08 June, 2011

सुरमई सांझ ढल रही है ...!!

अनादि  काल .....
अनादि  काल .....
सदियों ..पीछे -
जा पहुंचा है मन .....
संधिप्रकाश का
दीपक जला -
नीलाम्बर पधारा है, 
धरा द्वार ...!!
सुरमई सांझ 
ढल रही है ...!!
सुरों की सुरभि 
बिखेर रही है ..!!
पट खुले हैं रागों के-
नीलाम्बर    
सोच में डूबा है ... 
कोमल रिषभ,शुद्ध गंधार 
और तीव्र मध्यम 
को साथ ले- 
आज पूरिया  या मारवा 
किस मंदिर  जाऊं ...? 
पूरिया   धनाश्री भी
आरती  कर  रही होगी ...!!
किससे प्रसाद पाऊँ ....?
दूर से ही सुनाई देती है...!!
अनायास मन रिझा लेती है  ....!!
मंदिर के घंटों  की -
गूंजते हुए शंखों की-
हृद  झंकृत करती हुई... 
मोहक-
चित्ताकर्षक - 
गुरुत्वाकर्शक...नाद ...!!
और सामवेद के 
सम्मिलित स्वर ...!!
जैसे भाव हों  प्रखर ..!!
ये प्राचीन मंदिर,
इन रागों के- 
पुष्कल निवास ..!
सुसज्जित हैं-
मन वीणा  के तारों से ...!
अलंकृत हैं -
राग -सुर अलंकारों से ..!
प्रकांड पंडित यहाँ,
प्रवीण हैं -
मन्त्र -उच्चारण में ...!!
दिव्य शांति प्रसारण में ....!!
सुरों  के  आलोक  से  प्रकाशित  वातावरण ....
ये सौभाग्य हमारा ...
अखंड  विश्वास हमारा..........
सुरीला इतिहास हमारा ...
कहाँ ..कब .....
कैसे खो गया ...?
सोचते सोचते क्लांत ...!
मन मेघन बरस गया ...!!


संधिप्रकाश राग :सुबह और शाम जब तम और प्रकाश की संधि होती है ,उस समय कुछ विशिष्ट रगों को गाया जाता है ,जिन्हें संधिप्रकाश राग कहते हैं |कोमल रिषभ (रे ),शुद्ध गंधार (ग )और तीव्र मध्यम (म )का प्रयोग इन रागों की विशेषता है |
भैरव सुबह का संधिप्रकाश राग है और मारवा शाम का |परम अचरज की बात ये है ...जब आप राग भैरव सुनते हैं समझ में आता है ...उज्जवल प्रकाश आने वाला है ...और जब मारवा सुनते हैं ...लगता है ...अंधकार  छाने वाला है ...!!मन न माने तो सुन कर देख लीजियेगा ........!!
अब तक आप समझ गए होंगे ....पूरिया ,मरवा ,पूरिया धनाश्री -सांझ के संधिप्रकाश रागों के नाम हैं ..!!
सामवेद गाया जाता है ...जो ये बताता है की हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का इतिहास कितना पुराना है ...!!या यूँ कहिये ...मानव और स्वर का रिश्ता कितना पुराना है ...!!





38 comments:

  1. अखंड विश्वास हमारा..........
    सुरीला इतिहास हमारा ...
    कहाँ ..कब .....
    कैसे खो गया ...?
    सोचते सोचते क्लांत ...!
    मन अंसुअन रो -रो गया ...!!

    आपने बिलकुल सही बात कही है.आज हम अपने महान इतिहास को भूलते जा रहे हैं जबकि आवश्यकता उससे प्रेरणा ले कर नये कीर्तिमान स्थापित करने की है.

    सादर

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  2. अखंड विश्वास हमारा..........
    सुरीला इतिहास हमारा ...
    कहाँ ..कब .....
    कैसे खो गया ...?
    सोचते सोचते क्लांत ...!
    मन अंसुअन रो -रो गया ...!!
    saargarbhit bhaw

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  3. राग -सुर अलंकारों से ..!
    प्रकांड पंडित यहाँ,
    प्रवीण हैं -
    मन्त्र -उच्चारण में ...!!
    दिव्य शांति प्रसारण में ....!!
    ये सौभाग्य हमारा itihas ko yaad dilaati hui.saanjh ka sunder chitrn us per sangit ka gyaan kya baat hai bahut hi sunder rachanaa.badhaai sweekaren.

