10 June, 2012

मेघ घटाएं छाई गगन में .......!!

ग्रीष्म की भीषण तपन से ,
भले ही जलता रहा जिया ...!
हे भुवन पति ...
जब तुमने ही दी,
ग्रीष्म की झुलसाती पीड़ा....
धरा हूँ ...धरित्री बन मैंने धैर्य धारण किया ...!


मेघ घटाएं छाई गगन में ...
घनश्याम ....
श्याम घन सी ....
घन घन घोर घटा सी ... ..
मेरे मन की पीड़ा ....
अबोली निर्झर सी ...
अंसुअन की लीला ....
तुम कैसे समझे ....?

घिर घिर कर चहुँ ओर ....
छा गए घनघोर ....
देखती हूँ आकाश जब ..
दिखती है ..
स्मित आकृति तुम्हारी ..
जैसे कहती हो ..  मुझसे .....
''मैंने भर  दी  है ...
तुमसे लेकर ....
इन घने  मेघों  में  ...
तुम्हारी सघन   पीड़ा ......
भेजा है अपने मन मयूर को तुम तक ....
लिखकर पाती ..जीवन के रंगों की ...
भरकर उसके पंखों में .....
.तुम्हीं से  तो जीवन के रंग हैं .
ढूंढ लोगी न मुझे ...?''

आहा .... ...
मिल गया तुम्हारा संदेसा ...
बरस रहे हो तुम ....
भीग रही हूँ मैं ....
मोर की पियु पियु  ..
आह्लादित है चंचल मन ...
ये मयूर का नृत्य देख .....
झूम उठा है ....
भीगे मौसम सा भीगा-भीगा ...
चहकता ...खिलखिलाता  बावरा  मन  ....!!!!


 ग्रीष्म हो या हो वर्षा ...
झुलसती या भीगती ...
कण कण में व्याप्त तुम्हारी ही आभा है ...
रोम रोम में समाये हुए हो तुम ......!!

52 comments:

  1. घट घट हमरे ईश्वर व्यापा..

    ReplyDelete
  2. वाह: अनुपमा जी मौसम का अति सुखद वर्णन ,मौसम कोई भी हो हर कण मे ईश्वर का ही आभास मिलता है.कण कण में ईश्वर व्याप्त है... बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  3. बहुत बहुत सुन्दर....
    कण कण में भगवान..............
    हम में और तुम में भी!!!!!
    वाह!!!

    ReplyDelete
  4. धरा हूँ ...धरित्री बन मैंने धैर्य धारण किया ...!
    वर्षा की रिमझिम बूंदों सी बहुत सुन्दर रचना ....

    ReplyDelete
  5. ग्रीष्म फिर मेघ , फिर रंग ... तुम्हीं सबमें तभी सब है स्वीकार

    ReplyDelete
  6. सुन्दर ऋतू वर्णन और उससे भी खुबसूरत भावों का संयोजन चित्रों के संग इसकी छटा निराली

    ग्रीष्म हो या हो वर्षा ...
    झुलसती या भीगती ...
    कण कण में व्याप्त तुम्हारी ही आभा है ...
    रोम रोम में समाये हुए हो तुम ......!!
    ........

    ReplyDelete
  7. भिगोती हुई बेहतरीन कविता


    सादर

    ReplyDelete
  8. ग्रीष्म हो या हो वर्षा ...
    झुलसती या भीगती ...
    कण कण में व्याप्त तुम्हारी ही आभा है ...
    रोम रोम में समाये हुए हो तुम ......!!

    बहुत सुन्दर रचना ...........धन्यवाद

    ReplyDelete
  9. बहुत ही भावपूर्ण रचना |
    आशा

    ReplyDelete
  10. दार्शनिक दृष्टि की रचना

    ReplyDelete
  11. श्याम के रंग में रंगी...
    बावरे मन की कथा...
    पावन अति सुंदर !!

    ReplyDelete
  12. बहुत सुंदर रचना,
    क्या कहने

    ReplyDelete
  13. प्रभु ने सुन ली पुकार
    पीड़ा दूर करने को
    झमाझम बरसाई फुहार
    दुःख के बाद सुख
    यूँ ही लाता है बहार ....

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  14. ग्रीष्म हो या हो वर्षा ...
    झुलसती या भीगती ...
    कण कण में व्याप्त तुम्हारी ही आभा है ...
    रोम रोम में समाये हुए हो तुम ......!!
    स्नेह में भीगी हुई बहुत सुन्दर रचना....

    ReplyDelete
  15. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति अनुपमा जी - याद आयी अपनी ग़ज़ल की ये पंक्तियाँ -

    बहुत दिनों के बाद सुहानी रात हुई
    दिन गर्मी के ख़तम हुए बरसात हुई
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

    ReplyDelete
  16. कविता की शुरूआती पंक्तियों में "भुवन पति" से जो शिकायत थी अंतिम पंक्तियाँ आते-आते दूर हो गयी।........ लगता है मानसून कहीं आस पास है।...........
    कविता के माध्यम से मानसून की आस जगाने के लिए आभार !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी हाँ सुबीर जी आपने ठीक पहचाना ...यहाँ मुम्बई में वर्षा पधार चुकीं हैं ...

      Delete
  17. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    ठण्डक का आभास हमें भी हो रहा है!

    ReplyDelete
  18. तपित गर्मी में वर्षा की पहली फुहार ...सुहानी लागे रे

    ReplyDelete
  19. झूम उठा है ....
    भीगे मौसम सा भीगा-भीगा ...
    चहकता ...खिलखिलाता बांवरा मन ....!!!!बहुत सुन्दर रचना . .कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    रविवार, 10 जून 2012
    टूटने की कगार पर पहुँच रहें हैं पृथ्वी के पर्यावरण औ र पारि तंत्र प्रणालियाँ Environment is at tipping point , warns UN report/TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,NEW DELHI,JUNE 8 ,2012,१९
    http://veerubhai1947.blogspot

    ReplyDelete
  20. ग्रीष्म हो या हो वर्षा ...
    झुलसती या भीगती ...
    कण कण में व्याप्त तुम्हारी ही आभा है ...
    रोम रोम में समाये हुए हो तुम ......!!

