27 December, 2012

कुछ कहूँ .....??

कह तो लूँ .....
पर कोयल की भांति कहने का ...
अपना ही सुख है ...

बह तो लूँ ......
पर नदिया की भांति बहने का .....
अपना ही सुख है ...


सह तो लूँ ....
पर सागर की भाँति सहने का ....
अपना ही सुख है ....

सुन तो लूँ ....
पर विहगों के कलरव  सुनने का ...
अपना ही सुख है ...

गुन  तो लूँ .....
पर मौन दिव्यता गुनने का ....
अपना ही सुख है ....



हँस तो लूँ ...
आँसू पी कर भी  हंसने का ....
अपना ही सुख है ....


जी तो लूँ .....
पर रम कर के जीने का ...
अपना ही सुख है ...


रम तो लूँ ...
हरि भक्ति में  रमने का ....
अपना ही सुख है ....


है न ...??



19 December, 2012

प्रस्तार कहाँ से लाऊँ ...

आज फिर चली जा रही हूँ ...
बढ़ी जा रही हूँ .....
आस से संत्रास तक .....
खिँची खिँची ...
नदिया किनारे ....
कुछ यक्ष प्रश्न लिए ...
डूबता हुआ सूरज देखने ....
पंछी लौटते हुए .. ...अपने नीड़....
मेरे हृदय  में भरी जाने क्या पीर ....
कहाँ है  मेरी आँखों में नीर ....??

जवाब नहीं देती ....
दग्ध ....
सुलक्षण बुद्धि भी ..
जैसे कुछ पल ....
आराम करना चाहती है .....!!

धीरे धीरे डूब गया है सूरज .....
भावनाओं का ......
गहन अंधकार से घिरी मैं ...
तम की शैया पर सोचूं ...
पलक कैसे झपकाऊँ ...?
दुस्तर   प्रस्तार कहाँ से लाऊँ ...?
गहन अंधकार को भेद ...
संत्रास कैसे मिटाऊँ ....??

जीवन ज्योति किस विध पाउँ ..?
धीर धरूं ...धैर्य कि माला जपूँ..
गहन आराधन समय बिताऊँ ...
जो होगा  प्रार्थना में दम ....
समय के साथ ...
मिट ही जायेगा .... ये तम.... !!
आस मैं मिटने नहीं दूँगी ....
संत्रास मैं रहने नहीं दूँगी .

होगी ही ...फिर होगी भोर ....
संस्कृति ...सभ्यता पर छाया घना कोहरा छंट जाएगा ...
विवेक    हृदय   द्वार  खटखटाएगा .....
यदा यदा ही धरमस्य ग्लानिर्भवति भारत .....
जन जन मानस मे कृष्ण बन ...
आएगा आयेगा पुनः ....
 सवेरा ज़रूर आयेगा .....!!

13 December, 2012

कल्पना सी साकार हो रही ...!!




स्निग्ध उज्जवल चन्द्र  ललाट  पर .....
विस्तृत  सुमुखी सयानी चन्द्रिका ....भुवन  पर ....



निखरी है स्निग्धता ..
बिखरी है   चन्द्रिका .........



पावस ऋतु  की मधु बेला ...

  बरस रहा है मधुरस ...
सरस हुआ   है मन ..
बादल की घनन घनन ...
झींगुर की झनन  झनन ..
जैसे लगे बाज रही ... ...
  किंकनी  की खनन खनन ..
मन करता  मनन  मनन...
धन्य हो रहा जीवन प्रतिक्षण..



चांदनी स्निग्ध स्वर्ग सी ...
विभा बिखेर  रही ..
डाल-डाल झूल रही  ...
 बेलरिया फूल रही....
पात पात झूम रही ....
झूम झूम लूम रही ....
 प्रीति  मन चहक रही ..
रात रानी महक रही ....


शीतल  समीर साँय  साँय डोले ..
धरा चाँदनी की चाँदी सी चमकती चंदरिया ओढ़े....
मन गुन गुन बोले .......
तन्द्रा तिर तिर जाए ........
 हाय...ऐसे में ..
कहीं निशा बीत न जाए ..