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  4. अपने इतिहास पर हमें भी पूरा विश्वास है।

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  5. सुरीला इतिहास हमारा ...
    कहाँ ..कब .....
    कैसे खो गया ...?
    सोचते सोचते क्लांत ...!
    मन अंसुअन रो -रो गया ...!!
    …. सुन्दर अभिव्यक्ति्….. इतिहास दोहराता है…..

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  6. आज की क्लास में आकर धन्य हुआ। कुछ नई जानकारी मिली। कुछ उदाहरणों के औडियों क्लिप भी लगा देते तो प्रैक्टिकल भी साथ-साथ हो जाता।

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  7. अखंड विश्वास हमारा..........
    सुरीला इतिहास हमारा ...
    कहाँ ..कब .....
    कैसे खो गया ...?
    सोचते सोचते क्लांत ...!
    मन अंसुअन रो -रो गया ...!!

    गहन अर्थ लिए अभिव्यक्ति.....बहुत सुंदर

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  8. सुन्दर रचना के साथ अच्छी और उपयोगी जानकारी

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  9. धीरे धीरे शायद हमें इसी तरह रागों के नाम और उनकी विशेषता समझ आ जायेगी . इस प्रयास के लिए धन्यवाद .

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  10. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति |
    आशा

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  11. अनुपमा जी,
    एक बेहतरीन रचना और रागों के बारे में जानकारी के लिए धन्यवाद ...
    आपकेपास शब्दों का अनुपम ज्ञान है ... और आप उसे प्रयोफ़ कर सुन्दर सुडौल रचना की सृष्टि करते रहिये ... अभिनन्दन !

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  12. आपका ज्ञान संगीत तक ही सिमित नहीं है आप बहुत ही अच्छी कवियेत्री भी हैं...मन के भावों को अनूठे शब्दों से सजाया है आपने...मेरी बधाई स्वीकारें. हमारे संगीत ज्ञान में बढ़ोतरी कराने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया .

    नीरज

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  13. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  14. पहले मैंने कविता का अंत किया था :
    सोचते सोचते क्लांत ...
    मन अंसुअन रो -रो गया ..!!
    आज सुबह मेरी मेरी बहुत ही प्यारी मित्र -मीना का फ़ोन आया और कहने लगी अंतिम पंक्ति कविता बहुत उदास कर रही है ....कविता का उठाव गिर गया है ...कहीं शायद ते बात मेरे अंदर भी खटक रही थी ...मैंने अंत बदल कर अब
    सोचते सोचते क्लांत ...
    मन मेघन बरस गया ....!!
    कर दिया है ...!!
    अब मुझे भी अंत बेहतर लग रहा है .
    Thanks Meena for all your love and warmth.

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  15. मन जब बरसता है तो अश्रु ही तो निकलते हैं...शब्दों के बदलने से भाव तो नहीं बदल जाते.. संगीत के रागों से परिचय करवाती बहुत सुंदर कविता के लिये बधाई और मीनाजी के साथ आपको भी शुभकामनाएँ !

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  16. सुन्दर अभिव्यक्ति - इतिहास पर हम तो गर्व कर रहे हैं - पर क्या हम आने वाली पीढ़ी के लिए गर्व करने योग्य कुछ बनायेंगे - या नहीं - यह असली बात है ...

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  17. हम पुरे मनोयोग से आपकी कक्षा में उपस्थित है . पिछली कक्षाओ से अनुपस्थित रहने का दुःख है . हम गुने जा रहे है .

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  18. अभिव्यक्ति् सुन्दर है

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  19. बहुत अद्भुत जानकारी मिल रही है...आभार!!

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  20. Anupama this is a beautiful poem with diligently chosen words which remind us of our beautiful treasure of Indian classical music.
    I pray the ALMIGHTY to help the people like YOU who are trying there best to preserve this culture.