    Sach Kaha, Bahut Sunder Abhivykti

    ReplyDelete
  21. आहा ...!!!! इस झुलसन से निजात मिल गयी आपकी रचना पढ़कर .....तर बतर हो गया ...तन...मन

    ReplyDelete
  22. क्या बात है!!
    आपके इस सुन्दर प्रविष्टि का लिंक दिनांक 11-06-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगा। सादर सूचनार्थ

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार ग़ाफ़िल जी मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान दिया ...!!

      Delete
  23. ग्रीष्म हो या हो वर्षा ...
    झुलसती या भीगती ...
    कण कण में व्याप्त तुम्हारी ही आभा है ...
    रोम रोम में समाये हुए हो तुम ......!!

    A nice Philosophical expression. It have something to think again and again. Thanks for such nice post.

    ReplyDelete
  24. सुन्दर ऋतू वर्णन , खुबसूरत भावों का संयोजन चित्रों के संग निराली छटा......

    ReplyDelete
  25. आपकी इस 'सुकृति' ने अन्तःमन को रस से सराबोर कर दिया.

    ReplyDelete
  26. बारिश के इस रोमांचकारी मौसम में भी पीड़ा प्रमुखता से उभर पायी है इसीलिए इस कविता ने मेरे मन में भी टीस जगा दी और फिर इस कविता में भींगकर मैं अपनी टीस पर काबू पाया.

    ReplyDelete
  27. bahut hi khoobsurat kavita anupama ji.... :)

    ReplyDelete
  28. श्याम रंग मे भीगी सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  29. ahaa....barish me maza gaya :-)

    ReplyDelete
  30. शीतल करती रिमझिम सी रचना....
    सादर बधाई...

    ReplyDelete
  31. आपके सुर ताल और बादलों की गर्जन तर्जन की युगलबंदी अद्भुत रही , मन मुदित हुआ .

    ReplyDelete
  32. varsha ke aane se pahle hi kavita ko varsha may kar diya aapne.. bahut khub... garjana bhi sunai dene lagi:)

    ReplyDelete
  33. मौसम के विभिन्न रंगो को सुख दुख एवं ईश्वर से जुड़े होने के अनुपम भाव को बहुत ही खूबसूरती से संजोया है आपने, बहुत ही बढ़िया लिखा है अनुपमा जी आभार सहित शुभकामनायें....

    ReplyDelete
  34. वर्षा ऋतु का आगाज बहुत सुंदर कविता के साथ. जरुर यह मानसून खुशियों की सौगात लेकर आये.

    ReplyDelete
  35. ''मैंने भर दी है ...
    तुमसे लेकर ....
    इन घने मेघों में ...
    तुम्हारी सघन पीड़ा ......
    भेजा है अपने मन मयूर को तुम तक ....
    लिखकर पाती ..जीवन के रंगों की ...
    भरकर उसके पंखों में .....
    .तुम्हीं से तो जीवन के रंग हैं ..


    gahri anubhuti ke sath prabhavshali rachana ....Anupama ji badhai swikaren .

    ReplyDelete
  36. बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है

    ReplyDelete
  37. भावमय करते शब्‍दों का संगम है इस अभिव्‍यक्ति में ... अनुपम प्रस्‍तुति।

    ReplyDelete
  38. आनुप्रासिक छटा देखते ही बनती है इन पंक्तियों में .

    ReplyDelete
  39. बहुत कोमल एवं पुलकित करती रचना है अनुपमा जी ! लगता है प्रभु का दिव्य संदेसा प्रकृति की इन अनुपम छटाओं में बस मिला ही चाहता है ! बहुत ही सुन्दर एवं भिगोती सी रचना !

    ReplyDelete
  40. प्रकृति मौसम और मन को एक कर देती है. सुंदर रचना.

    ReplyDelete
  41. बहुत सुन्दर !

    ReplyDelete
  42. इस कविता में कवयित्री की विधाता से शिकायत और फिर उसका प्रकृति के विभिन्न उपादनों में निरूपन मन की भावना का उमड़ता-घुमड़ता भाव और उसका पानी बनकर बहना सब को आपने एकाकार कर दिया है। यह एकाकार कहीं न कहीं अध्यात्म के उस एकाकार को इंगित करता है, जो जीव कि ब्रह्म से मिलाता है।

    जो चित्र लगाया है वह सहज ही आकर्षित करता है।

    ReplyDelete
  43. मीठी सी ... भीनी सी ... फुहार लिए .... मन मोहती रचना है ...
    बहुत लाजवाब ...

    ReplyDelete
  44. वाह ...
    निर्मल रचना ...

    ReplyDelete
  45. Wah-Wah
    prakriti ki anupam komalta v soundaryta ko kitne gahan sahbdo me praetut kiya hai aapne aur anurodh prkriti se----lajvaab
    bahut -bahut badhai
    poonam

    ReplyDelete
  46. आप सभी का बहुत आभार ...

    ReplyDelete
  47. मन मुदित-मुदित हुआ जाए जब सुन्दर कृति पढने को मिल जाए.. अति सुन्दर लिखा है..

    ReplyDelete
  48. आपकी हर अभिव्यक्ति सुन्दर लाजबाब होती है.
    क्यों न हो
    अनुपम हृदय का कमाल है यह सब.

    ReplyDelete

नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!