जीवन की जय करती ..
प्रकृति सजीव हो रही .
भर भर गागर ..
अद्भुत प्रेम उँडेल रही  ....

कल्पना सी साकार हो रही ...!!


 O Mother nature .. ....!!!
Can I see YOU with the eyes that I have ...?
Can I pray to YOU with the hands that I have ....?
Can I worship YOU with the mind that I have ...?
I know not much .....in fact nothing ....!!O GOD .....!!
Hold me and behold me as I tread THE PATH ...IN PURSUIT OF EXCELLENCE ...towards YOU ...THE OMNIPOTENT ...AND THE OMNIPRESENT ......!!!!!!



08 December, 2012

धार बनी नदिया की .......

नदी की यात्रा ....समुद्र की ओर .....आत्मा की यात्रा, परमात्मा की ओर ....इसी भाव से पढ़िये ....धार बनी नदिया की ......


छवि मन भावे ...
नयन   समावे ..
सूरतिया पिया की ...

बन बन .. ढूँढूँ ..
घन बन  बिचरूं .....
धार बनी नदिया की .......


कठिन पंथ ...
ऋतु  भी अलबेली ....
बिरहा मोहे सतावे ...

पीर घनेरी ...
जिया नहीं बस में ...
झर झर झर अकुलावे .....


 विपिन घने ,
मैं कित मुड़ जाऊँ ...
कौन जो राह सुझावे .....?

डगर चलत नित
 बढ़ती हूँ........
 निज वेग मोहे हुलसावे ...

अब..कौन गाँव  है ....
कौन देस है ..
कौन नगरिया  पिया की ....


बन बन .. ढूँढूँ ..
घन बन  बिचरूं ...
धार बनी नदिया की .......


धार बनी नदिया की ....!!

मैं इक पल रुक ना पाऊँ....
मैं  कल  कल बहती छल छल बहती .....
बहती बहती जाऊँ....!!!!!!

I know not much .....in fact nothing ....!!O GOD .....!!Hold me and behold me as I tread THE PATH ...IN PURSUIT OF EXCELLENCE ...towards YOU ...THE OMNIPOTENT ...AND THE OMNIPRESENT ......!!!!!!



03 December, 2012

बेला उषा की आई .....

बेला हेमंत उषा की आई .....!!
पनिहारिन मुस्काई  ...
ओस झरी प्रेम भरी ...
रस गागर भर भर लाई ....!!
चहुँ ओर जागृति छाई ....
बेला उषा की आई ...!!

सर पर गगरी ...
मग चलत ...डग भरत....
मुड़त -मुड़त  हेरत   जात ...
हिया चुराए ...पग डोलत जात ....
वसुंधरा भई नार नवेली ....
 हँसत-मुस्कात ....
राग *'भिन्न षडज' गात  चलत जात  ....
नित प्रात ......रसना ......
प्रेम सागर सों भर-भर गागर ...
कैसी नभ से जग  पर छलकाई ....!!

आनन स्मित आभ सरस छाई .......
......प्रेम धुन धूनी रमाई ...
...बेला उषा की आई ...!!

मोद मुदित जन जन .....
धरा खिली कण कण ....
आस मन जागी ...
ओस से भीगी ....
श्यामा सी छवि सुंदर ....
श्याम मन भाई ...
बेला उषा की आई ....!!!

**************************
भिन्न षडज -हेमंत ऋतु  में गाया जाने वाला राग है ..!!


28 November, 2012

मन की कोमल पंखुड़ी पर ....फिर बूँद बूँद ओस.....!!



सुषुप्ति छाई ....गहरी थी निद्रा ....
शीतस्वाप  जैसा  .. .. ....सीत  निद्रा में  था श्लथ मन ........!!
न स्वप्न कोई .....न कर्म कोई ...न पारितोष ......
अचल सा था .....मुस्कुराने  का भी चलन ....
तब ....शांत चित्त  ...
बस जागृत रही आस ......
है छुपा हुआ कहाँ प्रभास ....?
जपती थी  प्रभु नाम ....
गुनती थी गुन ...गहती थी तत्व ....और ...
टकटकी लगाए राह निहारती थी .......शरद की ....!!
हर साल की तरह ......कब आये शरद और  ...
हरसिंगार फिर झरे मेरी बगिया में ...बहार बनके ....



