22 July, 2011

सखि री ..श्याम नहीं आये ...

सावन है ...अनेक भाव लेकर घिरे हैं बदरा ...हम कितना ही झूम लें सावन की बुंदि यन के संग.. .कभी-कभी.........
.मन कचोटने लगता है ..!दूर दृष्टि फैलाऊं ...देखती हूँ ...ये सावन उस सुकुमारी का भी तो है ...जिसके पिया उससे दूर हैं ...!!उसकी वेदना पढ़े ..समझे ..लिखे बिना ...सावन के भाव अधूरे से लगते हैं ...!!
इस बार  एक विरहिणी की व्यथा है ...
उस विरहिणी की जिसके प्रभु ..श्याम ..सावन में भी उससे दूर हैं ...सुख-दुःख जीवन के दो पहलू हैं ...उन्माद और विरह सावन के भी दो पहलू हैं ...बिना इस विरह गीत के सावन का वर्णन भी अधूरा है ...!!






घन-घन घोर घटा छाई है ...
घन-घन घोर घटा छाई है ...
बिजुरी चम्-चम् चमकाई है ...
उमड़ घुमड़ कर घिर घिर आये ..
बदरा कारे हिय घबराये..!!


छिन छिन पल-पल मोकों
याद आये चितचोर की बतियाँ ..
सखि री  काटे ,कटे न मोरी रतियाँ .
कैसे लिखूं श्याम  को पतियाँ ...


रो-रो असुअन  भीग...
पतरी मिट-मिट जाये ...
राह तकत अब बेर भई...
हिय व्याकुल..अति अकुलाये .....!!
मोहे ..सावन नाहीं सुहाए ...!!
 


सखि री श्याम भरमाये ..
अब लौं नहीं आये ...




बरसे सवनवा के बैरी बदरवा ..
मोहे ..कल ना परत ....अब कैसी ....
श्याम घटा छाई....!!!!!
आस  भरा ..पीर भरा मन ..
रो-रो नीर बहाए ..धीर गंवाए ....
कजरवा घुरी-घुरी जाए ...
सूने नयन ..कर जाए ...!!
सखि री  श्याम नाहिं  आये ...!!


सूनी राह सों  बाट तकत मनवा ..
सखि री  श्याम नाहिं  आये ...!!



भरमाये से अर्थ है -किसी भरम या भ्रम में पड़ जाना या भूल जाना ...
 

55 comments:

  1. घन-घन घोर घटा छाई है ...
    बिजुरी चम्-चम् चमकाई है ...
    उमड़ घुमड़ कर घिर घिर आये ..
    बदरा कारे हिय घबराये..!!

    आपने शब्दों की बूंदों से भावों
    की मधुर बरसात कर दी है,जो मन को
    भिगो कर कानों में संगीत उंडेल
    रही है.
    अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

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  2. ह्रदय की व्यथा को मार्मिकता के साथ प्रस्तुत किया है आपने .आभार .

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  3. बहुत सुन्दर गीत ..विरह की पराकाष्ठा को दिखाता ...भावपूर्ण ..बहुत अच्छा लगा

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  4. सुन्दर, सार्थक और सामयिक प्रस्तुति, बधाई

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  5. BAHU BADIYAA SAWANIGEET.VIRAHADI KI MANODASHAA KA SAARTHAK CHITRAN.BAHUT SUNDER CHITRON KE SAATH.BAHUT SUNDER BHAV LIYE ACHCHI RACHANAA.BADHAAI AAPKO.

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  6. बढ़िया वर्षा गीत!
    --
    अगर बुरा न मानें तो "सखरी" को
    "सखि री" कर दें!

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  7. सावन का महीना साल के हर महीनों से अलग सा ही होता है। इस महीने में किसी भी संवेदनशील मानव हृदय मे एक अजीब सी स्थिति स्वत: ही अपना स्थान बना लेती है जो अहर्निश अज्ञेय प्रश्नों से टकराती रहती है एवं इसकी प्रतिध्वनि मन के संवेदनशील तारों को दोलायमान स्थति में प्रतिस्थापित कर जाती है। आपकी कविता मन को आंदोलित कर गई।
    धन्यवाद।

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  8. गीत तो खूबसूरत है ही, दोनों फोटो लाजवाब हैं..

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  9. शास्त्री जी ..आभार आपका ..शब्द सुधार कर दिया है ...सखिरी..कर दिया है ..

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  10. मन भावन सावन के अनुरूप सुंदर प्रस्तुती,
    आभार.....................

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  11. मार्मिक प्रस्तुति ||
    बधाई स्वीकारें ||

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  12. saawan ka maheena us par yeh geet...achchi anupam prastuti.

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  13. सावन और विरह के अनोखे रिश्ते का कव्यरूपी अनुपम चित्रण है ...ये सिलसिला जारी रहे शुभकामनायें

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  14. वाह! सावन की विरहणी को आपने शब्द दे दिये, कोमल और मधुर शब्द!

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  15. मेरा सौभाग्य...आपके ब्लॉग तक पहुँचने का मार्ग मिला...

