''ज़िंदगी एक अर्थहीन यात्रा नहीं है ,बल्कि वो अपनी अस्मिता और अस्तित्व को निरंतर महसूस करते रहने का संकल्प है !एक अपराजेय जिजीविषा है !!''
01 December, 2022
02 October, 2022
यूँ ही रहता हूँ !!!
ज़िन्दगी की हसीन पनाहों में यूँ ही फिरता हूँ ,
तेरी तस्वीर को आँखों में लिए फिरता हूँ !!
आवारगी की ये कैसी इन्तेहाँ हो गई
तेरे संग धूप में छाया में यूँ ही फिरता हूँ
मेरी मस्ती को मेरी हस्ती की ये कमज़ोरी न समझ
तू ही तू है तेरी यादों में यूँ ही रहता हूँ !!!
तेरे आने की खबर ले के हवा आती है
तेरे रुखसार पे अलकों सी घटा छाती है
तेरे उस नूर का हर पल मैं यूँ दीदार करूँ
इसी हसरत में यूँ ही शाम ओ सहर जीता हूँ
अनुपमा त्रिपाठी
''सुकृति ''
19 August, 2022
अनुरिमा .....!!
बीती विभावरी अरुणिमा
उन्नयन ले आ रही है ,
प्रमुदित नव स्वप्न निज उर
लक्षणा समझा रही है ....!!
है सुलक्षण रंग मधु घट
स्वर्णिमा अभिधा समेटे
क्षण विलक्षण अनुरिमा
वसुधा बाग़ महका रही है .....!!
कांतिमय स्थितप्रज्ञ सी
अनुपम सुकेशिनी भामिनि ,
विहग की बोली में जैसे
किंकिणि झनका रही है ....!!
ऐश्वर्य का अधिभार लेकर ,
अंजुरी धन धान्य पूरित
आ रही राजेश्वरी
शत उत्स सुख बरसा रही है !!
वसुधा के कपाल पर
कुमकुमी अभिषेक करती
भोर की आभा में अभिनव
रागिनी मुस्का रही है !!
जीवन है बातों में उसकी ,
शीतलता रातों में है ,
भ्रमर की अनुगूँज
मंगल गीत सुखमय गा रही है .....!!
दे रहे आशीष कण कण
प्रकृति छाया अनुराग
आ रही सुमंगला
शत उत्स सुख बरसा रही है !!
अनुपमा त्रिपाठी
' सुकृति '
01 August, 2022
"लम्हों का सफर "(डॉ .जेन्नी शबनम )
डॉ .जेन्नी शबनम जी की "लम्हों का सफर "पढ़ रही हूँ | लम्हों के सफर में लम्हां लम्हां एहसास पिरोये हैं !!अपनी ही दुनिया में रहने वाली कवयित्री के मन में कसक है जो इस दुनिया से ताल मेल नहीं बैठा पाती हैं | बहुत रूहानी एहसास से परिपूर्ण कविताएं हैं | गहन हृदयस्पर्शी भाव हैं | प्रेम की मिठास को ज़िन्दगी का अव्वल दर्जा दिया गया है | दार्शनिक एहसास के मोतियों से रचनाएँ पिरोई गई हैं किसी और से जुड़ कर उसके दुःख को इतनी सहृदयता से महसूस करना एक सशक्त कवि ही कर सकता है | पीड़ा को ,दर्द को ,छटपटाहट को शब्द मिले हैं | ज़मीनी हक़ीक़त से जुड़ी ,जीवन की जद्दोजहद प्रस्तुत करती हुई कविताएं हैं | सभी कविताओं को सात भाग में विभाजित किया है -१-जा तुझे इश्क़ हो २-अपनी कहूँ ३-रिश्तों का कैनवास ४-आधा आसमान ५-साझे सरोकार ६-ज़िन्दगी से कहा सुनी ७-चिंतन |
रिश्तों के कैनवास में उन्होंने अनेक कविताऐं अपनी माँ ,पिता व बेटा और बेटी को समर्पित कर लिखी हैं !!