अब पुनः  ....शरद  आया है .....
अहा .....लद कर  छाया है .....
चंदा सूरज सा ....
श्वेत और नारंगी रंग लिए ...


हरसिंगार अबके ......!!!!
नवल ऋतु .....
नवल पुष्प ....
नित-नित झर-झर फूल झरें अक्षर के ....!!!!












आ ही गयी शरद की हल्की गुलाबी ....
शीतल हेमंत की बयार ......
मन किवाड़ खटकाती .....
दस्तक देती  बारम्बार  ...
देखो तो .....
बगिया  मे मेरे .....टप ...टप ...टपा टप .....
झरने लगा है हरसिंगार    ..........................
 और ......









अंबर  से वसुंधरा  पर ......
रिसने लगी है ...जमने लगी है .........
जैसे   मेरे मन की कोमल पंखुड़ी पर ..........
तुम्हारे अनुनेह सी अनमोल .........
पुनः ..... बूँद बूँद ओस.....!!

24 November, 2012

श्याम तोरी बांसुरी नेक बजाऊँ ....


प्रेम की राहें ..
जानी अनजानी सी ..
नेह बरसे ..


छाई बहार ...
फूली बेलरिया है ..
मनवा झूमें  ..

परछाईं सी  ...
तुम साथ चलो तो ..
जीवन खिले  ..


जीवन डोर ..
तुमसे बंध  गई ..
उड़ती फिरूं ..


घूँघट  पट
बैरी पवन खोले ....
जिया डराए ..




जाने न दूंगी ...
अपने पिया को मैं ...
उर  धरूंगी ..

आली छा गयो  ...
मोरे मन में श्याम ...
मन आनंद ..

नील निलय ..
प्रभु मन में  मेरे  ...
नीलकमल



जोगन बनी ...
अपने पिया की मैं ..
प्रेम दीवानी ...



श्यामा तोरी ...
बांस की बाँसुरिया ..
मन रिझाए ..


जीवन सूना ...
पिया के बिना मोरा ..
नींद न आये ,

बांवरी हुई ..
पिया मिलन ऋतु ..
मन सुहाई ..


सखी का करूँ  ...?
संदेसवा न आये ..
याद सताए ..

मनभावन ..
रस भरी  बतियाँ ..
मनवा भाईं ...

नन्द कुँवर ....
बोले मीठे बैन रे ...
जिया चुराये ....

जसोदा तोरा ..
लाल माखन चुराए ..
रार मचाये  ..


मन लगाऊँ ..
श्याम तोरी बांसुरी
        नेक बजाऊँ .......??

12 November, 2012

घर आ गए लक्ष्मण राम ....पुरी में आनंद भयो .......


यह भजन मेरी दादी का प्रिय भजन है ......हम सब इसे ढोलक पर बड़े ही शौक से गाया करते थे !शास्त्रीय संगीत के स्पर्श से इसकी काया ही बदल गयी ....जब भी इसे भाव विभोर हो गाती हूँ .....आँखों मे दादी के चेहरे का हर्ष ....साफ दिखता है ....आज भी ......

और मेरा हर्ष बस इतना ही कि उन भजनों को दादी के बाद भी मैंने मिटने नहीं दिया .......

दीपोत्सव की आप सभी को सपरिवार हार्दिक मंगलकामनाएं ..........



मन दीप जले ....
घोर तम हटे .........
एक मुस्कान फिर खिले .........
यही प्रभु से प्रार्थना है ..............


10 October, 2012

कविता सी गुन गुन गाये ......!!

मंगल दिन .....
उज्ज्वल मन कहे ....
अनुभास सो प्रकाश छायो.......

मन रमायो.......
अनुराग है  छायो......
ले  हरी नाम ......
मन मनन गुनन की बेला ....

काहे निकला अकेला ....?




