11 July, 2012

मचल रही बूंदरी ...!!!!!!


सना नना...
सना नना सायँ सायँ   ....
पुरवा  करत अठखेली  ...
 उड़ाए ले रही सर से चूनरी ...!!

चम-चम चमक चमक.....
चमके ......मन कामिनी...
दम-दम दमक दमक ....
दमके   दुति दामिनी ....
री सखी ...रूम-झूम ...
लूम-झूम ..झूम-झूम ..
घन घन बरस रही बूंदरी ...!!

झम-झम ...झमाझम .....
मूसलादार  पड़ रही वृष्टी...
भीग रही  ....तर बतर अतर  ... समग्र सृष्टी..
सखियाँ खिल-खिल भींजत जायें....!!
हंस-हंस घूम-घूम फुगड़ी खेलें....
पटली जड़ाऊ नगदार ...
पहने इठलायें...!!
हाय सखी ऐसे मे....
श्याम  मोसे रूठ रूठ  जाएँ ...!!
अमुवा झूरा ना झुरायें...
सखी कैसे करूँ मनुहार ....??
काह करूँ..कित जाऊँ..??
मन बतियाँ कह नाहिं पाऊँ ....
बोलन बिन चैन नाहिं पाऊँ .......!!
कैसे मनाऊँ ....??

आली ....घन घन घना घन..
 श्याम  घन  बरस रही बूंदरी .....
जियरा मोरा भिगोय रही ...
चंचल श्याम सी ...
मन अभिराम सी ...
हाय री नादान ....
कैसी मचल रही बूंदरी ...!!!!!!

33 comments:

  1. बहुत सुन्दर अनुपमा जी....
    आपकी बूंदा बांदी ने भावविभोर का दिया...

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  2. सावन की मचलती बूंदों के शब्द चित्र सी कविता !

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  3. बहुत अच्छा वर्णन बरखा रानी का ....

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  4. चंचल श्याम सी ...
    मन अभिराम सी ...
    हाय री नादान ....
    कैसी मचल रही बूंदरी ...!!!!!!

    मन हर्षाती सुंदर रचना

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  5. आली ....घन घन घना घन..
    श्याम घन बरस रही बूंदरी .....
    जियरा मोरा भिगोय रही ...
    चंचल श्याम सी ...
    मन अभिराम सी ...
    हाय री नादान ....
    कैसी मचल रही बूंदरी ...!!!!!!


    बहुत सुंदर ..... संगीत मयी ध्वानि से गुंजरित सुंदर दृश्य उपस्थित कर दिया है ...

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  6. आली ....घन घन घना घन..
    श्याम घन बरस रही बूंदरी .....
    जियरा मोरा भिगोय रही ...
    चंचल श्याम सी ...
    मन अभिराम सी ...
    हाय री नादान ....
    कैसी मचल रही बूंदरी ...!!!!!!
    वाह ... वाह मचलती बूंदों का सजीव चित्रण अत्‍यन्‍त मनमोहक प्रस्‍तुति ।

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  7. वाह: मंद मंद मन को लुभाए बूँदरी..आली री कितना सुन्दर शब्द संजोया..निशब्द भए हम तो सखी मोरी..

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  8. बहुत सुंदर
    एक लाइन याद आ रही है


    मंदिर के हिरिक हिरिक
    नाचत हैं थिरिक थिरिक
    गंगाजल छिरिक छिरिक
    दर्शन कू जात हैं...

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  9. सावन मय संगीत मय कविता ... बहुत सुन्दर कविता...

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  10. आली ....घन घन घना घन..
    श्याम घन बरस रही बूंदरी .....
    जियरा मोरा भिगोय रही ...
    चंचल श्याम सी ...
    मन अभिराम सी ...
    हाय री नादान ....
    कैसी मचल रही बूंदरी ...!!!!!!.... राग स्पंदित हो उठते हैं इन बोलों में

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  11. इस पोस्ट कों पढते पढते तेज मूसलाधार बारिश का एहसास गूंजने लगा है ... संगीत में तो एहसास जुड़े होते अं ... रचना में भी ये एहसास जुड जाते हैं अगर भाव जबरदस्त हों ...
    बहुत खूब ...

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  12. अनुपमा जी, बरखा के आगमन पर थिरकना और गाना एक स्वाभाविक कृत्य है...उतना ही स्वाभाविक है आपकी कलम से बरखा गीत उपजना..बहुत सुंदर !

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  13. ला ला ला ला अ अ अ ....बस ऐसे ही गुनगुनाने को दिल किया :)

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  14. बहुत सुंदर, झमाझम बारिश में हम भी भीग गए....

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  15. गुनगुनाती बारिश सी रचना |

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  16. मन बतियाँ कह नाहिं पाऊँ ....
    बोलन बिन चैन नाहिं पाऊँ .......!!
    बड़ा ग़जब का मौसम है यह। मिलन का भी, विरह का भी, मौन का भी संवाद का भी। नमी और हरियाली के संगम से जो मन में होलेरें उठती हैं, उसका सुंदर चित्रण किया है आपने।
    मुझे भी अपनी एक रचना याद आ गई, विचार पर कल लाता हूं।

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  17. बरसात की बूंदों की तरह आपकी कविता भी कर्णप्रिय सरगम छेडती है . धरा की प्यास बुझाने को आतुर , परोपकार की भावना लिए बूंदों का अविरल नृत्य . आपकी लेखनी ने साकार कर दिया है . अनिवर्चनीय आनंद प्रद रचना .

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  18. बहुत सुन्दर रचना है सावन की रिमझिम फुहार सी ! तन मन दोनों को ही सराबोर कर गयी !
    हर शब्द मन में संगीत की मधुर तान सा ध्वनित प्रतिध्वनित हो रहा है ! बहुत सुन्दर !

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  19. अच्छी लगी यह वर्षा ध्वनि भी।

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  20. सावन की रिमझिम फुहार में सराबोर बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,

    RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...

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  21. सावन के मौसम में सरसता समेटे सुन्दर गीत

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  22. sawan ke bund bund si shabdon ko tapkati rachna ....sundar..

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  23. बहुत ही सुंदर रचना ....

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  24. शब्दों से सावन की छटा बिखेरता मनोरम सावन गीत...

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  25. खूबसूरत अभिव्यक्ति ....रिमझिम फुहार की

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  26. आपकी रचना ने पावों में थिरकन पैदा कर दी ....उम्दा....!!!!

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  27. अद्भुत ध्वन्यान्कन...
    शब्द शब्द बज रहे हैं।
    गीत में वे सज रहे हैं।
    सादर।

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  28. गज़ब का स्वागत गीत ...

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  29. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है
    जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग
    बागेश्री भी झलकता है.
    ..

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
    .. वेद जी को अपने संगीत
    कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती
    है...
    Feel free to surf my web blog ... संगीत

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!