12 April, 2012

ओस से कोमल एहसास ...

जीवन की गहराईयों में
डूबने लगा जब मन ...
टूटने क्यों लगे ...
नयनो के  प्यारे सपन ...
जैसे  तेज़  धूप से
कुम्हलाने  लगा  हो ...
कोमल पुष्प का  तन ...!!

करती हूँ जतन..
बंद कर लूं नयन  ...
ढलकने न दूं उन्हें ...
जीते हुए जीवन से  मिले थे जो ...
सहिष्णुता से ..सुन्दरता से ...
ओस से कोमल  एहसास  तुमसे .. .......
तुम ही तुम ....
तुम्हारे ही रूप ,लावण्य से परिपूर्ण ...!!

किन्तु सोचती हूँ ...
अब डर क्यों लगता है ...?
डर भी ये जीवन का
सत्य ही तो देता है ...!!

बुद्धि ,विवेक जब साथ देता है मेरा ...
यकायक ..बुद्धि मुखर  हो उठती है ...कहती है ...
''सिर्फ कोमलता ही तो जीवन नहीं ...
जीवन का साथ निभाना है तो ...
कठोरता भी सहना ही पड़ती है ...
सुख ही सुख की चाहत रखना ...
दुःख से मुहं मोड़ लेना ...
जीवन से भागना तो पलायन ही है ....!! ''

रखती हूँ मान मन का ...
हंसकर सुनती हूँ  बात मन की ...
धरती हूँ और धीरज ...
किन्तु ....अब ...धैर्य  की परीक्षा देते देते .....
शिथिल हो रही हूँ  .....
मांगती हूँ थोड़ा और धैर्य ...
प्रभु  से ......
कि ये आसक्ति ...
बनी रहे जीवन से .....!!
धूप में खड़े-खड़े ..
आज डरती हूँ ...
ये बूँदें  सहेजूँ कैसे ...?
कहीं ढलक कर  ...
मेरे नयनो से ..
ये ओस से ..पावस ..गहरे ...अमिय ..
अनमोल एहसास..
यूँ स्वयं  गिरकर .........
और गिराकर तुम्हारी छवि मेरे नयनो से ...
मुझे विरक्त ही न कर दें ...!


40 comments:

  1. ये जीवन है...इस जीवन का यही है रंग रूप..

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  2. Bahut khoobasoorat ahasaas, badhai.

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  3. वाह!!!!

    सिर्फ कोमलता ही तो जीवन नहीं ...
    जीवन का साथ निभाना है तो ...
    कठोरता भी सहना ही पड़ती है ...
    सुख ही सुख की चाहत रखना ...
    दुःख से मुहं मोड़ लेना ...
    जीवन से भागना तो पलायन ही है ....!! ''

    बहुत सुंदर,भावनात्मक रचना......................

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  4. जीवन को दोनों स्तर पर जीना होता है - मन के स्तर पर भी और यथार्थ से रू-ब-रू होते हुए भी।

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  5. सुन्दर जीवन चित्र.

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  6. बूंदें नहीं खोतीं... ढलकती हैं तो संचित भी हो जाती है कहीं!
    सुन्दर रचना!

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  7. भय जीवन को तनिक स्थूल कर जाता है, भय से बचने के लिये कितना कुछ संजोने लगते हैं।

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  8. सुंदर प्रस्तुति

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  9. सुख ही सुख की चाहत रखना ...
    दुःख से मुहं मोड़ लेना ...
    अर्थात काँटों से ही फूलों की सुन्दरता है ''सुंदर अभिव्यक्ति...........

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  10. बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....

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  11. क्या लिखूं ? जीवन में प्रेमासक्ति को बनाये रखने में रोज यथार्थ के उबड़ खाबड़ धरातल से गुजरना पड़ता है . मन के भाव को सुन्दर शब्द मिले . आभार .

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  12. लगता है आप हमेशा ही दिल की गहराइयों से लिखती है... बहुत अच्छा लगा पढ़कर...

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  13. बहुत ही गहन भावो से जीवन की वास्विकता को दर्शाया है..बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति...अनुपमाजी..

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  14. shabdon ne aapke bhaavon ko bakhubi vyakt kiya hai... khubsurat kavita...

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  15. naa shithil hone kee aavashyaktaa
    naa hee virakt hone kee
    aavashyaktaa hai nirantar hans kar jeene kee
    jeevan mein chalte rahne kee

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  16. सिर्फ कोमलता ही तो जीवन नहीं ...
    जीवन का साथ निभाना है तो ...
    कठोरता भी सहना ही पड़ती है ...
    सुख ही सुख की चाहत रखना ...
    दुःख से मुहं मोड़ लेना ...
    जीवन से भागना तो पलायन ही है ....!! ''... गहरे सार जीवन के

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  17. फूलों और पत्तों-सी कोमल पंक्तियों वाली इस सुन्दर रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई...

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  18. अनमोल एहसास..
    यूँ स्वयं गिरकर .........
    और गिराकर तुम्हारी छवि मेरे नयनो से ...
    मुझे विरक्त ही न कर दें ...!

    अनुपम भाव लिए सुंदर रचना...अनुपमा जी बेहतरीन पोस्ट
    .
    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....

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  19. करती हूँ कोशिश ..
    बंद कर लूं नयन ...
    ढलकने न दूं उन्हें ...
    जीते हुए जीवन से मिले थे जो ...
    सहिष्णुता से ..सुन्दरता से ...
    ओस से कोमल एहसास तुमसे .. .......
    तुम ही तुम ....
    तुम्हारे ही रूप ,लावण्य से परिपूर्ण ...!!

    वाह! जी वाह! बहुत ख़ूब

    उल्फ़त का असर देखेंगे!