हरी मूरत जिस मन मे ...
मन कहाँ अकेला ......??
मन पंछी बन गाये ......
मन सरिता बन बह जाये .....
मन फूल बने  खिल जाये ............
मन सूरज सा ...मन रश्मि सा ....मन तारों  सा ....मन चन्दा सा .....
झर झर झरते उस अमृत सा ....!!!!!

मन मे तरंग  जब  जागे .......
कुछ स्पंदन जो  दे जाये .....
मन झूम झूम रम जाये ....
उर सरोज सा दिखलाए ......!!
कविता सी गुन गुन  गाये ......!!
कविता सी गुन गुन गाये .....!!

06 October, 2012

श्यामल यवनिका उठ चली ..

श्यामल यवनिका उठ चली ..




 


 प्राची पट खोल रही  ...

श्यामल यवनिका उठ चली ..
 जागी उषा की स्वर्णिम लाली ...
नभ नवल नील मस्तक सजाती ....  ....
 मुस्काती .. आशा की लाली ...!!
छलकाती नवरस की प्याली .....!!



कुछ अनहद नाद सी श्रुति ....
अमर भावना सी लगी ...
अद्भुत भोर हुई ...!!




मंगलाचरण  गाते विहग ....
दूर क्षितिज पर  ....
रेखा सी कतार कहीं ...
कहीं भरते छोटी सी उड़ान ...!!
सभी का  स्मित विहान.......!!
नील नवल वितान ...
खिल रहा आसमान ....!!
छा जाती मन पर......वो आकृति ...
जो देती नहीं दिखाई ....पर देती है सुनाई ...




ॐ सा ओंकार सुनाते ....

मंगलाचरण गाते विहगों की ....
अनहद नाद सी मन दस्तक देने आई ....
आई ...मन भाई ......
नभ मुख मण्डल..
अरुणिमा  छाई ...
 ....अब ले अंगड़ाई ...
पुनि भोर भई  ....!!  ...
अद्भुत भोर भई ....



02 October, 2012

टिमटिमाता हुआ ... एक दिया ..

जीवन की काल कोठरी में  ....
मन की काल कोठारी में ....
कुछ प्रकाश तो था ...
क्षीण   होती आशाओं में ....
फिर भी विकीर्ण होता हुआ ..
कुछ उजास तो था ...!!

उठता है सतत ...
जो धुंआ इस लौ से ..
स्वयं की भीती से-
स्वयं ही लड़ता....
प्रज्ज्वल ..कांतिमय ..
भय से निर्भीक होता हुआ..
भोर के विश्वास का प्रभास देता हुआ .....
शंका का विनाश करता हुआ ..
सत्य की टिमटिमाती सी लौ ....
प्रकाश पुंज अविनाशी ....!!

उच्छ्वास  को उल्लास में बदलता हुआ ...

नित नवल नूतन विभास
 प्रस्फुटित करता  हुआ ..
टिमटिमाता था ..
स्वयं जलकर भी ...
प्रकाश ही देता था ..
छोटी सी लौ ...आरत ह्रदय .. .....
जलता हुआ ..टिमटिमाता हुआ ...एक दिया ..




एक विश्वास है मन में .......आस्था है ....बापू ....इस  नव भारत में ,इस भारती में  .....कुछ सत्य  अभी बाकी है ..........!!!!!!!!!और उसी पर अडिग अविचल अपनी सभ्यता संस्कृति से जुड़े रहकर ही हम कर रहे हैं नव भारत का निर्माण ....!!!!!!!
जय हिन्द ।




आइये बापू को ,शास्त्री जी को श्रद्धापूर्वक नमन करते हुए ये गीत सुनते हैं .......................................


27 September, 2012

बस तुम ....

                                                                     
मन पर धूप सा रूप ...
छाया सा छाया हुआ ...
सूक्ष्म से विराट तक ...
आदि से अंत तक ...
अनादि से अनंत तक .....
प्रात  से रात तक ..
रात से प्रात तक ...
ओर से छोर तक  .....
धूप से छांव तक ...
छांव से धूप तक ...
गाँव से शहर तक .....
शहर से गाँव तक ...
वही घने वृक्ष  की छाँव सा  ....
एक ठौर ....एक ठिकाना ...
परछाईं सा जो सदा साथ चले ....
साथ साथ उड़े भी ...
हर लम्हा ...हर घड़ी ...हर पल .....
मन के उजाले में ....
मन के अंधेरे में भी ...
जो रक्षा करे ....
बस तुम ....

