22 August, 2014

तपन .....हाइकु ...



तुमरी ठौर....
ढूँढे वही ठिकाना ...
मनवा मेरा ....


तपन बढ़े ...
कैसे दुखवा सहूँ ...
जियरा  जले ...

जलता जल .. .
तपन अविरल  ....
करे श्यामल ....


उड़ता  जल ...
तपिश सूरज की ..
आकुल  मन ...


जल जलता ....
जलती भावनाएं ...
सूखती नदी  ..



चाहे मनवा .....
आस घनेरी जैसी  ...
शीतल छाँव ...


मन बांवरा ....
तपन जले जिया ....
मन सांवरा ...

नीरस मन  ...
जलती भावनाएं ....
दग्ध हृदय  ...


देखो तो कैसी ...
तपती  दुपहरी ....
सूनी हैं  राहें ...........


ए री पवन ...
भर लाई तपन ...
जियरा जले ....



व्याकुल  मन ...
मैं क्या करूँ जतन...
नीर न पाऊं .....!!

धू धू करती ...
तपती दोपहर ..
चलती हवा ...


8 comments:

  1. जल जलता ....
    जलती भावनाएं ...
    सूखती नदी ....बहुत खूब!
    सभी हाइकु बहुत सुन्दर !!

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (23-08-2014) को "चालें ये सियासत चलती है" (चर्चा मंच 1714) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. हृदय से आभार शास्त्री जी मेरे हाइकु चर्चा मंच पर लेने हेतु .....!!

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  3. देखो तो कैसी ...
    तपती दुपहरी ....
    सूनी हैं राहें ...........


    ए री पवन ...
    भर लाई तपन ...
    जियरा जले ....

    सुन्दर हैं हाइकु

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  4. वाह बहुत ही उत्कृष्ट अनुभूति ..सुन्दर हैं हाइकु

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  5. वाह ...बहुत सुंदर हायकु

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!