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  21. मेरे लिए कई नई सूचनाएं - अच्छा लगा - वाह - हो सके तो अनादी को अनादि कर लें.
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  22. वाह संगीत के साथ आपने हमारे अखंड वैभवशाली इतिहास को याद दिला दिया ..अद्भुत ...संगीत की मैं विद्यार्थी रही किन्तु उतने समय में डॉक्टर की पढ़ाई और फिर चिकित्सक के कर्तव्य के बीच इसकी थीओरी को भूल गयी ... हां गीत गुनगुनाती हूँ आज भी.. राग यमन राग बागेश्वरी आदि... आपने मुझे मेरा इतिहास भी याद दिला दिया .. उम्दा .. आपका लिखने का अंदाज भी बेमिसाल

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  23. वाह खूबसूरत शब्द , खूबसूरत ताना बाना और सुन्दर सन्देश.

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  24. हमें तो संगीत के बारे में ज्यादा मालूम नहीं है जो अच्छा लगा वह सुन लिया |रगों की विशेषता बताने के लिए धन्यवाद

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  25. अखंड विश्वास हमारा..........
    सुरीला इतिहास हमारा ...
    कहाँ ..कब .....
    कैसे खो गया ...?
    सोचते सोचते क्लांत ...!
    मन अंसुअन रो -रो गया ...!!

    बहुत ही बढ़िया रचना है,
    साभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  26. "हमारा ...
    अखंड विश्वास हमारा..........
    सुरीला इतिहास हमारा ...
    कहाँ ..कब .....
    कैसे खो गया ...?
    सोचते सोचते क्लांत ...!
    मन मेघन बरस गया ...!!"
    हम धीरे-धीरे अपना गौरवशाली अतीत भूलते जा रहे हैं.जरुरत इसे संजोने की है,गर्व से इसे अपना बनाने की है.रहे आसान नहीं होती.गुणों को बच्चों और बुजुर्गों की तरह संभालना पड़ता है.संगीत की विभिन्न विधाओं के माध्यम से एक स्थाई संदेश.सारगर्भित !

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  27. आशा है अगली पोस्ट में तीनों रागों का आरोह अवरोह और मुखड़ा सुनने को मिलेगा ...
    पूरिया धनश्री .... एक बार सुना था ये गाना "मेरी साँसों को जो महका रही है .... " शायद इसी राग में है ...... आह सोच कर ही मज़ा आ रहा है ... आपने अभी से मूड बदल दिया ....

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  28. कविता अति सुन्दर..

    रागों के बारे में जानकारी बहुत अच्छी लगी .

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  29. आपने मेरे विचारों को,मेरे मन के भावों को ,हमारे सुरीले इतिहास को पढ़ा और सराहा भी ...आपका बहुत बहुत धन्यवाद ...!सबसे अच्छी बात मुझे ये लगी कि मेरे पास कई सन्देश ये कहते हुए आये कि "समस्या इतनी गंभीर भी नहीं है जितनी तुम सोच रही हो ".....तब लगा मेरा लिखना सार्थक हो गया है ..!!आप सभी से जुड़ कर अब मेरी आस्था गहराने लगी है ....अपना आशीष और सद्भाव बनाये रहिएगा ...!!नमस्कार ..!!

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  30. पूरिया, मारवा और पूरिया धनाश्री बहुत कर्णप्रिय राग हैं। इनको प्रतीक बनाकर कविता के माध्यम से भावों को अभिव्यक्त करना अच्छा लगा।

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  31. कैसे खो गया ...?
    सोचते सोचते क्लांत ...!
    मन अंसुअन रो -रो गया ...!!

    आपने बिलकुल सही बात कही है.....सुन्दर अभिव्यक्ति

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  32. कुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 15 दिनों से ब्लॉग से दूर था
    इसी कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका !

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  33. namaskaar...aapke blog par yahan se aana ho saka.. http://sameekshaamerikalamse.blogspot.com/2011/06/blog-post_25.html

    sacmuch aapki is rachna ko padh ke hi samjha ja sakta hai ki aapko sangeet aur sanskriti se kitna prem hai...

    :)

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!