24 September, 2012

रचना मेरी ,.... ..(हाइकु )



रचना मेरी ,
मनभावन बने ..
वरदान दो ..

रचना मेरी , मनभावन बने .. वरदान दो ..

पवन बहे  ...
जियरा भरमाये ..
मनवा गाये ..



प्रेम   ऐसा  हो ...
जीवन रंग भरे ..
 चढ़ता जाए ..


रंग ऐसे हों ..

खिले हुए सुमन ..
रंगें जीवन ....



दुःख दे गया ..

बैरी पवन झोंखा ..
लट उलझी ...


बहती हवा ..
उलझा गयी लटें ...
जियरा डोले ..

बरस रही ...
सरस  बदरिया .. ..
स्मृतियाँ लिए .. .....


समय संग ...
मन  बहता जाए ..
सहता जाए .. ..

तुम न आये ....
याद अब न जाए ...
किससे  कहूँ  ...?


बैरी मनवा ,
बात न माने मोरी ....
रैन जगाये ...
काहे  बिदेस ..
गए  हो रसिया ..
मन बसिया ..

मन बतियाँ ,
कासे कहूं  आली री...
पिया निर्मोही ...

नैना निहारें  ..

सूनी भई  डगर ...
पिया ना आये ...

निर्मोही संग ,
काहे  नेहा लगाये  .....
क्यों  पछताए ..??

21 September, 2012

लड़ी...बूंदो की ...

लड़ी...बूंदो की ...
झड़ी ..सावन की ...
घड़ी  ....बिरहा की ... 
बात ..मनभावन की ...
रात ...सुधि आवन की .....
सौगात ......... नीर  बहावन की ......!!

17 September, 2012

हृदय के रूप .......(हाइकू)

1-
हृदय  वही  
पिघले मोम जैसा,
पाषाण नहीं । 

2-
मोम-सा मन
आंच मिली ज़रा सी ..
पिघल गया  ।
3-
प्रवाह लिये  
सरिता- सा  हृदय
बहता गया  ।
4-
छाई बादरी 
बरसती  बूंदरी ....
नाचे  मयूर .. ..

5-
मेघ -घटाएँ.
छाई उर -अम्बर
भाव बरसें ।

6-
घटा सावन ,
भिगोये तन मन ..
प्रेम बरसे 

7-
मन मीन क्यों 
आकुल रहती है
लिये पिपासा...?

8-
मेरा हृदय
आस की डोर बँधा.
पतंग बना ।


15 September, 2012

रक्तिम गुड़हल .....!!

हमारी संस्कृति का प्रतीक ....शक्ति की पूजा में जिसका बहुत प्रयोग होता है ...!!
उस रक्तिम गुड़हल पर मेरी रचना ...
जीवन पथ  ...
मग सर्प डगर पर ...
ऋतु  का पुनरावर्तन ...
पुनि भोर की आहट हुई ...
श्लथ पथ पर  जागी किसलय अनुभूति ..

नव पर्ण पल्लवित हुए ...
सुपर्ण आये ..
पुष्पित आभ लाये ..
सुविकसित हरीतिमा सुलभा छाई ..

हरित भरित धरा हुई ...
बीता रीता क्षण ...
पुनि पुनि ध्याऊँ ..
गाऊँ स्वस्ति  स्मरण ...
शुभ शकुन  वरन ...
भयो तमस  स्कंदन ..
मन सरिता में स्पंदन ...
अरुणिमा लालिमा लाई ...
माँ स्मृति मन मुस्काई ...
देख देख हुलासाऊँ रक्तिम गुड़हल ...!!

माँ शक्ति द्वार तुझे चढ़ाऊँ ...
मन  मगन  स्वस्ति  गाऊँ ...
माँ ने झट ..पट खोले ...
हिय मूक पुनि बोले ...
कुंजित गुंजित फुलबगिया में ...
आयो ..भर डाल -डाल लद  छायो .....
सुषमाशाली रक्तिम गुड़हल ....

