16 August, 2014

जीवन में फिर आस जगाओ .....!!

जल जल के जलता है जल
कैसे बीतेंगे ये पल ,
जल बिन निर्जल नैन  हुए ,
नीरस मन के बैन हुए

मेघ घटा आई घन लाई
उमड़ घुमड़ चहुं दिस अब छाई-
बरसो मेघा मत तरसाओ ,
झर झर बुंदियन रस बरसाओ...!!

बूंदों में सुर-ताल मिलाओ ,
राग मियां मल्हार सुनाओ,
जिया की मोरे प्यास बुझाओ,
जीवन में फिर आस जगाओ ....!!

14 comments:

  1. जल से की गयी निर्मल मनुहार।
    वाह.… खूबसूरत। .

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  2. जल ही जल करता छल छल....बहता नभ से है अविरल...सावन की याद दिलाती सुंदर रचना...

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
    इस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 17/08/2014 को "एक लड़की की शिनाख्त" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1708 पर.

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  4. चर्चा मंच में मेरी रचना लेने हेतु हृदय से आभार माननीय राजीव कुमार झा जी !!

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  5. सुन्दर एवं शीतल रचना ।

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  6. मेघ आपका कहा कभी न टालेंगे...
    सुन्दर भाव

    अनु

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  7. मन को शीतलता देती हुई रचना.

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  8. बहुत ही बढ़िया

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  9. अनुपम भाव संयोजन ....

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  10. सुंदर शब्द-संयोजन

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  11. मनमोहक प्रस्तुति...

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!