आइये उनकी कुछ कविताओं से आपका परिचय करवाऊं |
"पलाश के बीज \गुलमोहर के फूल ''
में बहुत रूमानी एहसास हैं !!बीते हुए दिनों को याद कर एक टीस सी उठती प्रतीत होती है
याद है तुम्हें
उस रोज़ चलते चलते
राह के अंतिम छोर तक
पहुँच गए थे हम
सामने एक पुराना सा मकान
जहाँ पलाश के पेड़
और उसके ख़ूब सारे ,लाल -लाल बीज
मुठ्ठी में बटोरकर हम ले आये थे
धागे में पिरोकर ,मैंने गले का हार बनाया
बीज के ज़ेवर को पहन ,दमक उठी थी मैं
और तुम बस मुझे देखते रहे
मेरे चेहरे की खिलावट में ,कोई स्वप्न देखने लगे
कितने खिल उठे थे न हम !
अब क्यों नहीं चलते
फिर से किसी राह पर
बस यूँ ही ,साथ चलते हुए
उस राह के अंत तक
जहाँ गुलमोहर के पेड़ की कतारें हैं
लाल- गुलाबी फूलों से सजी राह पर
यूँ ही बस...!
फिर वापस लौट आउंगी
यूँ ही ख़ाली हाथ
एक पत्ता भी नहीं
लाऊंगी अपने साथ !
कवयित्री का प्रकृति प्रेम स्पष्ट झलक रहा है !!सिर्फ यादें समेट कर लाना कवयित्री की इस भावना को उजागर करता है कि उनकी सोच भौतिकतावादी नहीं है | प्रकृति से तथा कविता से प्रेम उनकी कविता ''तुम शामिल हो " में भी परिलक्षित होता है ,जब वे कहती हैं
तुम शामिल हो
मेरी ज़िन्दगी की
कविता में। ...
कभी बयार बनकर ,
.
.
कभी ठण्ड की गुनगुनी धुप बनकर
.
.
कभी धरा बनकर
.
.
कभी सपना बनकर
.
.
कभी भय बनकर
जो हमेशा मेरे मन में पलता है
.
.
तुम शामिल हो मेरे सफर के हर लम्हों में
मेरे हमसफ़र बनकर
कभी मुझमे मैं बनकर
कभी मेरी कविता बनकर !
बहुत सुंदरता से जेन्नी जी ने प्रकृति प्रेम को दर्शाया है और उतने ही साफगोई से अपने अंदर के भय का भी उल्लेख किया है जो प्रायः सभी में होता है |
ऐसी रचनाएँ हैं जिन्हें बार बार पढ़ने का मन करता है |
अब ये रचना पढ़िए
''तुम्हारा इंतज़ार है ''
मेरा शहर अब मुझे आवाज़ नहीं देता
नहीं पूछता मेरा हाल
नहीं जानना चाहता
मेरी अनुपस्थिति की वजह
वक़्त के साथ शहर भी
संवेदनहीन हो गया है या फिर नयी जमात से फ़ुर्सत नहीं
कि पुराने साथी को याद करे
कभी तो कहे कि आ जाओ
''तुम्हारा इंतज़ार है "!
प्रायः नए के आगे हम पुराना भूल जाते हैं ,इसी हक़ीक़त को बड़ी ही खूबसूरती से बयां किया है !!जीवन की जद्दोजहद और मन पर छाई भ्रान्ति को बहुत सुंदरता से व्यक्त किया है कविता ''अपनी अपनी धुरी ''में | हमारे जीवन की गति सम नहीं है | इसी से उत्पन्न होती वर्जनाएं है ,भय है भविष्य कैसा होगा | नियति पर विश्वास रखते हुए वे कर्म प्रधान प्रतीत होती हैं !!यह कविता ये सन्देश देती है की भय के आगे ही जीत है | कर्म करने से ही हम भय पर काबू पा सकते हैं !!
"मैं और मछली "
में वो लिखती हैं :
"जल बिन मछली की तड़प
मेरी तड़प क्यों कर बन गई ?
.
.
.
उसकी और मेरी तक़दीर एक है
फ़र्क महज़ ज़ुबान और बेज़ुबान का है
वो एक बार कुछ पल तड़प कर दम तोड़ती है
मेरे अंतस में हर पल हज़ारों बार दम टूटता है
हर रोज़ हज़ारों मछली मेरे सीने में घुट कर मारती हैं
बड़ा बेरहम है ,खुदा तू
मेरी न सही ,उसकी फितरत तो बदल दे !
मछली की ही इस वेदना को कितने शिद्दत से महसूस किया है आपने !जितनी तारीफ की जाये कम है ! किसी से जुड़ कर उसकी सोच से जुड़ना कवयित्री की दार्शनिक सोच परिलक्षित करता है !!