07 September, 2012

तोरी ये कारी ..कजरारी ....मतवारी .... अंखियाँ ...!!

 झील सी ...गहरी .....
बदरा सी नीर भरी ..
सावन सी भीगी ...
मृग सी चंचल ...
ज्योत्स्ना बरसाए ......
चमकें चम-चम ..
कुछ चमकीली ...
दुति दामिनि ज्यों ..
हृदय धड़काए  ....
मोरे मनवा बहुत लुभाए  ...
अंतस रच बस जाए  ...
ओ री धरा ...
तोरी  ये कारी ..कजरारी ....मतवारी .... अंखियाँ ...!!

वही धरा ....वही मैं ....वही दिन ...वही रात ....!!
सच कहूँ तो मुझे अपनी इस धरा से बड़ा प्रेम है ....!!इसका नयनाभिराम सौंदर्य मेरी आँखों मे बसा है ...!!
किसी तरह इसका सौंदर्य बना रहे ....यही प्रयास हमेशा करती हूँ ...इसी को ताकती हूँ ....इसी से प्रेरणा पाती हूँ और इस पर लिखती भी हूँ ......जैसे धरा से धरा तक ,धरा के इर्द गिर्द ही घूमता है मेरा मन .....

धरा से प्रेम है मेरा जो मुझे ये रात भी काली नगिन सी नहीं ,बल्कि कजरारी अँखियों सी प्रतीत हो रही है ...पर जानती हूँ ...मेरे भाव सदा यही थोड़ी रहेंगे ......


एक दिन   ........कुछ अलग से भाव थे मन के .........
इतनी बरसात और मन लिखता ही चला गया ...लग रहा है दोनों कविता साथ पोस्ट कर दूं ....ऐसा न हो बरसात ख़तम हो जाए ,ऋतु बीत जाए ....और मेरी कविता बिना पोस्ट किये ही रह जाए ...


                                                   क्यूँ रात बरसने आई ...??



हाय री ...
हाय री ...
आई  री ...
छाई  री .. ..
काली घनघोर अंधियरी ........
घिर-घिर आई ...घटा छाई ...

रिमझिम-रिमझिम मेघा बरसे ...
श्याम घनश्याम  की सुध लाई .......
मोरे मन के सागर  से नीर चुरा ...
भर-भर गागर ..झिर झिर झर ..
झर झर झर ...
भई साँझ  बरसने  आई ...

चहुँ ओर  घनघोर घटा छाई ....
कित जाऊं ...कैसे चैन पाऊं .....
श्याम की श्याम छब लाई ...
अब रात  बरसने आयी ....
मोरे मन की गागर से नीर चुरा ...
क्यूँ रात बरसने आयी ...????
हाय री ...मन तरसावन ...
जिया अकुलावन ...
बिनु श्याम ...क्यूँ आई ...?
क्यूँ रात बरसने आई ....??


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आज बरखा पर दोनों अलग भावों की कवितायें एक साथ पोस्ट कर रही हूँ ....!!


04 September, 2012

काग़ज़ की नाव सा ...

नहीं कोई ठाँव सा ....
काग़ज़  की नाव सा ...


बहता हूँ जीवन की नदिया में ...
शनै: शनै: डूबता हुआ  ....
क्षणभंगुर जीवन ...
किंकर क्षणों  मे ही ...
आकण्ठ डूब  जाऊँगा ...
अब तुम पर ..
सब तुम पर है ..
 पार लगाओ ...
मेरा जीवन सुधार दो ....
सँवार दो ..
अरज  बस इतनी ही है ..उद्धार करो ...!!
 हे प्रभु कल्याण करो। .!!

28 August, 2012

ऊषा की ओ स्वर्णिम ललि ......!!




 धनघड़ी  आई .....
ब्रह्ममुहुर्त लाई ....!!
अब शुभ संकेत सी ...
बिखरने  लगी लालिमा ...
ऊषा  की आहट  से ही ...
घुल गई  रात्रि की   कालिमा ...!!

