12 July, 2021

व्यथित हृदय की वेदना




व्यथित हृदय की वेदना का

कोई तो पारावार   हो

ला सके जो स्वप्न वापस

कोई तो आसार हो 


 मूँद कर पलकें जो  सोई

स्वप्न जैसे सो गए

राहें धूमिल सी हुईं

जो रास्ते थे खो गए ,


पीर सी छाई घनेरी

रात  भी कैसे कटे ,

तीर सी चुभती हवा का

दम्भ भी कैसे घटे  


कर सके जो पथ प्रदर्शित

कोई दीप संचार हो

हृदय  के कोने में जो जलता,

ज्योति का आगार हो  


व्यथित हृदय की वेदना का

कोई तो पारावार  हो  


 ओस पंखुड़ी पर जमी है

स्वप्न क्यूँ सजते नहीं ?

बीत जात सकल रैन

नैन क्यूँ  मुंदते  नहीं ?


विस्मृति तोड़े जो ऐसी ,

किंकणी झंकार हो

मेरी स्मृतियों की धरोहर 

पुलक का आधार हो 


व्यथित हृदय  की वेदना का

कोई तो पारावार  हो


अनुपमा त्रिपाठी

  "सुकृति "

18 comments:

  1. लाजवाब और सुंदर गीत
    स्वप्न भी अब कहाँ आते हैं... आह।

    नई रचना पौधे लगायें धरा बचाएं

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  2. अतृप्त मनस का व्यक्त संवेदन। प्रभावशाली।

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (१४-०७-२०२१) को
    'फूल हो तो कोमल हूँ शूल हो तो प्रहार हूँ'(चर्चा अंक-४१२५)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. नमस्ते अनीता जी ,
      मेरी रचना को चर्चा अंक में चयन करने हेतु मेरा ह्रदय से सादर धन्यवाद आपको !!

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  4. व्यथित हृदय की वेदना का पारावार ही तो नहीं मिलता ।

    सुंदर सृजन

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  5. काश! काश कि ऐसा हो पाए! बहुत अच्छी और मन को छू लेने वाली अभिव्यक्ति है यह आपकी अनुपमा जी।

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  6. अंतर्मन के मनोभावों का सुंदर चित्रण।

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  7. व्यथित हृदय की वेदना का

    कोई तो पारावार  हो  

    बहुत सुन्दर रचना

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  8. भीनी-भीनी भंगिमा.
    बीत जाये व्यथा.

    कोमल अभिव्यक्ति.

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  9. वेदना के स्वरों को सुंदर शब्दों से पिरोया है आपने! दर्द जब हद से गुजर जाता है दवा बन जाता है

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  10. वेदना का अनन्त स्वर ... आह!

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  11. बेहद हृदयस्पर्शी सृजन

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  12. व्यथित हृदय की वेदना का
    कोई तो पारावार हो - - ह्रदय स्पर्शी रचना - -

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  13. व्यथा हो तो वेदना जन्म लेती है ... जो पीड़ा में कई बार दिल के भाव पनीले कर जाती है ... भावपूर्ण रचना ....

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  14. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 09 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  15. हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी!!

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  16. मन की व्यथा और वेदना जब असह्य हो जाती है तभी ऐसी रचनाओं का सृजन होता है। बहुत अच्छी रचना है दीदी।

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!