    अब तो नियमितता बनी रहेगी...

    इसका गेय रूप हमतक नहीं पहुंचायेगीं ??

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  16. शब्दों की घटा ने आनन्द का अमृत बरसा दिया।

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  17. खूबसूरती से रचा गया सुन्दर विरह गीत...
    सादर...

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  18. ह्रदय की व्यथा को मार्मिकता के साथ प्रस्तुत किया है आपने .आभार .

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  19. खुबसूरत सावन की अभिवयक्ति...

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  20. प्रभावी शब्द दिए हैं |बहुत ही सुन्दर भावों से सजी कविता |

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  21. घन-घन घोर घटा छाई है ...
    बिजुरी चम्-चम् चमकाई है ...
    उमड़ घुमड़ कर घिर घिर आये ..
    बदरा कारे हिय घबराये..!!
    madhur geet ,anupam prastuti .

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  22. kalpana kar rahi thi ki agar aap is geet ko gaa rahi hoti to kaise sur me ga rahi hoti aur kaisa lagta sunNe me. kash aapki awaaz podcast ki hoti is gane par to maja aa jata.

    bahut sunder prastuti.

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  23. विरह की पराकाष्ठा ....... मार्मिक प्रस्तुति |

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  24. खूबसूरत और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  25. घन-घन घोर घटा छाई है ...
    बिजुरी चम्-चम् चमकाई है ...
    उमड़ घुमड़ कर घिर घिर आये ..
    बदरा कारे हिय घबराये..!!

    श्रंगार और भक्ति रस से भरी हुई रचना .

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  26. घन-घन घोर घटा छाई है ...
    बिजुरी चम्-चम् चमकाई है ...
    उमड़ घुमड़ कर घिर घिर आये ..
    बदरा कारे हिय घबराये..!!

    श्रंगार और भक्ति रस से भरी हुई रचना .

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  27. कृपया अपनी चर्चा अवश्य देखें अनुपमा जी...:) नई पुरानी हलचल पर।

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  28. अहा..
    विरह की पराकाष्ठा या अध्यात्म की अनुभूति ...
    बहुत सुंदर!!

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  29. छिन छिन पल-पल मोकों
    याद आये चितचोर की बतियाँ ..
    सखि री काटे ,कटे न मोरी रतियाँ .
    कैसे लिखूं श्याम को पतियाँ ...
    saavan ke ras me bhigi sundar rachna

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  30. बहुत ही बढ़िया।

    सादर

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  31. सुन्दर पोस्ट बधाई और शुभकामनायें |आदरणीया अनुपमा त्रिपाठी जी

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  32. सुन्दर पोस्ट बधाई और शुभकामनायें |आदरणीया अनुपमा त्रिपाठी जी

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  33. बहुत अच्छी रचना |

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  34. विरह को दर्द की मिठास में घोल के पकाया है ये गीत .बहुत सुन्दर प्रस्तुति .

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  35. बहुत सुंदर रचना।
    शुभकामनाएं

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  36. drishyon ke saath kavita ka aanand dugna ho gaya

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  37. बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! बेहतरीन प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  38. घन-घन घोर घटा छाई है ...
    बिजुरी चम्-चम् चमकाई है ...
    उमड़ घुमड़ कर घिर घिर आये ..
    बदरा कारे हिय घबराये..!!

    बहुत खूब...अच्छा लगा पढ़कर
    ब्लॉग भी फालो कर लिया है...आगे भी पढ़ूंगी...

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  39. anupma ji
    bahut hi behatreen chitran ,khushi v virah vedana ,dono ka samanjasy bahut hi man bhaya.
    han!aaj aapki nai purani halchal par bhi gai .aadarniy sir ki prastuti ati sundar lagi .is post ko padhwane ke liye aapko bahut bahut badhai
    poonam

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  40. अनुपमा जी सावन की मनमोहक रचना ने जहाँ मन मोहा वहीँ विरिहिनी ने आँखों में आंसू टपका दिया
    सुंदर रचना कोमल भाव
    बधाई हो
    शुक्ल भ्रमर ५
    बाल झरोखा सत्यम की दुनिया

    रो-रो असुअन भीग...
    पतरी मिट-मिट जाये ...
    राह तकत अब बेर भई...
    हिय व्याकुल..अति अकुलाये

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  41. बहुत उम्दा...भावपूर्ण!!!

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  42. अद्भुत विरह गीत...वाह...

    नीरज

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  43. खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  44. अरे वाह!...बहुत ख़ूब

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  45. गहन अभिव्यक्ति लिए मन के पावन भाव....

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  46. बहुत ही आध्यात्मिक अनुभूति से लिखी ये रचना आपने पसंद की और अपने अमूल्य विचार दिए ....आभार ...आप सभी का ..!!
    यही प्रीति बनाये रहिएगा .....!!

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  47. hriday gad gad ho utha hai kuchh sabd nahi nikal rhe hai

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  48. mera apko namaskar mera blog kavyachitra awasya dekhe

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!