26 June, 2021

स्मृतियाँ

रात के सन्नाटे में 
कभी कभी 
खनकती पायल सी 
स्मृतियाँ 
बोलती हैं ,
खिलती हैं
मनस पटल खोलती हैं !!

झरने लगते हैं ,
यादों से निकलकर 
तुम्हारी महक में भीगे शब्द 
मेरी कविता तब 
ओढ़ लेती है धानी चुनर 
खिल खिल 
फूलों में कलियों में  
खिलखिलाती है 
और विविध रंग उतर आते हैं 
सावन हुई धरा पर !!



अनुपमा त्रिपाठी 

    "सुकृति "

13 comments:

  1. अति सुंदर, मनोहारी अभिव्यक्ति। अभिनंदन।

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  2. वाह,आपने सुखद अनुभूति को प्रकृति के रंगों से सराबोर कर दिया,बहुत सुंदर।

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  3. स्मृतियाँ मन टटोलती भी हैं...

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  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (22 -6-21) को "अपनो से जीतना नहीं , अपनो को जीतना है मुझे!"'(चर्चा अंक- 4109 ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद कामिनी जी !!

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  5. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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  6. खूबसूरत स्मृतियाँ

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  7. झरने लगते हैं ,
    यादों से निकलकर
    तुम्हारी महक में भीगे शब्द
    मेरी कविता तब
    ओढ़ लेती है धानी चुनर...एहसास की हल्की महक में भीगे भाव मन मोह गए। बहुत ही सुंदर सृजन।
    सादर

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  8. बहुत सुंदर

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  9. वाह! बहुत सुंदर कोमल से भाव समेटे अभिनव सृजन।

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  10. कविता यूँ निखरती है ।बहुत सुंदर

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  11. सावन धरा पे झंकार सच में किसी की याद करा जाती है ...
    सुन्दर भावपूर्ण ...

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!