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  20. जीवन का हर रंग अनमोल है क्योंकि सब कुछ उसी से आया है...बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता !

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  21. किन्तु ....अब ...धैर्य की परीक्षा देते देते .....
    शिथिल हो रही हूँ .....
    मांगती हूँ थोड़ा और धैर्य ...
    प्रभु से ......
    कि ये आसक्ति ...
    बनी रहे जीवन से ....

    मन की शिथिलता को कहती पंक्तियाँ जहां अभी भी सकारात्मक सोच बाकी है

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  22. यूँ स्वयं गिरकर .........
    और गिराकर तुम्हारी छवि मेरे नयनो से ...
    मुझे विरक्त ही न कर दें ...!

    लगाव की सुंदर अभिव्यक्ति....
    शुभकामनायें

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  23. सुख और दुःख जीवन चक्र की परिधि हैं तो धैर्य उस चक्र की धुरी!! आपने इस कविता में बहुत ही सुंदरता से सबों को पिरोया है!!

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  24. सच में एकदम कोमल सी कविता है!!बहुत सुन्दर!!

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  25. 'सिर्फ कोमलता ही तो जीवन नहीं ...
    जीवन का साथ निभाना है तो ...
    कठोरता भी सहना ही पड़ती है ...
    सुख ही सुख की चाहत रखना ...
    दुःख से मुहं मोड़ लेना ...
    जीवन से भागना तो पलायन ही है ....!! ''

    वाह कितनी खूबसूरत रचना, जितनी स्वयं आप एवं आप का व्यक्तित्व । कुछ भी हो जीवन की कठोरता पर मन की कोमलता हमें तप्त जीवन मरुस्थल में सदैव शाद्वल की शीतल छाया व प्यास हेतु तृप्ति प्रदान करती रहती है ।

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  26. ''सिर्फ कोमलता ही तो जीवन नहीं ...
    जीवन का साथ निभाना है तो ...
    कठोरता भी सहना ही पड़ती है ...

    बिलकुल सच कहा है आपने ! लेकिन जीवन को इसकी सम्पूर्णता के साथ स्वीकार करना ही सच्ची आस्था है सच्ची भक्ति है और यदि ऐसा करना है तो कोमल और कठोर दोनों का ही वरण करना होगा ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई आपको !

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  27. दुःख से मुहं मोड़ लेना ...
    जीवन से भागना तो पलायन ही है .... कितनी सुन्दर बात...

    ये बूँदें सहेजूँ कैसे ...?
    कहीं ढलक कर ...
    मेरे नयनो से ..
    ये ओस से ..पावस ..गहरे ...अमिय ..
    अनमोल एहसास.... ! बहुत खूबसूरती से पिरोये हुए एहसासात.... वाह!
    बहुत ही सुंदर रचना....
    शबनम की ये शीतल बूंदें, सीचेंगी जब दिल की क्यारी
    यादों की कोमल दूबों से, राहें होंगी प्यारी – न्यारी।


    सादर.

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  28. सुंदर भावों की प्यारी अभिव्यक्ति।

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  29. ''सिर्फ कोमलता ही तो जीवन नहीं ...
    जीवन का साथ निभाना है तो ...
    कठोरता भी सहना ही पड़ती है ...
    sundar bhaav purna rachna..bar bar padhne ka man karta hai...bahut bahut badhai sweekar karen

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  30. क्या कहने
    बहुत सुंदर


    बुद्धि ,विवेक जब साथ देता है मेरा ...
    यकायक ..बुद्धि मुखर हो उठती है ...कहती है ...
    ''सिर्फ कोमलता ही तो जीवन नहीं ...
    जीवन का साथ निभाना है तो ...
    कठोरता भी सहना ही पड़ती है ...
    सुख ही सुख की चाहत रखना ...
    दुःख से मुहं मोड़ लेना ...
    जीवन से भागना तो पलायन ही है ....!! ''

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  31. मेरे नयनो से ..
    ये ओस से ..पावस ..गहरे ...अमिय ..
    अनमोल एहसास..
    यूँ स्वयं गिरकर .........
    और गिराकर तुम्हारी छवि मेरे नयनो से ...
    मुझे विरक्त ही न कर दें ...!
    अति सुन्दर , कृपया इसका अवलोकन करें vijay9: आधे अधूरे सच के साथ .....

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  32. ''सिर्फ कोमलता ही तो जीवन नहीं ...
    जीवन का साथ निभाना है तो ...
    कठोरता भी सहना ही पड़ती है ...
    सुख ही सुख की चाहत रखना ...
    दुःख से मुहं मोड़ लेना ...
    जीवन से भागना तो पलायन ही है ....!! ''...बहुत सुन्दर भाव

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  33. कि ये आसक्ति ...
    बनी रहे जीवन से .....!!

    आस्था और श्रद्धा भरे जीवन में आसक्ति भी वैराग्य से बढ़कर है!
    मन को तृप्ति देती रचना...
    सादर

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  34. ये सच है की जीवन से भागना सच्चाई का सामना न करना पलायन ही है ... पर ये भी डर तो रहता है की कठोर पथ में कहें कुछ विस्मृत न हो जाये ...
    गहरे भाव ...

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  35. मन चाहता है ...जीवन जीते हुए जीवन .. आपसी रिश्तों में प्रेम बना रहे ...
    नकात्मकता से स्वयं हम अपनी नज़रों से गिरते हैं और बहुत जल्दी अपने प्रिय जनो के विषय में भी नकारात्मक भाव लाते हैं ....
    आपने कविता के भाव पसंद किये ....बहुत बहुत आभार ...

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  36. बहुत खूबसूरत भाव ..

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!