26 June, 2021

स्मृतियाँ

रात के सन्नाटे में 
कभी कभी 
खनकती पायल सी 
स्मृतियाँ 
बोलती हैं ,
खिलती हैं
मनस पटल खोलती हैं !!

झरने लगते हैं ,
यादों से निकलकर 
तुम्हारी महक में भीगे शब्द 
मेरी कविता तब 
ओढ़ लेती है धानी चुनर 
खिल खिल 
फूलों में कलियों में  
खिलखिलाती है 
और विविध रंग उतर आते हैं 
सावन हुई धरा पर !!



अनुपमा त्रिपाठी 

    "सुकृति "

22 June, 2021

मेरा मन मेरा पालनहार !!



लिए हुए ,

नयनाभिराम आकृति ,

संजोय हुए

शब्द शब्द  प्रकृति ,

गढ़ते हुए

जीवन के रंगों की झांकी ,

कृशानु (अग्नि ) सादृश्य

ओजपूर्ण सम्पृक्ति

नित्य नवपंथ प्रदर्शक

अनुभूति का प्रतिमान ,

सरसिज के

रूप लावण्य सा द्युतिमान

साथ मेरे सदा सदा अभिनीत  ,

मेरा मन मेरा पालनहार  !!


अनुपमा त्रिपाठी

   "सुकृति "

19 June, 2021

बिन मांगे मोती मिले


बिन मांगे मोती मिले    ,

कविता ऐसे ही मिल जाती है कभी    !
जब मांगती रहती हूँ ईश्वर से ,न कविता आती है ,न भाव !!
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प्रीत के इक पल  को
आँखों में पिरो लो,
मुक्ता सी बनके हृदय  में ,
जा बसें ,
छलके न कोरों से कभी ,

हृदय  में जो
बस चली अनुभूति तो ,
अभिभूत हो लो,
जानने से प्रेम को,
दे सको गर प्रेम ही ,
तो  संजो लो..!!

परखने से ,तौलने से ,
फिर बढ़ाते वर्जना क्यों  ...
मेरे वंदन को समझकर,
जानकर और मानकर भी ,
दूर जाना है  अगर ,
फिर मेरे पथ के वही
अनजान से,
मासूम से राही रहो तुम ...!!!

ये मेरा अनुराग बिसराओ न ,
देखो,
सुनो ,समझो ......!!
क्या कहने  की ये वेदना है , 
संवाद से संवेदना है !
संवेदना मेरी संजो लो ...... !!
तब बांचो अनमोल कथाएं ,
रहने दो …न जानो मुझको ,
बड़ी निर्मूल हैं मेरी व्यथाएं ……!!

अनुपमा त्रिपाठी
 "सुकृति"

15 June, 2021

नव गीत


पृथक राह के अथक प्रयास ,
बाँध गए जीवन की डोर,
शुभ आशीष बरसता जैसे 
नाच रहा है मन का मोर 

कण कण पर रिमझिम सी बूँदें 
लाइ हैं संदेस अनमोल 
प्रकट हुआ आह्लाद ह्रदय का ,
ऐसे आई नवल विभोर 

बूंदों की रिमझिम में साजन 
सजनी का श्रृंगार वही 
प्रकृति ओढ़े हरियाली 
है सावन का राग वही 

आओ मिलकर अब हम कोई 
गीत रचें नया नया 
छायी हरियाली है जैसे 
प्रीत का रंग नया नया 

बूंदों के अर्चन में गाती 
राग कोई वसुंधरा 
नाद सुनहरी ऐसे गूँजे 
रोम रोम है पुलक भरा 

भीगी धरती अब हुलसाती 
बूँदों में रुनझुन गुण गाती 
किसलय के फिर नवल सृजन में 
सभी के मन को खूब लुभाती 

अनुपमा त्रिपाठी
    'सुकृति'

10 June, 2021

सुखनिता कविता हो ...!!

शीर्ष पर गोल कुमकुमी आह्लाद
प्रातः के नाद की
अलागिनी ,
ऊर्जा में निमृत
सुहासिनी ,
सत्व का अपरिमेय तत्त्व,
खिलता ही जाता
जैसे कोई अस्तित्व ,
तुम इस तरह
मुझ तक आती हुई
मेरी ही एक
सुखनिता कविता हो ...!!

अनुपमा त्रिपाठी
 "सुकृति "



06 June, 2021

निशाँ...!!




हवाओं में उड़ते हुए ,
तरन्नुम में तबस्सुम से 
महकते हुए
मुहब्बत के निशाँ
सुनो ......
कुछ तुम कहो कुछ मैं सुनूं ...!


रेत  पर चलते हुए , बहकते हुए 
जीवन सा चहकते हुए , 
बनते हुए क़दमों के  निशाँ ,
सुनो ... 
कुछ तुम चलो कुछ मैं चलूँ...!

जीवन को जीते हुए 
हँसते हुए रोते हुए 
हैं वक़्त के अनमोल  निशाँ 
सुनो ...
कुछ तुम लिखो कुछ मैं लिखूं !


अनुपमा त्रिपाठी
 "सुकृति "



01 June, 2021

पुलकिता !!

 



अजेय भास्कर की किरणों से ,

अनंत समय की वीथिका में ,

सहिष्णु  धारा  सा बहता जीवन ,


भोर से उदीप्त है स्नेह से प्रदीप्त है ,

रात्रि  की नीरवता में गुनता है  स्निग्धता


चन्द्र  से झरती प्रगल्भ ज्योत्स्ना  की

 विमल विभा पाता ,विभुता सा लहलहाता !


व्योम से मुझ तक ऐश्वर्य से पुलकित,

स्निग्ध  रात की कहानी कहता 

मेरा मन ,हाँ    …

ऐसे ही तो  तुम्हें मुझसे जोड़ता है ,

नयनो से  हृदय तक ,

तुम्हारी  स्निग्ध  शीतलता पाती मैं,


पुलक से आकण्ठ जब भर उठती हूँ ,

तब कहलाती हूँ तुम्हारी पुलकिता !!


अनुपमा त्रिपाठी 

    " सुकृति  "