24 March, 2011

ढलता सूरज ............!!

हर एक सांझ -
बीतती चली 
जाती है -
तुम बिन ऐसे -
डूब रहा है सूरज -
मन की असंख्य रश्मियों को -
समेटे हुए जैसे ...!!

  
        
        ऐसी निर्विकार नीरवता में -
              स्वयं से करती हूँ जब संवाद -
                  लेती हूँ तुम्हारे बिन जीवन का 
                        रीता रीता सा स्वाद ...!!

डूबते हुए सूरज के साथ -
क्षीर्ण होतीं 
विकीर्ण आशाएं -
निराशाओं में -
विलीन होती चली -
जाती हैं-
डूब ही जातीं हैं  ...!!

    सूनी सी पगडण्डी 
     क्यों खींच लाती  है
      इस झील तक-
       धूल की गर्द -
         व्यर्थ ही-
           जम जाती है 
             पैरों तक .....!!

शांत सा घर -
वापस तो बुलाता है -
फिर भी -
अन्धकार गहराता है -
नागिन सी काली रात -
डरपाती  है -
राग दरबारी या मालकौंस -
रह रह कर याद आती है ...!!

जानती हूँ-
मुझ से पहले ही  -
आस का पंछी-
जाग जायेगा कल -
भोर भये कागा  -
तुम्हरे  आवन का -
मन भावन का -
संदेसा लाएगा कल ..........................................................................................!!

15 March, 2011

भविष्य की ओर.....!!!!

अतीत प्रतीत होता है -
प्रतिपल मेरी  प्रत्येक 
कृति में  मुझे -
परिमार्जित-
परिलक्षित- 
करता हुआ -
मेरी सोच-
मेरा आचरण -
निबद्ध है सदा ही -
मेरे वर्तमान से -
उंगली पकड़कर -
साथ -साथ चलता है -
प्रतिपल प्रतिफल उसका -
अब परिभाषित करता हुआ -
मुझे ....!!
निमृत होतीं हैं -
नवल दिशाएँ -
प्रबल आशाएं-
भविष्य की ..........!!
कृति से सुकृति -
दर्शन से सुदर्शन की ओर-
अतीत वर्तमान को थामे -
अब बढ़ रहा है भविष्य की ओर ........!!!!! 


अनुपमा त्रिपाठी
''सुकृति "

10 March, 2011

फागुन की दस्तक ......!!

बंद नयनों से भी -
दृष्टिगोचर होता है अब ...!!
बिना आहट के भी -
श्रुतिपूर्ण है सब ..!!

अनाहत नाद सा या -
भीतर चिर शोभायमान -
ज्योति पुंज सा ..!!
उदीप्त...!!
और प्रमुदित..!
कौमुदी कौस्तुभी लिए ..!!
सहर्ष -
सहृदयता ,सहिष्णुता से 
पल्लवित... सुरभित.......
मधुर स्वरों से-
ओत-प्रोत ....!!
कहरवा सा बजाता हुआ -
रंग उड़ाता हुआ.........
झूमता गाता नाचता -
आ गया फागुन -
छा गया फागुन..........! 

अब फागुनमय 
हुई है सृष्टि -
रंग -बिरंगे
फूलों से लदी,
रंगी -
तन -मन 
सराबोर करती हुई -
पलाश का 
केसरिया रंग संग -
मन उमंग देता हुआ -
शबनमी एहसास सा-
अंतस भिगोता हुआ -
 रंगों में भीगा  हुआ -
आ गया फागुन -
छा गया फागुन ...!!


होली ने दे दी है दस्तक -
भर दिए हैं अनेकों रंग 
प्रकृति की छटा में -
डूब गया है -
श्याममय मन 
सुध-बुध बिसराए -
फागुन  के  गीत  गाए -
श्याम संग खेलूं होरी ..!!
बरजोरी ...करजोरी ...!!
अबकी होली--
 मैं श्याम की हो ..ली .. ....!!!
मैं पिया की-
 हो ..ली ..!!!!!!
 प्रतीक्षा की इतिश्री 
 के बाद  अब ........
निर्गुण सगुन बन -
अब आ गया है फागुन ..!!
छा गया है फागुन ........!!!!!!!!
-

02 March, 2011

34-हम -तुम साथ जलें ,

मोम सा ह्रदय लिए ,
कुछ तुम जलो ,
कुछ मैं जलूँ,
अब  बुझ गए
सारे दिए .....

जगमगाती रोशनी
 के बीच --
कुंठा से-
घिर गया है मन - 
तुम साथ जलो मेरे ,
ये  तम-
कुछ तो हो कम .

वेदना बन जाए फिर 
संवेदना ...!!
सम्मिलित हो गान 
भी गाएं कोई -


तुम सदा हो-
सत्य का -
और ज्ञान का-
अद्भुत प्रकाश -
मैं तुम्हारी 
आस की वो लौ हूँ -
निसदिन टिमटिमाती .


मोम सा ह्रदय लिए -
कुछ तुम जलो 
कुछ मैं जलूं -
हाँ -  तुम्हारा साथ पाकर -
सज गए  मन के दिए ...........!!!!

",Thousands of candles can be lit from a single candle, and the life of the candle will not be shortened. Happiness never decreases by being shared. None of the Candle loses its Light while Lighting another Candle. So never stop sharing and helping others. Because its makes your Life more meaningful.""