ऐसी ही कितनी रचनाएँ हैं जिनमें व्यथा को अद्भुत प्रवाह मिला है !!ईश्वर से प्रार्थना है आपका लेखन अनवरत यूँ ही चलता रहे
हिन्द युग्म से प्रकाशित की गई ये पुस्तक अमेज़ॉन पर उपलब्ध है | इसका लिंक है
https://amzn.eu/d/7fO0tad
आशा है आप भी इन रचनाओं का रसास्वादन ज़रूर लेंगे ,धन्यवाद !!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
24 July, 2022
उनींदी पलकों पर छाई !!
उनींदी पलकों पर छाई
सपनो की लाली ,
भोर से थी जो चुराई ,
आहट सी
कानो में जो गूंजती थी ,
लगा ,फिर आने को है
अहीरभैरव सी ,
कोई रागिनी अनुरागिनी सी कविता !!
अनुपमा त्रिपाठी
''सुकृति "
20 July, 2022
बन पलाश !!
मुड़ती हुई सी राह की वो मुश्किलें
कर न पाईं थीं मेरे मन को हताश
गूँज उठती आस वही एक नाद बन
रंग उठता था कि जैसे बन पलाश !!
प्रकृति से सार पाने की क्रिया का
भोर से मन जोड़ने की प्रक्रिया का
नित नए अवगुंठनो को खोलने का
करती हूँ सतत अनूठा सा प्रयास !!
मुड़ती हुई सी राह की वो मुश्किलें
कर न पाईं थीं मेरे मन को हताश
मोर की टिहुँकार सुन मैं जाग जाती
पपीहे की पिहु पिहु में गीत गाती
बासन्ती हँसी में जाग जाती मेरे हृद की
सोई हुई अप्रतिम उजास !!
मुड़ती हुई सी राह की वो मुश्किलें
कर न पाईं थीं मेरे मन को हताश !!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति ''
12 July, 2022
घन तुम बरसो ,
घन तुम बरसो ,
घननन बरसो ,
ताल ताल में
ग्वाल बाल की थाप बनो
मन राधा घनश्याम बनो
प्रीत बनो तुम सरसो
घन तुम बरसो !!
फूल फूल में
पात पात में
रंगों से मिल
खिल खिल
मेरे जिय में हरसो
घन तुम बरसो
अनुपमा त्रिपाठी
'सुकृति '
07 July, 2022
हाइकु
तुम पुकारो
गाओ प्रातः का राग
प्रीत महके
भोर चहके
चिड़ियों की रागिनी
मन बहके
प्रीत श्रृंगार
नवल अलंकार
गीत लहके
भोर सुहानी
कहती है कहानी
शब्द संवारे
पँख फैलाये
डोल रहा है मन
गुनगुनाये
रैन बसेरा
क्यों मन लगाए रे
दुनिया मेला
लिखते चलो
जीवन अभिलाषा
मन की भाषा
आई बहार
सकल बन फूले
रंग बिखरे
पुष्प धवल
सुगन्धित बयार
खिले संसार
हुआ सवेरा
जागी फिर आशाएं
खिली दिशाएं
घूँघट खोला
नवल प्रभात ने
बिखेरे रंग
पापीहा बोले
भेद जिया के खोले
मनवा डोले
दिन बीतते
फिर भी न रीतते
स्वप्न सलोने
आई बहार
सकल बन फूले
छाई बहार
चंचल मन
जा रे पिया के देस
उड़ता जा रे
प्रकृति नटी
रंग ज्यों बिखराये
प्रीत सजाये
तुमसे बनी
आकृति प्रीत की
झूमे प्रकृति
अनुपमा त्रिपाठी
'सुकृति '
01 July, 2022
उमंग भरा मन ,जीवन !!
उमड़ते हुए भावों की
शब्द की प्रतीति से ,
रचना से रचयिता तक ,
विलक्षण ,
खिलते कुसुमों से अनुराग लिए ,
पल पल बढ़ता है मन ,
गुनते हुए क्षण क्षण ,
अभिनव आरोहण ,
बुनते हुए रंग भरे कात से ,
रंग भरा ,
उमंग भरा मन ,जीवन !!!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति"
27 June, 2022
जब मौन गहे !!