 नतमस्तक  हूँ ...प्रभु द्वार .....!!
वृहद  हस्त हो ...
तुम्हारा प्रभु  हर बार ....!!
इस जीवन में सौभाग्य ही है मेरा ....
ज्ञान के इस अखण्ड मान   सरोवर में ....
प्रभु अर्हणा प्राप्त ...
मैं वो रक्त कमल हूँ ...
प्रत्येक  प्रात निज आभ से ...
चूमती हो   मस्तक मेरा ....
ऊषा की ओ स्वर्णिम ललि ...!!
और सुप्तप्राय सा ...  मैं ...
खोल तंद्रिल चक्षु..
अनुरक्त  हो .....
सुध-बुध खो .....
तत्क्षण  तत्पर जागृत हो...
स्फूर्त हो   उठता हूँ .....
अपनी पंखुड़ियों सी कृति लिये ..
किंजल्क लिए ..
खिलने के लिये ...
सँवरने के लिये ...
बिखरने के लिये .....................................................................................................!

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अर्हणा --सम्मान
अनुरक्त--वशीभूत हो ...
किंजल्क -कमल का पराग

आज सुबह से ही इस कविता को पोस्ट करने की कोशिश कर रही थी .....पता नहीं क्यों पोस्ट ही नहीं हो पा रही थी ।अब अलग पोस्ट बना कर ड़ाल रही हूँ ...आशा है सफलता मिलेगी ...!!

24 August, 2012

बूंदों का रंग ...

बुरा मत बोलो ,बुरा मत देखो,बुरा मत सुनो ...


नकारत्मक को नकार कर सकारत्मक को साकार कर पाना मुश्किल तो है ...किंतु ज्ञान ही हमारे मन को समृद्धी देता है ...!!हम कहीं  भी जायें हमरा मन हमसे आगे आगे ही चलता है ,दिशा दिखाता हुआ ......जो दिखाता है ....वही देखते हैं हम ....जो समझाता है वही समझते हैं हम ....
 सावन के आते ही लालित्य से धरा सराबोर ....जहाँ देखो वहाँ ...प्रकृति का सौंदर्य जैसे अटा पड़ा है ...!!वही सौंदर्य का,वही बरसात का वर्णन कर पाया मन ...!!

बीत  गया सावन ......ऐसी बरसात के बस बूंदों की आवाज़ खनखनाती है कानों मे ...... ...एक शाश्वत सत्य सा .....कुछ संदेश है ...निश्छल बूंदों में.....

                      **********************



बरस रहा था ...
पुरज़ोर सावन ...
निश्छल निर्झर ...
सोचा ..देखूँ तो कैसा है ...
बूंदों का रंग..
अंजुरि भर हाथ मे ..!!
जब  देखा ...तब जाना ..
कोइ रंग नहीं...?
बस ...
 मन के भावों मे छुपा हुआ ...
एक  ही रूप जाना पहचाना .. ..
मेरे  भावों  का रंग ही  तो  है ...
 इस बरसात मे ...

उछाल देती हूँ भरी अंजुरि ..
भीग जाती हूँ उन्हीं बूंदों मे फिर ...
उमड़ घुमड़ घन ..
गरज-गरज बरस रहे ...
खन खन कुछ कहती हैं  बूंदें..
कानो में.....
राग गौड़ मल्हार के सुर आज छेड़े  हैं ..
हृदय से ...
पहुंच ही गई  श्रुति मुझ तक ...
इन्हीं संचित पावन  बूंदों से ....
भिगो गयी अंतस ...
सच मे ...
मेरे भावों में भीगा ...
सप्त स्वरों का ....
सतरंगी ..रंग ही तो है ...इस बरसात में ...!!


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गौड़ मल्हार -राग का नाम है ,



25 July, 2012

मौन सी एक सुबह .........................!!





मेरी चूड़ी   सी ...
वर्षा की बूंदो मे है खनखनाहट ....
मेरी बिंदिया सी ..
तुम्हारे चेहरे  पे है मुस्कुराहट...
अदरक की चाय सी ....
सुबह  में है  खुश्बू....
खड़खड़ाता हुआ अख़्बार ...
सुर लहरी छेड़ रहा है ...
तुमसे  रौशन है मेरा जहाँ ...

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