार जो क्षीण हो रहे हैं |संस्कारों की उर्वरक से विस्तार देना है प्रेम को ,रिश्तों को जो खोखले होते जा रहे हैं ....!!
ReplyDeleteanupama ji bilkul sahi keha..prasangikta par koi sanshay nahi
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "भूली-बिसरी सी गलियाँ - 8 “ , मे आप के ब्लॉग को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteहार्दिक आभार रश्मि दी बहुत खुशी मिली आपने मेरे ब्लॉग को स्थान दिया !!ब्लोगिंग हेतु सकारात्मक प्रयास है ये !!मंगलकामनाएं !!
Deleteso inspiring thoughts Ad Posting Job
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