जो लिख पाना आता तो लिख पाती ,
दो आँखों में गर्व की भाषा जो कह जाती ,
हौले से जो सांझ ढली तो ये जाना ,
सूरज का छिपना होता है
शीतलता का आना ,
ढलकते आंसू में
जो अनमोल व्यथा
सो कौन कहे ?
क्योंकर कोई समझ सका
जब मौन गहे ,
कोई तो कहता है तेरी आस रहे ,
पथ के पथ पर शीर्ष दिगन्तर बना रहे ,
चलते रहने का सुख सबसे बढ़कर है ,
लिख पाऊं कुछ ऐसा जग में मान रहे !!
अनुपमा त्रिपाठी
''सुकृति ''
12 June, 2022
कविता ही तो है !!
शब्द चुनकर
मन की विचारधारा में
बहने का प्रयास ,
क्षण गुणकर ,
रंग बुनकर ,
जीवन सा ,
खिल उठने का प्रयास ,
व्याप्त व्यथा ,
नदी की कथा ,
कहते और कहते रहने का प्रयास ,
तुम हम में बसी
आत्मा को जीवित रखने का प्रयास ,
और नहीं तो क्या ,
कविता ही तो है !!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
06 June, 2022
व्यथित ह्रदय की वेदना .....!!
व्यथित हृदय की वेदना का
कोई तो पारावार हो
ला सके जो स्वप्न वापस
कोई तो आसार हो
मूँद कर पलकें जो सोई
स्वप्न जैसे सो गए
राहें धूमिल सी हुईं
जो रास्ते थे खो गए
पीर सी छाई घनेरी
रात भी कैसे कटे ,
तीर सी चुभती हवा का
दम्भ भी कैसे घटे
कर सके जो पथ प्रदर्शित
कोई दीप संचार हो
हृदय के कोने में जो जलता,
ज्योति का आगार हो
व्यथित हृदय की वेदना का
कोई तो पारावार हो
ओस पंखुड़ी पर जमी है
स्वप्न क्यूँ सजते नहीं ?
बीत जात सकल रैन
नैन क्यूँ मुंदते नहीं ?
विस्मृति तोड़े जो ऐसी ,
किंकणी झंकार हो
मेरी स्मृतियों की धरोहर
पुलक का आधार हो !!
व्यथित हृदय की वेदना का
कोई तो पारावार हो
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
04 June, 2022
शजर
तेरी फ़िक्र से मुझमे है मेरी सांस का होना '
तुझे तुझसे कहीं दूर चुरा लाया हूँ मैं
तेरे चेहरे की हँसी में ही मेरी शाम-ओ -सहर है
सबब -ए -ज़िक्र का पोशीदा असर लाया हूँ मैं
मौसम-ए -गुल की पनाहों में मैं हूँ ,तेरे ख़त भी हैं
तेरी यादों से रची शाम संवार लाया हूँ मैं
घने शजर की छाँव में की दो घड़ी की बात
दिल अपना तेरे पास यूँ ही छोड़ आया हूँ मैं
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
26 May, 2022
पथकिनी
विजन निशा की व्याकुल भटकन ,
पथकिनी का ऐसा जीवन ,
मलयानिल का वेग सहन कर ,
मुख पर कुंतल का आलिंगन ,
बढ़ती जाती पथ पर अपने ,
उषा का स्वागत करता मन !!
रात्रि की निस्तब्धता में
कुमुदिनी कलिका का किलक बसेरा
प्रातः के ललाम आलोक में
उर सरोज सा खिलता सवेरा !!
री पथकिनी तू रुक मत
नित नित चलती चल ,
धरा पर सूर्य की आभा से
मचलती चल !!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
20 May, 2022
अनहद
13 May, 2022
मन फिर मुस्काता है !!
जब
कभी किसी
उदास शाम की आगोश में
लिपटी मेरी तन्हाई ,
न कहती है ,
न कहने देती है ,
अपनी उदासी का सबब ,
गहराती सुरमई साँझ
कजरारे नैनो के मानिंद
तब
पलकें उठाती है
और सोये हुए खाब मेरे
फिर जी उठते हैं ... !!
हवा का इक झोंखा
सहलाकर माथे को
दूर कर देता है
माथे की शिकन
नायाब सा वो खाब
फिर इक बार
जगमगाता है ,
मन फिर मुस्काता है !!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
07 May, 2022
शब्द वही होते हैं
गुन लिए जाते हैं
स्पर्श करें जो भाव तो
समुद्र की लहरों से चंचल
तुम्हारे ...मेरे...
हाँ ... शब्द वही होते हैं ...!!!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
04 May, 2022
नदिया में बहते पानी सा मन !!!
नदिया में बहते पानी सा मन
विचारों सा प्रवाहित जीवन
उसपर बहती जीवन की नाव
रे मन
सबका अपना अपना ठौर
सबकी अपनी अपनी ठाँव !!
कोई धारा कोई किनारा
कोई ले आता मजधार
सबकी अपनी अपनी ठाँव !!
"सुकृति "
01 May, 2022
संस्मरण ....Baroda days ...!!
संस्मरण ....Baroda days ...!!
कहते है -जैसे अपने मन के भाव होते है ...वैसी ही दुनियां दिखती है ....!!.भ्रम क्या होता है ...इसी पर कुछ लिखने का मन हुआ ..!!
बहुत दिनों पहले की बात है ..मेरे पतिदेव का वड़ोदरा स्थानांतरण हुआ था ।हम नए नए ही पहुंचे थे नया घर सुसज्जित कर मन प्रसन्न था ।फ्रिज साफ़ करके जमाया तो हवा का एक झोंका जैसे पल को उदास कर गया ...''अरे सब्जी तो है ही नहीं ..!!"सोचा ..क्यूँ न बाज़ार से सब्जी ही ले आऊँ ..?और शाम को पतिदेव को बढ़िया सा खाना ही खिलाऊँ ..!!पिछले कुछ दिनों से ढंग से खाना घर में बना ही कहाँ था ..?प्रसन्न मुद्रा ...अपनी ही सोच में डूबी ....मन ही मन कुछ गुनगुनाती हुई सी ......सब्ज़ी मंडी पहुंची !बहुत भाव-ताव करना उस समय आता नहीं था .........हाँ पतिदेव की ट्रेनिंग में अब बामुश्किल सीखा है ..!!वो भी शायद ढंग से नहीं ....!!सब्जी खरीद चुकी थी ।लौटते हुए बिलकुल ताज़ी ...हरी धनिया(कोतमीर) दिखी ...!!अरे वाह ...एकदम ताजी धनिया .....!!!हींग जीरे की छुंकी दाल हो .......और ऊपर से धनिया पड़ा हो .....हमारे घर में खुशी बिखेरने के लिए इतना बहुत है ...!!जब श्रीमानजी के लिए धनिया खरीदी जा रही थी ...तो थोड़ी उनकी ट्रेनिंग भी याद रही ..."थोडा भाव-ताव किया करो ...!''बस वही याद करते करते लग गए भाव -ताव करने ...!!"अरे इतना महंगा धनिया ..!!!!अरे नहीं भई ...भाव तो ठीक दो ।"अब वो भला मानुस भी अपनी दलीले देने लग गया । मानने को राज़ी नहीं ...खैर मैंने भी सोचा नहीं लूंगी अगर कम में नहीं देगा ....!! मैं पलटी और वापस चल दी !!
पंद्रह बीस कदम चल चुकी थी ,तब न जाने क्या सोच कर उसने मुझे आवाज़ दी ..."ओ मोठी बेन .....कोतमीर लइए जाओ | " मैं वड़ोदरा में नई थी और गुजराती भी नहीं जानती थी | और तो और मोटापे की मारी तो थी ही ! अब मोटे इंसान को अगर मोटा कह दिया जाये तो उससे बुरा उसके लिए और कुछ नहीं होता ,यकीन मानिये !!उसकी आवाज़ सुनते ही गुस्से के मारे मैं तमतमा गई !!"उसने मुझे मोटी बोला तो बोला कैसे ??? पलटकर तेज़ रफ़्तार मैं उसकी ओर बढ़ने लगी !मेरा चेहरा देखते ही भला मानुस मेरे मन की बात समझ गया | तुरंत हाथ जोड़ खड़ा हुआ और बोला " बेन आप गुजरात में नए आये हो ??'' उसके मासूम चेहरे और धीर गंभीर व्यक्तित्व के आगे मेरे गुस्से ने अपने हथियार डाल दिए !! मैंने कहा "हाँ ,क्यों ??" ''अरे बेन इधर ,हमारे गुजराती में मोठी मने बड़ी बेन होता है मोटी नहीं !!" इतना कहकर मुस्कुरा दिया | अब मुझे अपनी गलती समझ आई |
इस घटना का असर यह हुआ कि वो सब्जी वाला मेरा परमानेंट सब्जी वाला बन गया ,जब तक मैं वड़ोदरा में रही |
**********************
कभी कभी थोड़ा हंसना -हँसाना भी सेहत के लिए अच्छा होता है .....!!!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
28 April, 2022
लक्ष्मी
रमेश बड़ा ही ईमानदार और सज्जन पुरुष है | नेक दिल इंसान ,हर किसी की मदद को तत्पर !!गरीबी में भी कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाये | स्कूल के मास्टर साब ,जो पिताजी के दोस्त भी हैं ,उनके घर बचपन से आना जाना रहा है | उन्हीं की पुत्री सुगंधा कब हृदय में विराजमान हो गई ,पता ही नहीं चला | दोनों मित्र अपने बच्चों के मन की बात जानते थे ,सो यथा समय विवाह हो गया | गाँव का जीवन आसान नहीं होता !! नित नयी मुश्किल का सामना करते हुए रमेश दो पुत्रियों का पिता भी बन गया | उसे अपनी बेटियां बहुत प्यारी थी !! खेत खलिहान पर दिन भर की थकन के बाद जब घर आता ,बच्चों की मीठी मीठी बातों में सरे ग़म भूल जाता | सुगंधा मेहनत कर दिन -ब-दिन दुबली हुई जा रही थी!दूसरे प्रसव में उसे बहुत तकलीफ़ हुई थी और डॉक्टर दीदी ने कह दिया था, "रमेश अब तुम तीसरे बच्चे की सोचना भी मत | "
इसी तरह छुटकी भी अब आठ साल की हो गई थी !! रमेश जहाँ जाता गाँव के बूढ़े उसे आशीष देते कह ही देते ,''एक लड़का हुई जाये | '' रमेश कभी खीज भी जाता | लेकिन समाज का असर मनस्थिति पर हो ही जाता है | रमेश के मन में भी यही विचार धीरे धीरे घर करने लगा | किसी तरह उसने सुगंधा को भी राज़ी कर लिया | जब तीसरे गर्भावस्था की ख़बर डॉक्टर दीदी को मिली तो वे बहुत नाराज़ हुईं | लेकिन इस बार सुगंधा की तबियत बिलकुल ठीक है | उसे खूब भूख़ लगती है ,और चेहरे पर चमक भी आ गई है | सुगंधा को लगा वैभव लक्ष्मी का व्रत कर उसने इस बार लड़का माँगा है ,शायद ईश्वर ने उसकी सुन ली है | रमेश के दिन बदलने से लगे हैं | नित नई परेशानियां दूर भागने लगीं हैं | उसे समझ में आ गया है कि उसका सोया भाग जाग गया है !! ये बच्चा उनके परिवार के लिए भाग्यशाली सिद्ध हो रहा है | सुगंधा जहाँ जाती बड़ी बूढ़ी औरतें अटकलें लगतीं ,''लड़का है '',कुछ कहतीं ,''मुझे तो इस बार भी लड़की ही लगे है |'' सुगंधा धीरे से मुस्कुरा देती | अब वो दिन आ ही गया | जैसे ही बच्चा हुआ ,सुगंघा ने डॉक्टर दीदी से तुरंत पूछा ,''दीदी क्या हुआ ?" अब डॉक्टर दीदी थोड़ी असमंजस में आ गईं कैसे बताया जाये !! उन्होंने टालने की कोशिश की | सुगंधा समझ गई की इस बार भी लड़की है !! उधर रमेश ईश्वर से सुगंधा और बच्चे के लिए दुआ मांग रहा था !! वो ये बात तो जान ही गया था कि बच्चा उसके लिए बहुत किस्मत लेकर आया है और अब उसके दिन फिर गए हैं !! जैसे ही डॉक्टर दीदी प्रसव रूम से बहार आईं उन्होंने बड़ी मायूसी से कहा ,''रमेश इस बार भी लड़की है | '' रमेश के पास दो रास्ते थे ,या तो अपनी किस्मत को ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार करे ,या जीवन भर मायूस रहे | उसने मुस्कुराते हुए पूछा ,''दीदी सुगंधा ठीक है न ? और हाँ दीदी इस बच्ची का नाम हमने लक्ष्मी तय किया है |'' डॉक्टर दीदी को अब रमेश और सुगंधा पर गर्व हो रहा था !!
अनुपमा त्रिपाठी
''सुकृति "
25 April, 2022
मेहनत रंग लाई !! (लघु कथा )
मेहनत रंग लाई!!(लघुकथा )
सुनील को उसके काम की वजह से बहुत इज़्ज़त मिलती है | प्यारी सी मुनिया को पा सुनील मिस्त्री बहुत खुश था |अब दूसरा बच्चा नहीं चाहिए | सुरेखा भी सिलाई करके कुछ पैसे कमा लेती थी सर्व गुण संपन्न ,आठ साल की मुनिया कॉन्वेंट में पढ़ती है | पढ़ने में अव्वल |
कल मुनिया ने पापा से पूछ ही लिया ,''पापा आप ने क्या पढ़ाई की है ?'' सुनील ने बात टाल दी | उसे लगा अगर मुनिया को डॉक्टर बनाना है तो उसे पढ़ाई करनी ही पड़ेगी | उसने मैट्रिक का फॉर्म भर दिया | मेहनत रंग लाती है | आज मुनिया डॉक्टर है ,सुनील का काम बढ़िया चल रहा है और घर के बाहर बोर्ड लगा है सुनील मिस्त्री ,बी ए ,एल.एल बी !!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
19 April, 2022
मेधा (लघु कथा )
रमा मेधावी छात्रा रही | माँ की तबियत अक्सर ख़राब रहती जिसके चलते सात भाई बहनों में सबसे छोटी रमा को बी ए करते ही ब्याह दिया गया था राम मनोहर पंडित जी के ज्येष्ठ पुत्र अमिय से जो कॉलेज में प्रोफेसर है और जी तोड़ मेहनत आई.ए.एस में आने के लिए कर रहा है | यूँ तो सभी स्वभाव से नेक दिल हैं लेकिन अपनी अपनी समस्याओं में उलझे रमा की महत्वाकांक्षा की और किसी का ध्यान ही नहीं गया | और अब तो छोटा बिट्टू भी रमा का समय लिए रहता | लेकिन मेधा उसके दिमाग में इस क़दर छाई रहती कि जब भी समय मिले वो कुछ न कुछ पढ़ती रहती | बाबूजी के साथ टी वी पर भी अच्छे प्रोग्राम देखती और बाकायदा बहस भी करती | बाबूजी प्रसन्न रहते उनकी बहु कितनी गुणवान है |
अमिय का यह दूसरा अटेम्प्ट था इसलिए संजीदा ही रहते पूरे समय पढ़ाई में व्यस्त | अमिय से रमा ने भी इक्ज़ाम देने की बात कही तो वो समझा रमा मज़ाक कर रही है | "ये परीक्षा हंसी खेल नहीं है रमा ''अब रमा चुप रही | पर शाम को कॉलेज से आते हुए जब अमिय फॉर्म ले आया तो रमा की ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा | कहीं न कहीं बाबूजी की वृद्ध आँखों ने रमा की मेधा परख ली थी | वे एक तरह से रमा के गाइड ही बन गए | अम्मा भी जानती थीं कि बाबू जी जो भी काम हाथ में लेते हैं उसे पूरी तन्मयता से निभाते हैं | बिट्टू को सम्हालने में अम्मा बहुत मदद करतीं | अमिय अपनी ही पढ़ाई में इतने मशगूल थे कि आस पास देखने की फुर्सत ही कहाँ थी | अमिय के साथ ही रमा भी एक के बाद एक सारे एक्ज़ाम पास करती जा रही थी | कल आई. ए.एस का रेसल्ट है | रात भर अमिय और रमा सो भी नहीं पाए | चहलकदमी करते ही सारी रात बीती | कभी कभी बाबूजी की आवाज़ सुनाई पड़ती थी ,''अरे सो जाओ ,सब ठीक होगा | "
अब दस बजे तक का समय कैसे कटे ! लेकिन नौ बजे ही अमिय के मित्र का फोन आया ,''बधाई हो आप दोनों सिलेक्ट हो गए हैं और मज़े की बात है भाभी का स्त्रियों में अव्वल रैंक है !!रमा के आँखों में अविरल अश्रुधारा बह रही थी | वो जानती थी अमिय के प्यार के बिना ,बाबूजी के अथक परिश्रम के बिना और अम्मा के सहयोग के बिना यहाँ तक पहुँचना नामुमकिन ही था !!!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति ''